‘अभागी पत्नी’ कुमाऊनी लोककथा
एक गांव में एक व्यापारी अपनी दो पत्नियों के साथ रहता था. दोनों पत्नियाँ आपस में खूब झगड़ा करती थी क्योंकि आदमी अपनी दूसरी पत्नी को ज्यादा प्यार करता तो हमेशा उसी का साथ देता. एकबार व्यापारी... Read more
शंखनाद से कम आध्यात्मिक नहीं हिमालयी मवेशियों के गले में बंधी तिब्बती घंटियों के सुर
हिमालयी चरवाहों के मवेशियों के गले में बंधी तिब्बती घंटियाँ और उनकी ध्वनि भी इन चरवाहों के जीवन की तरह ही गतिमान होती है. इन तिब्बती घंटियों की ध्वनि काफी तेज होने के बावजूद कानों को मधुर लग... Read more
एक बार भादौ के महीने में गौरी कैलाश से अपने मायके के लिये निकलती हैं और रास्ता भटक जाती हैं. रास्ता भटकने पर वह अलग पेड़ों से अपना मायका पूछती हैं और रास्ता बताने पर उन्हें आशीर्वचन देकर आगे... Read more
कहते हैं शिवरात्रि के बाद कुमाऊं की होली में यौवन का रंग भरने लगता है. शिवरात्रि के दिन से ही करीब दो महीने से चली आ रही बैठकी होली में रंग भी पड़ता है. निर्वाण, श्रृंगार से होती हुई होली अब... Read more
कुमाऊं का सबसे समृद्ध कौतिक था ‘ठुल थल’
कुमाऊं में लगने वाले मेलों में थल का मेला सबसे महत्वपूर्ण मेलों में शामिल रहा है जो धार्मिक और व्यापारिक महत्वपूर्ण रहा है. कभी महीने महीने लगने वाला यह मेला अब केवल एक दिन तक सिमट कर रह गया... Read more
बुढ़िया के घर में नौसिखिया लड़का- लोककथा
एक बार एक बुढ़िया ने जातर ठीक करने के लिये कुंवर सिंह नाम के व्यक्ति को बुलावा भेजा. कुंवर सिंह इलाके भर में गेहूं, चावल, मडुवा, मक्का पीसने के लिए हाथ से चलाई जाने वाली पत्थर की चक्की, जिसे... Read more
‘धूर्त सिपाही’ कुमाऊनी लोककथा
आहा तो हुआ जेठ के महीने की चटक धूप लगी हुई थी. सफ़र में निकला एक सिपाही भूखा और प्यासा एक घर में पहुंचा जहां एक महिला दिन का खाना बना रही थी. महिला का आदमी लकड़ी लेने जंगल गया हुआ था. सिपाही... Read more
1935 में जब टिहरी में पहला रेडियो आया
बात 1935 की है, रियासत टिहरी पर महाराजा नरेन्द्रशाह का शासन था. रियासत भर में महाराजा के पास ही एकमात्र रेडियो था. लेकिन इस रेडियो को साधारण नागरिक क्या, राज्य के उच्च अधिकारी भी न देख सकते... Read more
हल्द्वानी के सिनेमाघरों का इतिहास
नगर से महानगर हो चुके हल्द्वानी ने अपने आसपास के गांवों को भी अपने में सम्मिलित कर लिया है. मुखानी क्षेत्र में पर्वतीय रामलीला कुछ दिनों तक आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी जो अब बंद हो चुकी है.... Read more
दलितों की बारात पहाड़ में पहले बिना डोला-पालकी की चलती थी और दूर से ही पहचानी जाती थी. किन्तु टिहरी-गढ़वाल जिले की ग्यारह गाँव पट्टी में ढुंग गाँव के दीपचन्द शाह ने अपनी शादी में डोला-पालकी... Read more