20 मई 1900 को उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक स्थान में जन्मे सुमित्रानंदन पन्त (Sumitra Nandan Pant) हिन्दी कविता में छायावाद के मजबूत स्तम्भ माने जाते हैं. उनकी प्रमुख कृतियों में चिदम्बरा, वीणा, पल्लव, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, युगवाणी, लोकायतन और कला और बूढ़ा चांद इत्यादि शामिल हैं. उन्हें उनकी विविध रचनाओं के लिए उन्हें 1960 का साहित्य अकादमी और 1968 का ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ था. 28 दिसम्बर 1977 को उनका प्राणांत हुआ. यहां प्रकाशित कविता बुरूंश उनके द्वारा कुमाऊंनी में लिखी एकमात्र कविता है.
(Sumitranandan Pant Poem in Kumaoni)
बुरूंश
सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां,
फुलन छै के बुरूंश! जंगल जस जलि जां.
सल्ल छ, दयार छ, पई अयांर छ,
सबनाक फाडन में पुडनक भार छ,
पै त्वि में दिलैकि आग, त्वि में छ ज्वानिक फाग,
रगन में नयी ल्वै छ प्यारक खुमार छ.
सारि दुनि में मेरी सू ज, लै क्वे न्हां,
मेरि सू कैं रे त्योर फूल जै अत्ती माँ.
काफल कुसुम्यारु छ, आरु छ, अखोड़ छ,
हिसालु, किलमोड़ त पिहल सुनुक तोड़ छ ,
पै त्वि में जीवन छ, मस्ती छ, पागलपन छ,
फूलि बुंरुश! त्योर जंगल में को जोड़ छ?
सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां,
मेरि सू कैं रे त्योर फुलनक म’ सुंहा
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