‘रमोलिया हाउस’ हमारी नई शुरुआत
लोकपर्व फूलदेई के मौके पर ‘काफल ट्री’ अपने निर्माणाधीन ‘सांस्कृतिक केंद्र’ के नाम की घोषणा कर रहा है. हल्द्वानी में स्थित इस सांस्कृतिक केंद्र को ‘रमोलिया हाउस’ नाम द... Read more
जार्ज VI के काल का सिक्का पहाड़ में कहलाया छेदु डबल
आज भले ही कुमाऊं में दिन के न जाने कितने गीत बनाये जाते हैं पर जन सरोकार से जुड़ा कोई गीत शायद ही कभी कोई बनता हो. राज्य में पिछले दो दशकों में बने गीत सुनकर लगता है कि जैसे प्रेम ही एकमात्र... Read more
जब बंदर और लंगूर के शरीर से बना हुड़का गमकता है
उत्तराखंड के संगीत की बात हुड़के बिना अधूरी है. देवी-देवताओं के जागर हों या उत्सव हुड़का पहाड़ का मुख्य वाद्य हुआ. कुमाऊं के पूज्य देवता गंगानाथ की जागर में तो केवल हुड़का ही बजाया जाता है.... Read more
कुमाऊं क्षेत्र में भाई-बहिन के प्रेम पर बनी रवायतें किसी से नहीं छिपी. लोककथा, लोकगीत, पर्व और परम्पराओं में इस प्रेम की अनेक झांकियां देखने को मिलती है. प्रचलित परम्पराओं के अनुसार बहिन के... Read more
पूंजीवादी व्यवस्था में : कबाड़ और उसका मूल्य
सुबह-सुबह फुटपाथ के किनारे पड़ी हुई पलास्टिक पालीथीन गत्ता कागज पालास्टिक से बने अन्य समान जो अब कूडे का आकार ले चुके है पड़े हुये दिखते है जहां पर हमें यह सब ज्यादा दिखता है उस इलाके के... Read more
सर्दियों में पहाड़ों की रातें
पूस की रातों में कांसे की थाली, ढोल-हुड़के की थाप पर देवता भी अवतरित किए जाते. कहीं गंगनाथ जू तो कहीं भोलानाथजी. भोल ज्यू तो जब आ गए तो बड़े शांत, बोलते भी धीरे-धीरे, कुछ बतायें तो जैसे सलाह... Read more
गोरखा शासनकाल उत्तराखण्ड में गोरख्याणी के नाम से जाना जाता है. सन् 1790 ई. में चैतरिया बहादुर शाह, सेनापति काजी जगजीत पाण्डे, अमरसिंह थापा, एवं सूरवीर थापा के नेतृत्व में गोरखा सेना ने कुमा... Read more
कुमाऊँ में कपड़े और रस्सियाँ बनाने के लिए रेशा निकालने के परम्परागत तौर-तरीक़े
पहनावा या वेशभूषा किसी भी समाज की सांस्कृतिक पहचान है. कुमाऊँ के ठण्डे मौसम में अच्छे गर्म वस्त्रों का उपयोग और भी ज्यादा जरूरी रहा है. इसीलिए वस्त्रों का चलन यहाँ प्रागैतिहासिक काल से ही रह... Read more
उत्तराखंड के इस गांव का नाम अमरीका क्यों पड़ा
यदि आपके पास पासपोर्ट और वीजा नहीं है, कोई टेंसन की बात नहीं, आप बेखौफ अमरीका की सैर कर सकते हैं. यहां तक कि आपकी जेब खाली हो तो भी. चौंक गये न! लेकिन चौंकने वाली बात कुछ नहीं है. यदि आप देव... Read more
शमशेर सिंह बिष्ट ठेठ पहाड़ी थे. उत्तराखंड के पहाड़ी ग्राम्य जीवन का एक खुरदुरा, ठोस और स्थिर व्यक्तित्व. जल, जंगल और ज़मीन को किसी नारे या मुहावरे की तरह नहीं बल्कि एक प्रखर सच्चाई की तरह जी... Read more