लोक देवता लोहाखाम
आइए, मेरे गांव के लोक देवता लोहाखाम के पर्व में चलते हैं. यह पूजा-पर्व ग्यारह-बारह साल में मनाया जाता है. लोहाखाम देवता का थान गांव से दूर जंगल में एक पहाड़ी पर स्थित है. उस जंगल में कभी हमा... Read more
बसंत में ‘तीन’ पर एक दृष्टि
अमित श्रीवास्तव के हाल ही में आए उपन्यास ‘तीन’ को पढ़ते हुए आप अतीत का स्मरण ही नहीं करते वरन् भविष्य में भी झांक सकते हैं. समय तो हमेशा आगे बढ़ता ही रहता है लेकिन मानवता की चुनौ... Read more
अलविदा घन्ना भाई
उत्तराखंड के प्रसिद्ध हास्य कलाकार घनानंद जी ’घन्ना भाई’ हमारे बीच नहीं रहे. देहरादून स्थित एक अस्पताल में आज दोपहर 12:30 बजे लंबी बीमारी के बाद उन्होंने अंतिम सांस ली.(Obituary to Ghanna Bh... Read more
तख़्ते : उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की कहानी
सुबह का आसमान बादलों से ढका है, आम दिनों से काफ़ी कम आमदोरफ़्त है सड़क पर. दूर नज़र आती छोटा कैलाश पहाड़ी घनी धुंध से ढकी है, बमुश्किल, चोटी का छोटा हिस्सा दीख पड़ता है. सरसरी निगाह से दूकान... Read more
जीवन और मृत्यु के बीच की अनिश्चितता को गीत गा कर जीत जाने वाले जीवट को सलाम
मेरे नगपति मेरे विशाल… रामधारी सिंह दिनकर की यह कविता सभी ने पढ़ी होगी. इसके शब्दों, भाव में भी बहे होंगे. और पाठ्य पुस्तक में पढ़ी इस कविता की सुंदर व्याख्या भी की होगी अपनी-अपनी उत्त... Read more
अर्थ तंत्र -विषमताओं से परिपक्वता के रास्तों पर
भारत की अर्थव्यवस्था विषमताओं के अनेक दुश्चक्रोँ का सामना कर रही है. विकसित देश अपरंपरागत आर्थिक नीतियों से आतंकित कर रहे हैं. आयातित वस्तु व सेवाओं पर प्रशुल्क की दर को बढ़ा देने की धमकी मि... Read more
कुमाऊँ के टाइगर : बलवन्त सिंह चुफाल
पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच के संस्थापक अध्यक्ष रहे बलवन्त सिंह चुफाल हल्द्वानी वह भाबर के क्षेत्र में पर्वतीय समाज के लिए एक ऐसा नाम रहा है, जो निडर थे और पहाड़ के किसी व्यक्ति के उत्पीड़... Read more
चेरी ब्लॉसम और वसंत
यहाँ धूप नहीं आती बस छाया है खिड़की के कोने से जो रोशनी आती है उस रोशनी में धूल के चमकीले कण नाचते से लगते है. जीवन बरबस बरस रहा है. (cherry blossom and spring) मेरे बचपन वाले घर के सामने एक... Read more
वैश्वीकरण के युग में अस्तित्व खोते पश्चिमी रामगंगा घाटी के परम्परागत आभूषण
रामगंगा घाटी की स्थानीय बोली में आभूषणों को ‘हतकान’ कहा जाता है, इससे ज्ञात होता है कि प्राचीन समय में यहाँ के लोग कान और हाथों के आभूषणों से ही परिचित थे। इन दोनों अंगों को अलंकृत करने वाले... Read more
मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज उसी का राज था. हमारे शरीर लगातार हिमांक के पास थे और हमारे मन-मस्तिष्कों में भावनाओं का उबाल क्वथनांक से ऊपर पहुँच रहा था.... Read more