नैनीताल में शेरवानी लौज के पन दा की कड़क चाय
नैनीताल में शेरवानी लौज के पन दा की चाय जिसने एक बार पी ली तो समझो वह उस चाय का मुरीद हो गया. मूल रूप से दौलाघट के रहने वाले पनदा का हंसमुख स्वभाव ही ऐसा था कि जिससे दो-चार बातें हुई, उनसे... Read more
ब्रह्मकमल और मोनाल को भले राज्य पक्षी एवं राज्य पुष्प का सम्मानजनक ओहदा मिल चुका हो, लेकिन लोकजीवन व लोकसाहित्य में प्योली, बुरांश तथा न्योली, घुघुती और कफुवा ने जो धमक दी, उससे ये लोकजीवन क... Read more
पहाड़ी लाल कद्दू की ज़ायकेदार चटनी
सर्दियों का मौसम आते ही आप पहाड़ के किसी गांव की ओर चले जायें, आपको छत पर तथा दन्यारों पर लाल-लाल कददू की लम्बी लम्बी कतारें दिख जायेंगी. दरअसल छत पर ही इन पके हुए कद्दुओं का लम्बे समय तक भं... Read more
जब पहाड़ों में मां रोते हुए बच्चे से कहती थी चुप जा नहीं तो ‘हुणियां’ आ जायेगा
छुटपन में बच्चे जब किसी चीज के लिए जिद करते तो डराया जाता – चुप जा, नहीं तो ‘हुणियां’ आ जायेगा. आज की पीढ़ी भले ही हुणियों और उनके खौफ से वाकिफ न हों, लेकिन 60-70 साल पूर्व तक हु... Read more
पिरूल के व्यावसायिक उपयोग से फायदे ही फायदे
उत्तराखण्ड में 500 से 2200 मीटर की ऊॅचाई पर बहुतायत से पाये जाने वाले चीड़ के पेड़ों की पत्तियों को पिरूल नाम से जाना जाता है. उत्तराखण्ड वन सम्पदा के क्षेत्र में समृद्ध तो है ही, साथ ही चीड... Read more
ग्रेजुएट ब्वारियों की चाहत बनाम पहाड़ से पलायन : उत्तराखण्ड स्थापना सप्ताह पर विशेष
उन्नीस साल के युवा उत्तराखण्ड को एक लाइलाज रोग लग गया है – पलायन का. इस रोग की गम्भीरता ऐसी है कि इसने यहाँ की अन्य बीमारियों (समस्याओं) को नजरअन्दाज कर दिया है. होता भी यही है. जब छोट... Read more
आचार्य नरेन्द्र देव जिन्हें अपना संस्कार-पिता मानते थे नैनीताल के प्रताप भैया
आचार्य नरेन्द्र देव की 130 वीं जयन्ती पर विशेष : आचार्य नरेन्द्र देव का बहुमुखी व्यक्तित्व ही ऐसा था कि उन्हें किसी दायरे में रखकर समेटना संभव नहीं. वे एक समाजवादी चिन्तक होने के साथ-साथ, प्... Read more
उत्तराखण्डी गीतों में ‘अस्यारी को रेटा’ का मतलब
उत्तराखण्ड का लोकमानस जिस प्रकार अपनी सभ्यता व संस्कृति की एक अलग पहचान रखता है, उसी तरह यहां के लोकसाहित्य का भी अपना अनूठा स्वरूप है. मेरे पिछले लेख में उल्लेख था कि किस प्रकार एक ही शब्द... Read more
जब से हमने होश संभाला, कुमांऊनी का गाना – ‘चैकोटकि पारबती तीलै धारू बोला बली, तीलै धारू बोला’ अथवा ‘ओ लाली हो लाली हौंसिंया, बसन्ती लाली तीलै धारू बोला’ जैसे गीत सुनते आये हैं. अब तो रोचक बन... Read more
भले कुमांउनी भाषा न होकर अभी तक बोली ही मानी जायेगी, क्योंकि न तो इस का मानकीकरण हुआ है और न व्याकरण. लेकिन लिपिबद्धता की सीमितता के बावजूद वाचिक परम्परा से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित इस का... Read more