ये उस शख्स के दृण संकल्प का नतीजा है जिसने अपनी आंखों की रौशनी तो खो दी मगर समाज में अलख जगाने के काम करते हुए अपनी अलग पहचान बनाई है. (Girish Thuwal Social Worker) किसी ने सही कहा है कि जहा... Read more
पहाड़ी महिलाएं पलायन के लिये कितनी जिम्मेदार
पलायन पहाड़ी गावों की संभवतया सबसे बड़ी समस्या के रूप में सामने है. इसके कारणों पर बड़े-बड़े विशेषज्ञ अपनी बात कहते हैं और समाधान के लिए बड़े भारी भरकम आयोग स्थापित हो गए हैं, लेकिन फिलहाल इ... Read more
1945 के नैनीताल की स्मृतियां
मेरा बाल्यकाल अल्मोड़ा में बीता. पिताजी अल्मोड़ा में रहते थे. हमारी दुनिया अल्मोड़े तक ही सीमित थी. कुमाऊवासियों के लिए अल्मोड़े में सभी प्रकार की सुविधाएं प्राप्त थीं. निकटस्थ एवं दूरस्थ गा... Read more
मडुवे की गुड़ाई के बीच वो गीत जिसने सबको रुला दिया
चौमास (बरसात) में बारिश से जरा सी राहत मिली कि सारे गांव के लोग कोदा-झंगोरा गोड़ने खेतों की ओर चल पड़ते. मर्द बैल जोत कर कोदे में ददंला लगाते और छुट्टी पायी. बाकी काम महिलाओं के हिस्से. खरपत... Read more
यह लेख भी सन् 1920 में डाँग श्रीनगर निवासी श्री गोविन्दप्रसाद घिल्डियाल, बी.ए. डिप्टी कलेक्टर, उन्नाव द्वारा लिखित और विश्वंभरदत्त चन्दोला द्वारा गढ़वाली प्रेस, देहरादून से प्रकाशित, पुस्तक... Read more
रानीखेत रोड से बाजार की तरफ बढ़ने पर बाईं ओर एमईएस परिसर की तरफ पक्के पैराफिट से लगे कई कच्चे फड़ थे, जिसमें एक चाय की दुकान कोई वयोवृद्ध व्यक्ति की हुआ करती थी. चौगर्खा पट्टी के होने से लोग... Read more
तो, नित्यानंद मैठाणी जी भी चले गए. 14 सितम्बर, 2020 की रात 86 वर्ष की आयु में लखनऊ में उनका निधन हो गया. कोई दस दिन पहले उनसे बात हुई थी. आवाज बहुत क्षीण थी. हाल में उन्होंने अपना बेटा खो द... Read more
अपने गीतों व गायन के माध्यम से लोगों में जनचेतना का संचार करने वाले और उत्तराखण्ड आन्दोलन के दौरान, लस्का कमर बाँधा, हिम्मत का साथा और धैं द्यूणौ हिंवाल च्यलौ ठाड़ उठौ, जगाओ मुछ्याल च्यलौ ठा... Read more
इक्कीसवीं सदी के बहुत प्रतिभाशाली बुद्धिजीवी और हिब्रू यूनिवर्सिटी युरोशलम में प्रोफेसर युवाल नोवा हरारी अपने एक लेख में बताते हैं – मनुष्य हमेशा से उपकरणों के आविष्कार करने में माहिर... Read more
मुनस्यारी के चचा के बहाने इंजीनियरिंग के जमीनी पाठ
गांव में एक चचा थे, सरिया और एल्युमिनियम के तार मोड़कर इतनी जबर्दस्त गाड़ियां बनाते थे कि क्या कहने, रविवार को अलसुबह हम सब बच्चे कचड़े के ढेर से रबड़ के फटे पुराने चप्पल जूते और रंग बिरंगे... Read more