इस तरह बनती थी हमारे घरों की पाथर वाली छत
उत्तराखंड में अब कुमाऊनी शैली के घर बनने लगभग बन्द हो गये हैं. दो दशक पहले तक गांवों में इस शैली के भवन बनते थे लेकिन अब गांव में भी सीमेंट सरिया वाले मकानों का बोलबाला है. कुमाऊनी शैली में... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 123
डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ने एक जगह लिखा है – “लोकोक्तियाँ मानवीय ज्ञान के चोखे और चुभते सूत्र हैं.” यदि वृहद हिंदी कोश का सन्दर्भ लिया जाए तो उस में लोकोक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई... Read more
इंतज़ार : लघु क्षोभ कथा
अंतर देस इ (… शेष कुशल है !) – अरे- अरे देख के ड्राइवर साहब ऊपर पहुँचाओगे क्या…’ लगभग लड़ ही गई थी गाड़ी सामने से आ रही गन्ने से भरी ट्रैक्टर ट्रॉली से. ‘ये सब उप... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 122
डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ने एक जगह लिखा है – “लोकोक्तियाँ मानवीय ज्ञान के चोखे और चुभते सूत्र हैं.” यदि वृहद हिंदी कोश का सन्दर्भ लिया जाए तो उस में लोकोक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई... Read more
उत्तराखण्ड का राज्य वृक्ष बुरांश
बुरांश (Rhododendron Arboreum) को बुरूंश भी कहा जाता है. नेपाल में इसे लाली गुराँस और गुराँस के नाम से जाना जाता है. दरम्याने आकार की मोटी गाढ़ी हरी पत्तियों वाले छोटे पेड़ (Tree Rhododendron)... Read more
कामनापूर्ति मैया कोटगाड़ी भगवती का मंदिर
डीडीहाट और बेरीनाग की वयः संधि पर पूर्वी रामगंगा के तट पर स्थित है थल. थल से एक रास्ता मुवानी होते हुए पिथौरागढ़ जाता है तो दूसरा नाचनी तेजम होते हुए मुनस्यारी की ओर. तीसरी ओर सानी उडियार कां... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 121
डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ने एक जगह लिखा है – “लोकोक्तियाँ मानवीय ज्ञान के चोखे और चुभते सूत्र हैं.” यदि वृहद हिंदी कोश का सन्दर्भ लिया जाए तो उस में लोकोक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई... Read more
‘मैने प्यार किया’ के प्रोड्यूसर बड़जात्या को कौन भूल सकता है. वे निर्देशक सूरज बड़जात्या के पिता थे. बड़जात्या की फिल्मों के बारे मे यह आम राय कायम होकर रह गई कि, वे रामचरितमानस के... Read more
ठैरा और बल से आगे भी बहुत कुछ है कुमाऊनी में
आज अन्तराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है. कुमाउंनी में मातृभाषा के लिये अगर सबसे उपयुक्त शब्द नज़र में आता है वह है दुदबोली. भारत की तमाम भाषाओं की तरह कुमाउंनी भी अपनी अंतिम सांसे गिन रही है. पहाड़... Read more
नामवर सिंह: साहित्यिक-वाचिक परंपरा के प्रतिमान
‘तुम बहुत बड़े नामवर हो गए हो क्या.’ नामवर का नाम एक दौर में असहमति जताने का एक तरीका बनकर रह गया था. वक्ता को हैसियत-बोध कराने का मुहावरा. किंवदंती बनने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल... Read more