डॉ. शेर सिंह पांगती: पुण्यतिथि विशेष
किसी भी अनजान क्षेत्र में जब आप घूमने जाते हैं तो पहले पहल लोग आपसे घुलते मिलते नहीं. ऐसे ही जोहार क्षेत्र में जब भी हम ट्रेकिंग पर जाते तो लोग शुरू में हमसे एक उचित दूरी बना कर बात करते. पर... Read more
कूर्मांचल में काली कुमाऊँ लोहाघाट से हल्द्वानी जाने वाले सड़क मार्ग पर पेंतालिस किलो मीटर की दूरी पर पौराणिक धार्मिक व आध्यात्मिक आस्था का केंद्र है देवी धूरा. अल्मोड़ा से लमगडा और सहरफाटक ह... Read more
क्या आपने कभी सोचा कि क्यों महीनों की संख्या 12 और राशियां भी 12 ही हैं! और हम अक्सर जिन संक्रांति यों का नाम सुनते हैं जैसे कर्क संक्रांति मकर संक्रांति और विषुवत संक्रांति, तो ये संक्रांति... Read more
सर्दियों में दुनिया भर में अलग अलग जगह के लोगों के अलग-अलग शगल हुये हैं. गुनगुनी धूप सेकना इनमें सबसे लोकप्रिय और आम हुआ. उत्तराखंड जैसे ठंडे प्रदेशों में धूप सेकना अपने आप में एक काम है और... Read more
बेटे के परदेश और बेटी के ससुराल जाने की पुरानी रवायत पहाड़ों में रही है. बेटों को बड़े शहर भेजना पहाड़ियों की मज़बूरी ही कहा जा सकता है. कौन जो चाहेगा उसकी अगली पीढ़ी भी पहाड़ में ही अपने हा... Read more
उत्तराखण्ड के जिस स्थान पर रावण ने मुण्डों की आहूति देकर पितामह ब्रह्मा को रिझाया था, उस स्थान का नाम है- बैरासकुण्ड. यह स्थान जनपद चमोली के परगना दशोली के अन्तर्गत नन्दप्रयाग से 10 किलोमीटर... Read more
प्राचीनकाल से ही उत्तराराखण्ड का सम्बन्ध रामभक्ति परम्परा से रहा है. डॉ0 शिवप्रसाद नैथानी के कथनानुसार – श्रीराम कथा के आदि महाकाव्य वाल्मीकि रामायण में, इस प्रदेश को लक्ष्मण के पुत्रो... Read more
गढ़वाल में रामलीला के मंचन का इतिहास
रामलीला पर्वतीय प्रदेश उत्तराखण्ड के विभिन्न स्थानों में आयोजित की जाती रही है, जिनमें सर्वप्रथम अल्मोड़ा कुमांउनी रामलीला की जन्मस्थली रही है. अल्मोड़ा में 1860 में दन्या के बद्रीदत्त जोशी... Read more
शैलेश मटियानी की जन्मतिथि पर भावपूर्ण स्मरण
दुख ही जीवन की कथा रहीक्या कहूँ आज जो नहीं कही निराला जी की ये पंक्तियाँ जितनी हिंदी काव्य के महाप्राण निराला के जीवन को उद्घाटित करती हैं उतनी ही हमारे कथा साहित्य में अप्रतिम स्थान रखने वा... Read more
उत्तराखंड की वनराजी जनजाति पर जमीनी रपट
उत्तराखंड की पांच जनजातियों थारू, बोक्सा, भोटिया, जौनसारी और वनराजी में संभवतः सबसे पिछड़ी और कम जनसंख्या वाली जनजाति है वनराजी. यह जनजाति उत्तराखंड के अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित पिथौरागढ़... Read more