फुलदेई की फुल्यारी बसंत के रंग
फुलदेई, फुल्यारी के रंग फुलदेई का त्यौहार (Phool Dei Festival) उत्तराखण्ड में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है. जितने रंग बसंत के हैं उतने ही इस त्यौहार के भी. गढ़वाल मंडल (Garhwal) में यह त्य... Read more
मालूशाही गायन का खलीफा मोहन सिंह रीठागाड़ी
सेराघाट मंडी के उस पार ग्राम धपना (पिथौरागढ़) सन 1905-06 के आस पास मोहन सिंह का जन्म हुआ था. पिता का नाम था, ठाकुर हिम्मत सिंह बोरा. ठाकुर साहब की दो शादियां हुई थी. उनके आठ बेटे और संभवतः ती... Read more
ये हैं उत्तराखण्ड की पांच संसदीय सीटें
पूरे देश में अगले महीने से सत्रहवीं लोक सभा के चुनाव होने जा रहे हैं. चुनाव आयोग ने घोषणा की है कि ये चुनाव कुल सात चरणों में होंगे. उत्तराखण्ड में इन चुनावों की तारीख ग्यारह अप्रैल तय की गय... Read more
विश्व में सबसे ऊंचा शिव मंदिर है तुंगनाथ
समुद्र की सतह से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ (Tungnath) मंदिर की गिनती पञ्चकेदार में होती है. उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित यह मंदिर चमोली और गोपेश्वर से क्रम... Read more
डांडी यात्रा में उत्तराखंड के सत्याग्रही
भारत के इतिहास में 12 मार्च का दिन ख़ास है. आज ही के दिन 1930 को महात्मा गांधी ने डांडी मार्च शुरु किया था. साबरमती से शुरु इस पैदल यात्रा के शुरु होने के बाद महात्मा गांधी भारत आजाद होने के... Read more
‘उत्तराखण्ड होली के लोक रंग’ शेखर तिवारी द्वारा संपादित एक महत्वपूर्ण पुस्तक है. चंद्रशेखर तिवारी काफल ट्री के नियमित सहयोगकर्ता हैं. उत्तराखण्ड की होली परम्परा (Traditional Hol... Read more
फिरंगी जुल्म सहने की प्रैक्टिस के लिए जब अल्मोड़े के युवक अपने घावों में नमक भरवाते थे
अल्मोड़े में कांग्रेस का जन्म 1921 में हुआ. इससे पहले जब 1905 में बंग भंग आन्दोलन का प्रारम्भ हुआ, उससे कुछ बच्चों और नवयुवकों के सुकुमार मन में अंग्रेजी राज के प्रति घृणा के भाव उत्पन्न हो... Read more
काफल ट्री के नियमित सहयोगी चंद्रशेखर तिवारी ने ‘उत्तराखण्ड होली के लोक रंग’ नाम से एक महत्वपूर्ण पुस्तक का सम्पादन किया है. समय साक्ष्य प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का प्रार... Read more
इतिहास का खज़ाना है बिनसर की खाली एस्टेट
बिनसर की खाली एस्टेट अल्मोड़ा के नज़दीक स्थित बिनसर (Binsar) वन्यजीव अभयारण्य अपनी ख़ूबसूरती के लिए खासा प्रसिद्ध है. इस इलाके में गिनती के पुराने बंगले हैं. इन सभी बंगलों का बहुत पुराना इतिहास... Read more
बगड़: तटीय भूमि पर बसे गाँव-कस्बे
उत्तराखण्ड के गढ़वाल व कुमाऊँ दोनों ही मंडलों में कई जगहों के नाम में बगड़ शब्द का इस्तेमाल हुआ करता है. बगड़ का मतलब हिमालय से प्रवाहित होने वाली नदियों-नालों के करीब की तटीय, समतल भूमि से है.... Read more