रानीबाग यहां का एक पवित्र स्थान माना जाता है यहां एक पुराना चित्रेश्वर शिवालय के नाम से मंदिर है इस मंदिर को 25 जनवरी 1880 में रामगढ़ के चतुर सिंह द्वारा बनवाकर प्रतिष्ठित किया गया था यहां ज... Read more
गूजर: उत्तराखण्ड की तराई के प्रकृतिप्रेमी घुमंतू
गूजर भारत के गडरिया कबीले के लोग हैं. गुजर नाम संस्कृत के गूजर से निकला है, जो आज के गुजरात का मूल नाम था. कहा जाता है कि गूजर मूलतः गो-पालक थे, उन्हें गोचर कहा जाता था. उनका आदि स्थान गुजरा... Read more
बाबा नीम करोली महाराज को लेकर भी श्रद्धालुओं में अगाध श्रद्धा रही है अपने बचपन को याद करते हुए डॉ. मुनगली बताते हैं सन 1952 में जब वह दो-तीन साल के थे घर से बाहर घूमते हुए खो गए. ढूंढ खोज के... Read more
अपने दादा, पिता और चाचा की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए बागेश्वर के आसोन मल्लाकोट निवासी सोनाली मनकोटी भारतीय तटरक्षक सेवा में असिस्टेंट कमांडेंट नियुक्त हुई हैं. सोनाली मनकोटी उत्तराखण्ड के कु... Read more
पहाड़ की प्रमुख मंडी हल्द्वानी के आबाद होने की कहानी बहुत रोचक है. इसका वर्तमान चाहे कितना ही स्वार्थी हो गया हो इसका भूतकाल बहुत ईमानदार और विश्वास पर आधारित था. मूल रूप से रानीखेत के रहने... Read more
बेरोजगारों के साथ खिलवाड़ कर रही है उत्तराखंड सरकार
उत्तराखंड में वर्ष 2019 को रोजगार वर्ष के रूप में मनाने की राज्य सरकार ने घोषणा की है. ‘रोजगार वर्ष’ – नाम से तो ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तराखंड में साल भर नौकरियों की बरसा... Read more
चंद राजाओं के शासनकाल में 36 तरह के राजकर वसूले जाते थे, जिन्हें छत्तीसी कहा जाता था. थातवान परगनाधिकारी— सीरदार या सिकदार के मार्फत कर को राजकोष में जमा करते थे. उपज का छठा भाग ही कर में लि... Read more
सुल्ताना डाकू के छोड़े हुए रुपयों से खरीदी गयी हल्द्वानी के एम. बी. स्कूल की जमीन
काठगोदाम व रानीबाग के बीच ऊँची पहाड़ी पर शीतला देवी का मंदिर है. अब यहाँ चहल-पहल बढ़ गयी है लेकिन पहले यहाँ वीरानी रहा करती थी. इस स्थान को शीतलाहाट नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि चं... Read more
यह कहना गलत न होगा कि उत्तराखण्ड की शादियों में जो रस्में होती थी, उनमें से कई आज बूढ़ी हो चली हैं या यूं कहें की बदलते परिवेश में अपनी प्रासंगिकता खो चुकी हैं. किसी भी समाज की संस्कृति, रीत... Read more
कहते हैं कि हल्द्वानी के इस गांव में कई लोगों को हल चलाते हुए अशर्फियां मिली
गौला पार में कालीचौड़ का मंदिर भी पुरातत्विक महत्त्व का है किन्तु इस सम्बन्ध में अभी तक खोज नहीं की जा सकी है. कहा जाता है कि बिजेपुर गाँव में राजा विजयचंद की गढ़ी थी. उसके निकट ही कालीदेव क... Read more