पिथौरागढ़ जिले से सातों-आठों पर्व की तस्वीरें
कुमाऊं के बहुत से क्षेत्रों में सातों-आठों सबसे महत्वपूर्ण पर्व है. सातों-आठों कुमाऊं का एक ऐसा लोकपर्व है जिसमें स्थानीय लोग मां पार्वती को अपनी दीदी और भगवान शिव को भिना के रूप में पूजते ह... Read more
आखिरकार एक साल के इंतजार के बाद एक बार फिर से नंदा के जयकारों से पूरे पहाड़ का लोक नंदामय हो गया है. 31 अगस्त से नंदा के मायके में नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा शुरू हो गयी है. नंदा धाम कुरू... Read more
उत्तराखंड के इतिहास में काला दिन है 1 सितम्बर
1 सितम्बर, 1994 की सुबह खटीमा में हमेशा की तरह एक सामान्य सुबह की तरह शुरू हुई. लोगों ने अपनी दुकानें खोली थी. सुबह दस बजे तक बाजार पूरा खुल चुका था. तहसील के बाहर वकील अपने-अपने टेबल लगा कर... Read more
अगर आप केवल टी-शर्ट में ‘पहाड़ी’ लिखकर तनकर चलने वाले पहाड़ियों में हैं तो ‘यकुलाँस’ का पहला मिनट उत्साह से देखने के बाद आपके मन में क्या है? क्यों हैं? फ़ॉरवर्ड करके देखो तो, गाना सिंक नहीं... Read more
अफ़गान बादशाह जो देहरादून में ‘बासमती चावल’ लाया
‘देहरादून की बासमती’ सुनते ही मुंह में खुशबू, मिठास और कोमल चावल के दानों के स्वाद से भर जाता है बशर्ते आपने कभी देहरादून का बासमती चावल खाया हो. जितना दिलचस्प स्वाद देहरादून की बासमती का है... Read more
वंशीनारायण मंदिर: उत्तराखंड का एक ऐसा मंदिर जो साल में केवल एक दिन खुलता है
वंशीनारायण का मंदिर चमोली जिले की उर्गम घाटी के पास स्थित है. उर्गम घाटी से करीब 12 किमी की पैदल दूरी पर स्थित हैं वंशीनारायण मंदिर. समुद्र तट से 12 हजार फीट की ऊंचाई ओअर स्थित है वंशीनारायण... Read more
बचपन की छवियाँ
इजा कहती हैं कि मैं जब पेट में था तो कभी स्थिर नहीं रहा. जब मैं नौ महीने बीत जाने पर भी पैदा नहीं हुआ तो घर में घबराहट शुरू हो गई. पिता जी कहा करते थे कि इस बार भागा की मतारी का बचना मुश्किल... Read more
1942 का साल था महिना अगस्त का. अंग्रेजों के खिलाफ़ विरोध की चिंगारियां अब गाँवों में विरोध की लपटों के रूप में साफ देखी जा सकती थी. कुमाऊं के आंतरिक क्षेत्रों में तेज होते विरोध के स्वर देखक... Read more
चरैवेति चरैवेति के संदेश से अभिप्रेरित था ‘प्रताप भैया’ का व्यक्तित्व: पुण्यतिथि विशेष
वर्ष 1975 के जनवरी माह की कोई तारीख रही होगी, सही से याद नहीं, लेकिन इतना अवश्य याद है कि वह शनिवार का दिन था. जाहिर है कि प्रताप भैया हर रविवार को ग्रामीण क्षेत्रों के भ्रमण पर निकल जाया कर... Read more
आखिर क्यों भूल गये हम ‘कालू महर’ को
भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में उत्तराखण्ड के काली कुमाऊं यानि वर्तमान चम्पावत जनपद का अप्रतिम योगदान रहा है. स्थानीय जन इतिहास के आधार पर माना जाता है कि लोहाघाट के निकटवर्ती सुई-बिसुंग इलाके क... Read more