खूंखार मंडरा रहे हैं और इन सबके बीच एक स्त्री अपनी स्वतंत्रतता में आ जा रही है
समंदर के पास रहने वाली एक लड़की की स्मृति में – शिवप्रसाद जोशी कुछ वर्ष पुरानी एक रेल की धड़धड़ाहट, यादों में उभर आयी. उसने दिन भर काम निपटाया होगा. कोच्चि में उसके ऑफ़िस में उसके सहयो... Read more
अल्मोड़िया राइटर डेढ़ यार: पहुंचे टेसन अंधेरी-खार
अल्मोड़ा से बम्बई चले डेढ़ यार – दूसरी क़िस्त पिछली क़िस्त में उत्तराखंड से हिंदी साहित्य में कूद पड़े हमारे किस्सागो-पुरखों का जिक्र हुआ ही था कि चारों ओर से शिकायती आवाजें उठने लगी … मालू... Read more
शऊर हो तो सफ़र ख़ुद सफ़र का हासिल है – 10
पुलिस का चेहरा बदल रहा है आज आई जी ए के रतूड़ी सर का व्याख्यान हुआ. रतूड़ी सर बोलते हैं तो उनकी आँखें चमकती हैं, लगता है आँखों ही आँखों में सामने वाले को अंदर बाहर से स्कैन कर लेते हैं. पुलिस... Read more
सरग ददा पाणी दे
चौमासे की झुर-झुर ख़त्म होने के बाद का, भीगी खुनक लिए पहाड़ों का मौसम अपने परदेसियों को धाद (आवाज) देने लगता है. दोनों फसलें पक के तैयार होने लगती हैं. एक तरफ धान की पिंगलाई दूसरी तरफ कोदा (मं... Read more
जनता के साथ धोखा हैं भगत सिंह पर बनी फिल्में
भगत सिंह के जीवन पर बनी फिल्में बुद्धिजीवियों और इतिहासकारों के मध्य भी चर्चा का विषय बनी रहीं. इसलिए कि स्वतंत्रता आंदोलन के उस कालखंड (1925-31) पर फिल्माया गया एक क्रांतिकारी का जिंदगीनामा... Read more
तुम क्या समझोगे फिल्मों के लिए हमारा जुनून
तुम क्या समझोगे फिल्मों के लिए हमारा जुनून – दिनेश कर्नाटक आज के बच्चे और नौजवान फिल्मों के साथ हमारे रिश्ते को शायद नहीं समझ सकेंगे. वे नहीं समझ सकेंगे कि जवानी के दिनों में फिल्मों... Read more
पोर्न और नशे से अटती जा रही है बच्चों की दुनिया
“हमने कभी सिखाया नहीं, लेकिन हमारा बेटू हमसे ज्यादा मोबाइल के बारे में जानता है” – हर माँ-बाप की नज़र में अपना बच्चा अनूठा ही होता है. अद्वितीय, गजब मेधा वाला होता है. होना... Read more
जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़ियाँ करतीं हैं बसेरा
घर में मेथी के भुने बीजों में छौंकी गयी लौकी की सब्जी बनी थी जिसे नाश्ते में रात की बासी रोटी के साथ भकोसने के बाद जोसी साहब चंदू पनवाड़ी के खोमचे पर एक हाथ लाल रैक्सीन पर धरे और दूसरे हाथ की... Read more
भूतचरित -शंभू राणा न जाने क्या बात है कि आज-कल लोग भूतों की बात नहीं करते, उनकी कहानियां नहीं सुनाते. जो कि एक ज़माने में बड़ी ही आम बात हुआ करती थी. कहीं ऐसा तो नहीं कि आज आदमी इतना कमीना हो... Read more
चक्की, बुढ़िया और बच्चे की कहानी
सुदूर पहाड़ी गाँव में पठाली से छाये लाल मिट्टी और गोबर से लीपे गए एक घर के कोने मे लगाई जान्द्री (चक्की) में झुरझुराती पूस की बर्फीली झुसमुसी भोर में उस घर की बूढ़ी दादी घुर्र-घुर्र गेहूं पीस... Read more


























