चार्लेमागेन के दौर से यूरोपीय संघ तक एकीकृत यूरोप का विचार लगातार जारी रहा. लेकिन इसकी वजह अलग-अलग समय पर अलग-अलग थी. कभी सैन्य विस्तार, कभी ईसाई धर्म तो कभी व्यापार. देशों की राष्ट्रीय सीमाएं कई बार बदली, कई बार भाषाएं बदली. जूलियस सीज़र ने सबसे पहले यूरोप को एक साम्राज्य तले लाने की कोशिश की थी.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए यूरोप में प्रयास शुरू हुये. युध्द के बाद यूरोपीय देशों के उपनिवेशों में भारी कमी के कारण युध्द खर्च उठा पाना भी व्याहारिक नहीं रहा था. अतः इस सोच के साथ कि जो देश एक साथ व्यापार करेंगे वो एक दूसरे के खिलाफ़ युद्ध करने से बचेंगे, पहला सफल प्रस्ताव 1951 में आया जब यूरोप के कोयला एवं स्टील उद्योग लॉबी ने लामबंदी शुरु की. यूरोपीय संघ का जन्म 1957 में रोम की संधि द्वारा यूरोपीय आर्थिक परिषद के माध्यम से छह यूरोपीय देशों की आर्थिक भागीदारी से हुआ था. आज यूरोपीय संघ (ई.यू.) में यूरोप में स्थित 28 देशों का एक राजनीतिक एवं आर्थिक मंच है. सबसे अंत में जुड़ा देश है क्रोएशिया जो एक जुलाई, 2013 से ई.यू. का सदस्य है. यूरोपीय महाद्वीप में कुल देशों की संख्या लगभग 50 है. ई.यू. क्षेत्रफल के मामले में पूरे यूरोप का आधा भी नहीं है. जर्मनी, फ्रांस, डेनमार्क, इटली और स्वीडन जैसे समृद्ध देश यूरोपीय संघ का हिस्सा है. नॉन ई.यू. यूरोपीय देशों में स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, यूक्रेन, सर्बिया और बेलारूस जैसे देश भी शामिल हैं. 2018 में पूरे यूरोप की जीडीपी लगभग 20,200 अरब डॉलर है जिसमें लगभग ई.यू. का 18,400 अरब डॉलर हिस्सा रहने की उम्मीद है.
1993 में मास्त्रिख संधि (नीदरलैंड) द्वारा इसके आधुनिक वैधानिक स्वरूप की नींव रखी गयी तथा दिसम्बर 2007 में लिस्बन समझौते द्वारा इसमें और व्यापक सुधारों की प्रक्रिया 1 जनवरी, 2008 से शुरु की गई. यूरोपीय संघ सदस्य राष्ट्रों को एकल बाज़ार के रूप में मान्यता देता है एवं सदस्य राष्ट्र के नागरिकों की चार तरह की स्वतंत्रताएँ सुनिश्चित करता है:- लोगों, सामान, सेवाओं एवं पूँजी का स्वतंत्र आदान-प्रदान. संघ सभी सदस्य राष्ट्रों के लिये एक तरह की व्यापार, मत्स्य, क्षेत्रीय विकास की नीति पर अमल करता है. 1999 में यूरोपीय संघ ने साझी मुद्रा यूरो की शुरुआत की जिसे पंद्रह सदस्य देशों ने अपनाया वर्तमान में 19 देशों ने यूरो को अपनी मुद्रा के रूप में मान्यता दी है. यूरोपीय संघ के महत्त्वपूर्ण संस्थानों में यूरोपियन कमीशन, यूरोपीय संसद, यूरोपीय संघ परिषद, यूरोपीय न्यायालय एवं यूरोपियन सेंट्रल बैंक इत्यादि शामिल हैं. 2012 में यूरोप में शांति और सुलह, लोकतंत्र और मानवाधिकारों की उन्नति में अपने योगदान के लिये ई.यू. को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
पिछले कई वर्षों से ब्रिटेन के ई.यू. छोड़ने की खबरें सुनने को मिलती हैं. ब्रिटेन में डेविड कैमरुन ने 2015 का आम चुनाव इसी बात पर जीता कि चुनाव जीतने पर वह इंग्लैंड के ई.यू. में बने रहने के प्रश्न पर जनमत संग्रह करायेंगे. कैमरुन के चुनाव जीतने के बाद कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद और यूके इंडिपेंडेंस पार्टी लगातार दबाव बना रहे थे कि ई.यू. के विषय पर जनमत संग्रह कराया जाय. उनका मानना था कि जब से ब्रिटेन ने 1975 में ई.यू. में रहने के पक्ष में वोट किया तब से कभी भी ब्रिटेन की ई.यू. में चली ही नहीं. इसके बाद से ही ब्रेक्सिट शब्द लोकप्रिय हो गया. ब्रेक्सिट (BREXIT) शब्द का मतलब है कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ छोड़ेगा.
