कुमाऊँ का अंग्रेज नवाब
1856 से 1884 के बीच उत्तराखण्ड का कमिश्नर हेनरी रैमजे रहा. हेनरी रैमजे लार्ड डलहौजी का चचेरा भाई था. अंग्रेज इतिहासकारों ने भारत में अंग्रेजी राज के 10 निर्माताओं में हेनरी रैमजे को भी स्थान... Read more
उत्तराखण्ड के जनसरोकारों से जुडे क्रान्तिकारी छात्र नेता स्वर्गीय निर्मल जोशी “पण्डित” छोटी उम्र में ही जन-आन्दोलनों की बुलन्द आवाज बन कर उभरे थे. शराब माफिया,खनन माफिया के खिलाफ... Read more
आज है जानवरों के स्वास्थ्य से जुड़ा पर्व खतड़ुवा
खतड़ुवा उत्तराखंड में सदियों से मनाया जाने वाला एक पशुओं से संबंधित त्यौहार है. भादों मास के अंतिम दिन गाय की गोशाला को साफ किया जाता है उसमें हरी नरम घास न केवल बिछायी जाती है. पशुओ को... Read more
लंदन का एकलव्य – माइकल फैराडे
लंदन की एक गरीब बस्ती. एक सबसे अलग सा दिखता विचित्र अनाथ बालक भी था वहां. रद्दी अख़बार उसकी ज़िंदगी थे. क्योंकि वो इन्हें बेचकर अपनी बसर करता है. उसकी निगाह कभी-कभी रद्दी अख़बार की हेड लाइन या... Read more
चंदवंशीय राजा बाज बहादुर चंद
राजा बाज बहादुर चंद कुमाऊं के चंदवंशीय शासकों में सबसे अधिक शक्तिशाली शासक रहे हैं. उनका बचपन बड़ा त्रासदीय रहा है. ये चन्दवंशीय राजा नीलू गुसाईं के पुत्र थे. उस समय राजा विजय चंद थे किन्तु व... Read more
टोपी पहना दी जाती है तो कभी पहननी पड़ जाती है
टोपी का भी अपना इतिहास है. क्षेत्र व समुदाय से लेकर अपनी अलग पहचान बनाने के लिए भी टोपी पहनने का रिवाज रहा है. बाॅलीवुड से लेकर कविता हो या शायरी या फिर मुहावरा, टोपी कहीं नहीं छूटी है. हर ज... Read more
उत्तराखण्ड का इतिहास भाग- 2
प्रागैतिहासिक काल- गढ़वाल और कुमाऊँ की पहाड़ियों और उनके तलहटी क्षेत्रों में प्रागैतिहासिक काल के संबंध में अभी तक अधिक कार्य नहीं हुआ है. प्रागैतिहासिक काल इतिहास का वह काल है जिसके संबंध में... Read more
जर्मनी के महान वैज्ञानिक और भौतिक शास्त्र में नोबल पुरुस्कार विजेता अल्बर्ट आइंस्टीन को सारी दुनिया जानती है. उन्होंने प्रकाश विद्युत प्रवाह की क्वांटम सिद्धांत पर व्याख्या करके विज्ञान की द... Read more
नन्दादेवी महोत्सव
नंदाकोट, नंदाकिनी, नंदाघूँघट, नंदाघुँटी, नंदादेवी, नंदप्रयाग, और नंदाभनार जैसे अनेक पर्वत चोटियाँ, नदियाँ तथा स्थल नंदा को उत्तराखण्ड में प्राप्त धार्मिक महत्व दर्शाते हैं. नंदा कुमाऊं, गढ़वा... Read more
हम जाने भी कहां देंगे तुमको गिर्दा
उस साल यानी 2010 में अचानक एक याद बन गया गिर्दा. इतवार, 22 अगस्त का दिन था. बारह बजे के आसपास मोबाइल फोन कुनमुनाया. देखा, लखनऊ से नवीन का संक्षिप्त एस एम एस था- ‘हमारे गिर्दा चल दिए इस दुनिय... Read more