सुबह सबेरे ही आज लखनऊ से मित्र मोहन उपाध्याय ने दिल उदास करने वाली खबर दी कि दीवान नगरकोटी नहीं रहे.मित्रों से मिली जानकारी के आधार पर वे पिछले 4-5 माहों से कैंसर की असाध्य बीमारी से चुपचाप... Read more
चालाक सियार: पहाड़ी लोककथा
एक बार जंगल में तेंदुए, भेड़िए, बिल्ली, चूहे और सियार ने मिलकर एक बेहद तेज भागने वाले मोटे हिरन को मारने की योजना बनाई. सियार बोला- जब हिरन सो रहा हो उस समय हमारा दोस्त चूहा जाकर हिरन के खुर... Read more
सावन की शुरुआत में हरेले का गीत
पिछले कुछ सालों से उत्तराखण्ड के युवाओं द्वारा लोक संगीत को नए कलेवर में पेश करने का चलन देखने में आया है. इन कोशिशों में गाने को भौंडा बनाने के बजाय उनकी पहाड़ी आत्मा को बचाये-बनाये रखने के... Read more
आज सुबह पहाड़ में लम्बी उम्र के आशीर्वचन कहे जायेंगे और घरों में पकवानों की सुंगध बिखरेगी. पिछले दिनों घर में जमाये हरेला को आज सुबह ईश्वर के सामने काटा जायेगा. परिवार की सबसे बड़ी महिला सभी... Read more
सियार और बाघिन की शादी : पहाड़ी लोककथा
पहाड़ सियारों के मूल घर हुआ करते थे और बाघ रहते थे तराई में. एक बार दोनों के सरदारों में तय हुआ कि दोनों अपनी-अपनी जगह बदल लें. सियार रहेंगे तराई में और बाघ रहेंगे पहाड़ों में. सियार तभी तरा... Read more
अट्ठारहवीं शताब्दी में ब्रिटिश भारत के कुमाऊँ-गढ़वाल मंडलों में जातिवादी उत्पीड़न अपने चरम पर था. मुंशी हरिप्रसाद टम्टा का नाम उन राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं में प्रमुखता से लिया जाना चाहि... Read more
बीनबाजे और हुड़के की जोड़ी
मशकबीन और हुड़के की जोड़ी पहाड़ के लोक की सबसे जुदा जोड़ी हुआ करती थी. एक तरफ बीनबाजे के नाम से पहाड़ों में मशहूर विदेश से आये एक बाजे की धुन थी दूसरी तरफ ठेठ पहाड़ी वाद्य हुड़के गमक. बीनबाज... Read more
लैंसडाउन के भूत का सच
गढ़वाल के लैंसडाउन में है गढ़वाल राइफल्स का गौरवशाली केंद्र. यहां भारत के जांबाज जवानों के शौर्य व पराक्रम की जितनी गाथाएं लोकप्रिय है उतने ही चर्चित हैं लैंसडाउन के भूतों के किस्से. लैंसडाउ... Read more
हमारे पहाड़ों में कठपुड़िया नाम काफी प्रचलित है. वैसे तो कठपुड़िया नाम की जगहें भी हैं पर यहां पर बात जंगल में बनाई गई उन जगहों की हो रही है जहां पर लकड़ियां फेंकी जाती थी.(Kathpudiya Uttara... Read more
हरेला कब बोते हैं
हरेला प्रकृति से जुड़ा एक लोकपर्व है जो उत्तराखंड के पहाड़ी समाज द्वारा मनाये जाने वाले पर्वों में सबसे महत्वपूर्ण है. उत्तराखंड का पहाड़ी समाज हरेला साल में तीन बार मनाता है. यह इस वर्ष का... Read more