वैश्विक नेताओं की आर्थिक चेतावनियों के प्रति प्रतिक्रियात्मक मनोदशा, इस्लामोफोबिया, ब्रिटेन में प्रवासियों की बढ़ती संख्या, ई.यू. पर जर्मनी एवं फ्रांस की मोनोपाली की प्रवृत्ति, ई.यू. द्वारा अत्यधिक शर्तें थोपने की नीति, 2008 के आर्थिक संकट के बाद ई.यू. की कमजोरियाँ उजागर होना आदि कुछ मुख्य कारण हैं जिसने ब्रिटेन में ई.यू के खिलाफ माहौल बनाया.
ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से बाहर होने या न होने यानी `ब्रेक्ज़िट` को लेकर 23 जून 2016 को मतदान हुआ जिसमें 51.9% लोगों ने `लीव ई.यू.` (BREXIT) तथा 48.1% लोगों ने `रिमेन ई.यू.`(BRIMAIN) के पक्ष में वोट दिया. मतलब जनादेश ई.यू. छोड़ने का था.
इसके बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरुन को इस्तीफा देना पड़ा और इंग्लैंड की प्रधानमंत्री टेरिजा मे बनी. मार्च 2017 में ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीजा मे उस पत्र पर हस्ताक्षर किए जिसने ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर होने की प्रक्रिया शुरू की. सितम्बर 2018 में ब्रिटेन के यूरोपीय संघ (ई.यू.) से अलग होने के लिए ब्रिक्सिट के चौथे चरण की वार्ता शुरू हुई. ब्रिटेन के ई.यू. से अलग होने के दो साल के संक्रमण काल के ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरेसा मे के प्रस्ताव पर यूरोपीय प्रतिनिधिमंडल को अपना जवाब देने का यह पहला अवसर है. यूरोपीय परिषद के प्रमुख डॉनल्ड टस्क ने बीते शुक्रवार को ऑस्ट्रिया के साल्जबर्ग में घोषणा की थी कि ब्रिटेन की ब्रेग्जिट योजना व्यावहारिक नहीं है. ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीज़ा मे ने यूरोपीय यूनियन के रुख पर नाराजगी जाहिर की और कहा कि ब्रेक्ज़िट की बातचीत में ब्रिटेन का सम्मान होना चाहिए. टेरीज़ा मे ने चेतावनी देते हुए कहा था कि वो बातचीत से हटने के लिए तैयार हैं. इसी बीच टेरेसा मे ने दृढ़ता के साथ कहा था, ‘मैं जनमत के नतीजों को नहीं बदलूंगी और अपने देश को भी नहीं टूटने दूंगी.’ ब्रिग्जिट पर अपने रुख को दोहराते हुये उन्होंने कहा कि ‘बुरे समझौते से बेहतर है कि कोई समझौता न हो.’
टेरेसा मे ने 22 सितंबर के अपने भाषण में ब्रिटेन के 2019 में ई.यू. छोड़ने के बाद दो साल के संक्रमण काल के दौरान ई.यू. को भुगतान करने का प्रस्ताव दिया था. उन्होंने सदस्य देशों को भरोसा दिलाया था कि ई.यू. को मौजूदा बजट अवधि के दौरान वित्तीय नुकसान नहीं होगा. ई.यू. की बजट अवधि 2020 तक चलेगी. वहीं, ब्रेक्ज़िट सेक्रेट्री डोमिनिक राब ने कहा कि यूरोपीय संघ की तरफ़ से कोई भी ‘विश्वसनीय विकल्प’ नहीं दिया गया. बिना किसी स्पष्टीकरण के उनकी योजनाओं को रोकने पर उन्होंने ई.यू. की समझौते को लेकर गंभीरता पर भी संदेह जताया.
अगले महीने ई.यू. के नेता नागरिकों के अधिकारों, आयरिश सीमा व तलाक बिल या वित्तीय निपटान सहित अलगाव के मुद्दे पर उचित फैसला लेंगे. इस बातचीत से फैसले पर ब्रिटेन के साथ भविष्य के द्विपक्षीय व्यापारिक संबंध निर्धारित होंगे. ब्रिटेन और यूरोपीय संघ नवंबर मध्य तक किसी न किसी समझौते पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. ब्रिटेन 29, मार्च 2019 को यूरोपीय संघ से अलग होने वाला है.
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