अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 11
गुडी गुडी डेज़ (हीरामन– हीराबाई संवाद; नाम में क्या रक्खा है) अमित श्रीवास्तव हीराबाई- हीराबाई हीरामन- हीरामन हीराबाई- आह! हीरा! हम तुमको मीता कहेंगे फिर… हमारा नाम एक ही है न इसलिए हीर... Read more
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 10
गुडी गुडी डेज़ अमित श्रीवास्तव तंत्री-नाद कबित्त-रस सरस राग रति-रंग. अनबूड़े बूड़े तरे जे बूड़े सब अंग!! सरिता देवी. सुंदरी. सरिता सुंदरी. सस्सु. अपनी सस्सु. बला की खूबसूरत. हालांकि किसी ने आ... Read more
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 9
गुडी गुडी डेज़ अमित श्रीवास्तव हीरामन उवाच-2 (बजाए जा तू प्यारे हनुमान चुटकी) अजीब सी बातें करने लगा था हीरामन. असम्बद्ध बोलता. बोलता तो बोलता ही चला जाता चुप लगाता तो लगता व्रत धारण कर रक्ख... Read more
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 8
गुडी गुडी डेज़ अमित श्रीवास्तव बतखोर चा का सपना (बतखोर चा की झूठी डायरी का पन्ना जो उन्होंने जान-बूझकर हवा में उड़ाया था, कल हाथ लग गया. पाठकों को हिदायत दी जाती है कि इसे पढ़कर अपने रिस्क पर ह... Read more
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 7
गुडी गुडी डेज़ अमित श्रीवास्तव झुटपुटे के खेल पूस का महीना था.शाम का समय.पप्पन उदास बैठे थे. इसके प्रदर्शन के लिए उन्होंने ये किया था कि आँखें ऊपर जहां भी शून्य लिखा हुआ हो वहां और अपनी तशरीफ़... Read more
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 6
गुडी गुडी डेज़ अमित श्रीवास्तव बॉबी चचा के जज़्बात @ मौक़ा-ए-वारदात गुडी गुडी मुहल्ले में एक पुलिस थाना खुला और जैसा कि होना चाहिए उसके खुलते ही वहां अपराध बढ़ने लगे. कुछ लोग इस घटना को ‘आवश्यकत... Read more
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 5
गुडी गुडी डेज़ अमित श्रीवास्तव हीरामन उवाच ‘गुडी गुडी मुहल्ले की निवर्तमान सामाजिकी चार आप्त वाक्यों से मिलकर बनी थी,’ कहता हीरामन, ‘इन्हें ही लोकतंत्र के चार मजबूत स्तम्भ भी कहा जा सकत... Read more
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 4
गुडी गुडी डेज़ अमित श्रीवास्तव सासति करि पुनि करहि पसाउ | नाथ प्रभुन्ह कर सहज सुभाउ || सबकुछ अचानक हुआ था. जैसे गणेश जी दूध पी लिए. जैसे दीवार पर साईं भगवान दिखने लगे. जैसे दुखिया के घर-आँगन... Read more
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 3
पिछली कड़ी गुडी गुडी डेज़ -अमित श्रीवास्तव उन दिनों कोई ख़बर बम की तरह नहीं फूटती थी. सिलिर-सिलिर जलती रहती. बीच-बीच में कोई सूखा समय देख कर झर्रर से लपक उठती फिर धीरे-धीरे राख़ सी बैठ जाती. पून... Read more
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 2
पिछली कड़ी गुडी गुडी डेज़ -अमित श्रीवास्तव बतकुच्चन मामा फैल गए थे. ये बात उनको नागवार गुज़री थी. वैसे तो अपने ख़िलाफ़ चूं भी उनको नागवार गुज़रती थी ये तो चों थी. उन्होंने फनफनाते हुए लौंडों को दे... Read more