इस बात के साक्ष्य मिलते हैं कि उत्तराखंड क्षेत्र के पहले शासक कत्युरों की पहली राजधानी जोशीमठ में थी. यह भी माना जाता है कि जोशीमठ के मंदिर का निर्माण भी कत्युरों के आदिपुरुष वासुदेव ने ही किया. यह माना जाता है कि आदिपुरुष वासुदेव और वसंतदेव एक ही व्यक्ति हैं. कत्यूर शासक जोशीमठ छोड़ बैजनाथ के पास क्यों बसे इस सवाल का तथ्यपरक जवाब इतिहासकारों के पास नहीं हैं लेकिन इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि कत्यूर शासकों का जोशीमठ से घनिष्ट संबंध रहा है.
(Capital of Katyuri Dynasty)
जोशीमठ के प्राचीन मंदिर से प्राप्त शिलालेख में कत्यूर आदिपुरुष वासुदेव के नाम का शिलालेख लगा होना इस तथ्य को और पुष्ट करता हैं कि कत्यूर शासकों का जोशीमठ से संबंध था. कत्युरों ने जोशीमठ क्यों छोड़ा इस विषय पर बद्रीदत्त पांडे ने एक अपनी किताब कुमाऊं का इतिहास में एक कथा लिखी है. इस कथा के अनुसार-
एक बार वसंतदेव का कोई वंशज राजा जंगल में शिकार खेलने गया हुआ था. जिस समय राजा जंगल में शिकार खेलने गया था ठीक उसी समय भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में राजा के घर चले गये. रानी ने उनका खूब आदर सत्कार किया जिसके बाद भगवान नरसिंह पलंग पर लेट गये. जब राजा शिकार से लौटा ने उसने अपने देखा कि उसके घर की पलंग में कोई पुरुष बैठा है. राजा ने आव देखा न ताव सीधा तलवार निकाली और भगवान नरसिंह का हाथ काट दिया.
(Capital of Katyuri Dynasty)
भगवान नरसिंह का हाथ कटते ही उसमें से दूध निकलने लगा. यह देख राजा को अहसास हुआ की उनके घर पर आया अतिथि को सामान्य व्यक्ति नहीं. रानी ने उसे बताया कि वह देवता हैं. इसपर राजा काफ़ी लज्जित हुआ और उसने मांफी मांगी तब भगवान विष्णु ने कहा कि तुमने अपराध किया है इसका दंड तुम्हें जरुर मिलेगा. भगवान ने राजा से कहा-
मैं नरसिंह हूँ. मैं तेरे राज-काज से बहुत खुश था इसलिए तेरे घर आया था. तेरे अपराध का दंड यह है कि तू जोशीमठ से चला जा.
इस तरह कत्युरों को जोशीमठ छोड़ना पड़ा और बैजनाथ के आस-पास की घाटी में बसना पड़ा. कत्यूर घाटी में बैजनाथ के आस-आस का क्षेत्र कत्युरों की दूसरी राजधानी कही जाती है.
(Capital of Katyuri Dynasty)
–बद्रीदत्त पांडे और राहुल सांकृत्यायन की पुस्तकों के आधार पर
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