कुमाऊँ के पशुचारकों का देवता चौमू
चौमू देवता का मूलस्थान चम्पावत जनपद में गुमदेश स्थित चमलदेव में है किन्तु चम्पावत के अतिरिक्त पिथौरागढ़ में वड्डा के निकट चौपाता तथा अल्मोड़ा की रयूनी तथा द्वारसों पट्टियों और उनके निकटवर्ती इ... Read more
आजादी से पहले नैनीताल का शेरवुड
Read in English नैनीताल में यूरोपियन बस्ती बसने के बाद एक अच्छे स्कूल की जरुरत महसूस की गयी. इस जरुरत को सबसे पहले जुलाई 1867 में द नैनीताल डाईओसिशन स्कूल ने पूरा किया. यह प्रोजेक्ट रॉबर्ट म... Read more
गंगू रमौला की कथा
सुप्रसिद्ध गढ़वाली कवि-इतिहासकार तारादत्त गैरोला ने अंग्रेज ई. शर्मन ओकले के साथ मिलकर कुमाऊँ और पश्चिमी नेपाल की लोककथाओं (Uttarakhand Folklore) पर बेहद महत्वपूर्ण कार्य किया था. 1935 में पह... Read more
हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने: 67
हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने: 67 पिछली कड़ी का लिंक: हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने- 66 यह अप्रत्याशित दुर्घटना केवल हल्द्वानी (Haldwani) के ही हिस्से आयी हो ऐसी बात तो नहीं अलब... Read more
छोटा कैलाश: भीमताल ब्लॉक का विख्यात शिव मंदिर
भीमताल में छोटा कैलाश नैनीताल जिले के भीमताल (Bhimtal) ब्लॉक में एक पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है शिव मंदिर (Shiv Temple) छोटा कैलाश (Chota Kailash.) यहाँ तक पहुँचने के लिए आपको हल्द्वानी से सड़... Read more
पहली बार उस लड़की से मिलिए तो उसमें आपको एक निहायत भोली और ठेठ पहाड़ी लड़की नज़र आएगी. सादगी से भरी उसकी शुरुआती बातें आपके पहले इम्प्रेशंस से मेल खाएंगी. फिर आप उसकी बनाई फ़िल्में देखिये. उसके ब... Read more
पचास लाख पेड़ लगाने वाले मसीहा का जाना
कल यानी बीते शुक्रवार को उत्तराखंड के ‘वृक्ष मानव’ (Tree Man) के नाम से विख्यात श्री विश्वेश्वर दत्त सकलानी (Vishweshwar Dutt Saklani) का देहांत हो गया. उनके परिजनों की मानें तो उन्होंने अपन... Read more
“हाँ साहब! वह पैठी है मन के भीतर” – गोपाल राम टेलर से महान लोकगायक तक गोपीदास का सफ़र
1900-1902 के बीच कोसी नदी से सटे हुये गांव सकार में ‘दास’ घराने के एक हरिजन टेलर मास्टर के घर जन्मा था गोपाल राम. इस खानदान में गाथा गायन अतीत से चला आया था. यह लोग बौल गायन तथा जागरी गाथा क... Read more
दो हजार साल पहले पिथौरागढ़ के तीन ओर था एक सरोवर
वह सरोवर बचपन में अपने “मुलुक’ (Pithoragarh) के बारे में पूछता था तो दादी बताती थीं एक ऐसे मैदान के बाबत, जिसमें मीलों तक पत्थर दिखते ही न थे. पहली बार सोर घाटी देखी तो लगा कि दादी ने अतिशयो... Read more
मेरे जाने के बाद कोई नहीं गायेगा मालूशाही
उत्तराखंड के महान मालूशाही-गायक गोपीदास के साथ अपनी पहली मुलाक़ात को याद करते हुए जर्मनी के मानवशास्त्री और भारत के अध्येता कोनराड माइजनर ने लिखा है: गोपीदास से 1966 में हुई पहली मुलाकात को म... Read more