कहानी : बीस साल बाद
-ओ हेनरी एक पुलिस अधिकारी बड़ी फुर्ती से सड़क पर गश्त लगा रहा था. रात के अभी मुश्किल से 10 बजे थे, लेकिन हलकी-हलकी बारिश तथा ठंडी हवा के कारण सड़क पर बहुत कम आदमी नजर आ रहे थे. सड़क के एक छ... Read more
ईदगाह : मुंशी प्रेमचंद की यादगार कहानी
1 रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी है. कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभाव है. वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है. आज का सूर्य देखो, कितना... Read more
अनुपमा का प्रेम
ग्यारह वर्ष की आयु से ही अनुपमा उपन्यास पढ़-पढ़कर मष्तिष्क को एकदम बिगाड़ बैठी थी. वह समझती थी, मनुष्य के हृदय में जितना प्रेम, जितनी माधुरी, जितनी शोभा, जितना सौंदर्य, जितनी तृष्णा है, सब छ... Read more
कहानी : कोतवाल का हुक्का
आज सुबह तीन पानी के पास उस फ़कीर की लाश मिली थी. कुछ दिन से शहर में एक फ़कीर को देखा जा रहा था. फ़कीर क्या, लोग तो उसे पागल समझ रहे थे. वो तो उसने जब, यूं ही बेवजह आँखें नहीं झपकाईं, किसी की... Read more
कहानी : धनिया की साड़ी
लड़ाई का ज़माना था, माघ की एक साँझ. ठेलिया की बल्लियों के अगले सिरों को जोडऩे वाली रस्सी से कमर लगाये रमुआ काली सडक़ पर खाली ठेलिया को खडख़ड़ाता बढ़ा जा रहा था. उसका अधनंगा शरीर ठण्डक में भी... Read more
लीला गायतोंडे की कहानी : ओ रे चिरुंगन मेरे
माँ की मौत के दो दिन गुज़रे थे. उसकी याद में मुझे बार-बार रोना आ रहा था. पिता जी दिन-रात सिर पर हाथ रखे कोने में बैठे रहते. उन्हें देख कर तो मुझे माँ की याद और भी सताती थी. हर रात माँ मुझे ब... Read more
ज्ञानरंजन की कहानी ‘छलांग’
श्रीमती ज्वेल जब यहाँ आकर बसीं तो लगा कि मैं, एकबारगी और एकतरफा, उनसे फँस गया हूँ और उन्हें छोड़ नहीं सकता. एक गंभीर शुरुआत लगती थी और यह बात यूँ सच मालूम पड़ी कि दूसरे साथियों की तरह, मैं ल... Read more
हीरे का हीरा : चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी
आज सवेरे ही से गुलाबदेई काम में लगी हुई है. उसने अपने मिट्टी के घर के आँगन को गोबर से लीपा है, उस पर पीसे हुए चावल से मंडन माँडे हैं. घर की देहली पर उसी चावल के आटे से लीकें खैंची हैं और उन... Read more
काली कुमाऊँ का शेरदा
पिछले कुछ दिनों जैसा उदास और रूखा-सूखा दिन था. बारिश न होने के कारण मौसम खुश्क हो चला था. जनवरी का महीना ढलान पर था, लेकिन अभी से धूप में बैठना मुश्किल होता जा रहा था. मौसम की इस बेरुखी ने ल... Read more
कहानी : नदी की उँगलियों के निशान
नदी की उंगलियों के निशान हमारी पीठ पर थे. हमारे पीछे दौड़ रहा मगरमच्छ जबड़ा खोले निगलने को आतुर! बेतहाशा दौड़ रही पृथ्वी के ओर-छोर हम दो छोटी लड़कियाँ. मौत के कितने चेहरे होते हैं अनुभव किया... Read more