गोरखा शासनकाल उत्तराखण्ड में गोरख्याणी के नाम से जाना जाता है. सन् 1790 ई. में चैतरिया बहादुर शाह, सेनापति काजी जगजीत पाण्डे, अमरसिंह थापा, एवं सूरवीर थापा के नेतृत्व में गोरखा सेना ने कुमा... Read more
कुमाऊँ में कपड़े और रस्सियाँ बनाने के लिए रेशा निकालने के परम्परागत तौर-तरीक़े
पहनावा या वेशभूषा किसी भी समाज की सांस्कृतिक पहचान है. कुमाऊँ के ठण्डे मौसम में अच्छे गर्म वस्त्रों का उपयोग और भी ज्यादा जरूरी रहा है. इसीलिए वस्त्रों का चलन यहाँ प्रागैतिहासिक काल से ही रह... Read more
उत्तराखंड के इस गांव का नाम अमरीका क्यों पड़ा
यदि आपके पास पासपोर्ट और वीजा नहीं है, कोई टेंसन की बात नहीं, आप बेखौफ अमरीका की सैर कर सकते हैं. यहां तक कि आपकी जेब खाली हो तो भी. चौंक गये न! लेकिन चौंकने वाली बात कुछ नहीं है. यदि आप देव... Read more
शमशेर सिंह बिष्ट ठेठ पहाड़ी थे. उत्तराखंड के पहाड़ी ग्राम्य जीवन का एक खुरदुरा, ठोस और स्थिर व्यक्तित्व. जल, जंगल और ज़मीन को किसी नारे या मुहावरे की तरह नहीं बल्कि एक प्रखर सच्चाई की तरह जी... Read more
सासु बनाए ब्वारी खाए
पिछली कड़ी- राजा-पीलू की जोड़ी शादी के अगले दिन की सुबह हर नयी बहू के लिए कभी न भुलायी जाने वाली सुबह होती है थोड़ी सी घबराहट, झिझक और नये परिवार की परंपराओं, तौर-तरीकों को समझने की कोशिश के... Read more
यूं ही कोई पहाड़ी अपना घर नहीं छोड़ता
एक पहाड़ी अपना गांव अपनों के बेहतर भविष्य के लिए छोड़ता है. समतल और सरल दिखने वाले मैदानों में पहाड़ी हाड़-तोड़ मेहनत करता है और जब उसे पक्का यकीन हो जाता है कि मैदान में उसके अपनों का भविष्... Read more
क्या सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु देहरादून में हुई
कई सारे लोग आज भी यह मानते हैं कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु 1945 की विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी. भारत के आजाद होने के बाद कई दशकों तक सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु पर बात होती रही. भ... Read more
सुभाष चन्द्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को आज़ाद हिन्द सरकार का गठन किया था. 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान देश को अंग्रेजों की गुलामी से निजात दिलाने के उद्देश्य से इस सरकार की स्थापना स... Read more
राजा-पीलू की जोड़ी
पिछली कड़ी – स्कूल की पाटी और भाई-बहन की मीठी नोक-झोंक प्राप्ति-प्रियम गाड़ी में पीछे बैठे हुए हैं और हम लोगों को नवनीत जी सरप्राइज़ विजिट पर चकराता यात्रा पर लेकर जा रहे हैं. मैं नवनीत... Read more
बहुत पुरानी बात नहीं है जब हल्द्वानी की कई जगहों को वहाँ बने थोड़ा बड़े भवनों के नाम से जाना जाता था. जैसे समता आश्रम, अब्दुल्ला बिल्डिंग, सरना कोठी, पीली कोठी, चौधरी भवन वगैरा. तब नैनीताल रोड... Read more