रैमजे ने शुरु कराई कुमाऊं में आलू की खेती
आलू-पालक, आलू-जीरा, आलू-टमाटर, आलू-मटर, दमा आलू और भी अनेकों ऐसी सब्ज़ियां हैं जो बिना आलू के अधूरी हैं. आज आलू के बगैर हम अपने किसी खाने की कल्पना नहीं कर सकते. अगर दुनिया में आलू ना होता त... Read more
बरसों पहले कोकूकोट में कोकू रावत नाम का एक राजा हुआ करता था. राजा कोकू की सात रानियां थी लेकिन कोई पुत्र न था. इसलिए राजा ने एक और विवाह कुंजावती नाम की अद्वितीय सुंदर लड़की से किया. कोकू रा... Read more
देवीधूरा: आस्था की चट्टानें और सच्चाई के प्रहार
कौतूहल, कुछ देख कर उसके बारे में बहुत कुछ, सब कुछ जानने की कोशिश करना संभवतः मनुष्य का जन्म-जात स्वाभाव है. हमारी शोध की प्रवृत्ति, तकनीक, वैज्ञानिक सोच इत्यादि ने हमारे चारों ओर फैली अनगिनत... Read more
छांगरू ग्राम वालों का सौ परिवार
छांगरू ग्राम शौका प्रदेश का नेपाल में स्थित ग्राम है जो महाकाली अंचल दार्चुला जिले के ब्यांस पंचायत में स्थित है. 1815 की नेपाल व ब्रिटिश भारत की सन्धि के अनुसार छांगरू तथा तिंकर ग्राम नेपाल... Read more
देहरादून से कालसी की ओर जाते हुये कालसी से कुछ दूर पहले यमुना नदी से एक छोटी से नदी मिलती है अमलावा. अमलावा और यमुना नदी के संगम पर स्थित है मौर्य राजा अशोक के चौदह शिलालेखों में 13वां शिला... Read more
जब हल्द्वानी में पहली बार आई बिजली
1949-50 से पहले हल्द्वानी में सार्वजनिक प्रकाश व्यवस्था के लिये अधिकतर जगहों पर कैरोसिन तेल के लैम्प जलाये जाते थे. 1929-30 में हल्द्वानी शहर में प्रकाश की व्यवस्था ठेके पर चल रही थी. 1940-4... Read more
1850 तक एक भी पक्का मकान नहीं था हल्द्वानी में
दस्तावेजों में हल्द्वानी का जिक्र 1824 में मिलता है जब उस साल हैबर नाम का एक अंग्रेज पादरी बरेली से अल्मोड़ा जाते हुए यहाँ के बमौरी गाँव से हो कर गुजरा था. (Haldwani History Nineteenth Centur... Read more
शायद ही किसी पर्वत से देशवासियों का इतना जीवन्त रिश्ता हो जितना नंदादेवी से उत्तराखंड क्षेत्र के लोगों का है. उत्तराखंड की आराध्य देवी हैं मां नंदा-सुनंदा. समूचे उत्तराखंड में हिमालय पुत्री... Read more
कुमाऊँ के बेताज बादशाह सर हेनरी रैमजे
भारत में अंग्रेज़ लोग लगभग दो सौ साल तक रहे जिसमें कि ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन काल सौ वर्षों तक— 1757-1858 व ब्रिटिश क्राउन किंगडम का शासन नब्बे वर्षों— 1858.1947 तक रहा. ब्रिटिश शासन... Read more
डॉ शिवप्रसाद डबराल : जिन्होंने अपनी जमीन बेचकर भी उत्तराखंड का इतिहास लिखा
छः वर्षों तक सूरदास बने रहने के कारण लेखन कार्य रुक गया था. प्रकाशन कार्य में निरंतर घाटा पड़ने से प्रेस बेच देना पड़ा. ऑपरेशन से ज्योति पुन: आने पर पता चला कि दर्जनों फाइलें, जिसमें महत्वपूर्... Read more