पिछला भाग जागृत महिला समाज के इन प्रयत्नों के फलस्वरूप ही कुछ समय के लिए पौड़ी व नन्दप्रयाग में महिलाओं के आक्रोश को देखते हुए प्रशासन ने शराब की दुकानें बंद कर दी थी. दूसरी ओर स्वयं जागृत मह... Read more
हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने – 19
बात स्वराज आश्रम से चल कर आजादी के दीवानों की हो रही थी. इसी क्रम में वर्तमान राजनीति पर चर्चा कर लेना भी गलत न होगा. हल्द्वानी शहर आजादी की लड़ाई के समय से ही कुमाऊॅ मंडल की रानजीति का अखाड़ा... Read more
स्वतंत्रता आन्दोलन में उत्तराखण्ड की महिलाएं
उत्तराखण्ड की विशिष्ट भौगोलिक सांस्कृतिक परिस्थितियां होने के कारण यहां की महिलाएं देश के अन्य भागों की महिलाओं की तुलना में अधिकतः कृषि कार्यों में जुड़ी रही हैं. परम्परागत रूप से पहाड़ों की... Read more
नगर पिथौरागढ़ का सम्पूर्ण इतिहास
‘शोर’ परगने को वर्तमान में जिला पिथौरागढ़, जिला बनने से पूर्व पिठौरागढ़, पिठौडागढ़ नाम से पुकारा जाता था. आम बोलचाल और शोरयाली भाषा में इसे शोर कहा जाता था. गंगोली, काली कुमाऊँ, अल्मोड़ा, नैनीता... Read more
हजरत सैंया बाबा
मुझे बचपन की याद है कि मुंशी मत्लुबुर्रहमान खां नगरपालिका, अल्मोड़ा के खोड़ के मुंशी थे. वे नगर-पालिका परिषद् की बिल्डिंग के बांयी ओर गाड़ी सड़क से लगी हुई बोर्ड की बिल्डिंग में अपना दफ्तर का का... Read more
जब स्वराज पार्टी 1923 के चुनाव में वर्तमान उत्तराखण्ड की तीनों प्रांतीय सीटें जीती तो कौंसिल में गोविन्द वल्लभ पन्त को नया सदस्य होने के कारण पीछे की पंक्ति में सीट दी गयी. थोड़े समय बाद जब प... Read more
उत्तराखंड और 1923 का कौंसिल चुनाव
गांधी जी के असहयोग आन्दोलन वापस लेने के बाद सी.आर. दास और पंडित मोतीलाल नेहरू ने स्वराज पार्टी का गठन किया और दिसम्बर 1923 में घोषित चुनाव में भाग लिया. कुमाऊं में चुनाव के लिए उपयुक्त नेताओ... Read more
हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने – 18
आजादी के बाद और कुछ हुआ हो या ना हो मैं कोई नहीं जानता था जिन्हें कोई नहीं जानता था वह ऊंची सीढ़ियां चढ़ गए. लेकिन जो आजादी के लिए दीवानगी की हद तक पार कर गए उनकी स्मृतियां तक मिट गई हैं. हल... Read more
कुमाऊं में मंदिरों के शिखर
पिढ़ा शब्द हिंदी भाषी क्षेत्रों का एक चिर परिचित शब्द है. लकड़ी का बना पटला, जिसे प्रायः भोजन करते समय बैठने हेतु प्रयोग किया जाता है पिढ़ा कहलाता है. प्राचीन काल में पिढ़ा मात्र लकड़ी का मोटा सा... Read more
आजाद हिन्द फौज और गढ़वाली सैनिक
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पूर्वी और पश्चिमी दोनों मोर्चों पर गढ़वाल राइफल्स की 2/18 और 5/18 बटालियन पहले से ही मौजूद थी. 15 फरवरी, 1942 को सिंगापुर पर जापानियों का आधिपत्य हो जाने पर लगभग... Read more