बचपन की छवियाँ
इजा कहती हैं कि मैं जब पेट में था तो कभी स्थिर नहीं रहा. जब मैं नौ महीने बीत जाने पर भी पैदा नहीं हुआ तो घर में घबराहट शुरू हो गई. पिता जी कहा करते थे कि इस बार भागा की मतारी का बचना मुश्किल... Read more
1942 का साल था महिना अगस्त का. अंग्रेजों के खिलाफ़ विरोध की चिंगारियां अब गाँवों में विरोध की लपटों के रूप में साफ देखी जा सकती थी. कुमाऊं के आंतरिक क्षेत्रों में तेज होते विरोध के स्वर देखक... Read more
चरैवेति चरैवेति के संदेश से अभिप्रेरित था ‘प्रताप भैया’ का व्यक्तित्व: पुण्यतिथि विशेष
वर्ष 1975 के जनवरी माह की कोई तारीख रही होगी, सही से याद नहीं, लेकिन इतना अवश्य याद है कि वह शनिवार का दिन था. जाहिर है कि प्रताप भैया हर रविवार को ग्रामीण क्षेत्रों के भ्रमण पर निकल जाया कर... Read more
आखिर क्यों भूल गये हम ‘कालू महर’ को
भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में उत्तराखण्ड के काली कुमाऊं यानि वर्तमान चम्पावत जनपद का अप्रतिम योगदान रहा है. स्थानीय जन इतिहास के आधार पर माना जाता है कि लोहाघाट के निकटवर्ती सुई-बिसुंग इलाके क... Read more
देघाट की फ़िज़ा में आज बारूद की ‘बू’ थी
1942 का साल था और तारीख आज की थी. चौकोट की तीनों पट्टियों की एक सभा देघाट में होनी थी. देघाट में विनौला नदी के पास देवी के एक मंदिर में करीब 5 हजार लोग एकत्रित थे. पुलिस के कुछ सैनिक सभा के... Read more
पांडवों की बिल्ली और कौरवों की मुर्गी कैसे बनी महाभारत का कारण: कुमाऊनी लोक साहित्य
कुमाऊं का यह दुर्भाग्य रहा है कि यहां का लोक साहित्य कभी सहेज कर ही नहीं रखा गया. इतिहास में ऐसी कोई कोशिश दर्ज नहीं है जिसमें यहां की परम्परा और संस्कृति को सहेजने की ठोस कोशिश देखने को मिल... Read more
कुमाऊं में दाह संस्कार का पारंपरिक तरीका
मृतक संस्कार में मृत्यु के समय गोदान और दशदान कराया जाता है. मरणासन्न व्यक्ति के मुख में तुलसीदल और गंगाजल डालते हैं. फिर मृतक को स्नानोपरान्त चन्दन और यज्ञोपवीत धारण कराए जाते हैं. मृतक के... Read more
बागेश्वर से भारतीय फुटबाल टीम का उभरता सितारा
बागेश्वर जिले के एक छोटे से गांव से निकले रोहित दानू की मेहनत का परिणाम है कि आज उन्हें भारतीय फुटबाल का उभरता सितारा माना जाता है. भारत की अंडर-14, 15, 16, 17 और 19 टीम से खेल चुके 19 वर्ष... Read more
उत्तराखंड के युवाओं के आगे घोड़े थक जाते हैं
ओलंपिक गेम्स के साथ ही खिलाड़ियों की बदहाली पर चर्चा भी खत्म हो गई है. अगले ओलंपिक में खिलाड़ियों के निराशाजनक प्रदर्शन तक सन्नाटा रहेगा. मैं भी इस पर चर्चा नहीं करता यदि फूलों की घाटी से लौ... Read more
ठेठ कुमाऊनी के कुछ शब्द और उनके अर्थ
पिछड़ेपन का एक सुखद पक्ष यह है कि जनजीवन की बोलचाल में ऐसी विशिष्ट शब्दावली का प्रयोग होता है जो अभी तक ठेठ रूप में बची हुई है. इस शब्दावली में सम्बन्ध वाची शब्दों के अतिरिक्त भगोल सम्बन्धी,... Read more