कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल है. यह मंदिर गढ़वाल क्षेत्र के रुद्रप्रयाग जिले में है. यह स्थान भगवान कार्तिक (भगवान शिव के जेष्ठ पुत्र) को समर्पित है. कार्तिक स्वामी मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में हुआ था और यह एक प्राचीन संगीतान्तर मंदिर के रूप में जाना जाता है. यहां पर अनुष्ठान, पूजा, और अन्य धार्मिक कार्यक्रम नियमित रूप से होते हैं. यह मंदिर अपने प्राकृतिक सौंदर्य, शांति और धार्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है. यहां पर धार्मिक आस्था के साथ-साथ पर्यटकों की भी भीड़ लगी रहती है जो इस प्राचीन मंदिर को दर्शन करने आते हैं. कार्तिकस्वामी यात्रा का उल्लेख तमिलनाडु और केरल में अधिक है. जून के महीने में हर साल यहां विशेष अनुष्ठान होता है. स्कंद पुराण में इस क्षेत्र का वर्णन है. यहां से हिमालय के दिव्य दर्शन होते हैं. सूर्योदय और सूर्य अस्त का यहां से मनमोहक नजारा दिखता है. (Karthik Swami Temple)
भगवान कार्तिक स्वामी का मंदिर क्रौंच पर्वत पर स्थित है और यह एक प्रमुख पर्वत श्रृंग है. क्रौंच पर्वत का नाम वेदों में भी उल्लेखित है और यह भारतीय पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. क्रौंच पर्वत का प्राकृतिक सौंदर्य और मनोहारी वातावरण लोगों को आकर्षित करता है. इसके चारों ओर घने वन, ऊँची चोटियाँ हैं. यहां पर प्राकृतिक जीवन की विविधता भी है और यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी है. क्रौंच पर्वत के चारों ओर विविध वन्यजीवन संरक्षित क्षेत्र हैं, जिनमें बहुत सारी प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जैसे कि हिरन, गुलदार, भालू, और अन्य जानवर. यहां स्थान यात्रा, ट्रेकिंग, और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए आने वाले पर्यटकों का भी पसंदीदा स्थल है.
क्रौंच पर्वत से निकलने वाली नदी नीलगढ़ (नीलकंठ) है. इस नदी का प्राकृतिक सौंदर्य और शांतिपूर्ण वातावरण लोगों को आकर्षित करता है. यह नदी कई छोटे-बड़े गाँवों से गुजरती है और स्थानीय लोगों के लिए जीवन का मुख्य स्रोत है. नदी के किनारे पर्यटकों को पानी के किनारे का सैर, पिकनिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने का अवसर मिलता है. नीलगढ़ नदी के पास कई छोटे गांव कान्दी, जाबरी, क्यूजा आदि है. चंद्रापुरी में यह नदी मंदाकिनी नदी में मिल जाती है. यहां पर धार्मिक स्थलों, मंदिरों, और प्राकृतिक दर्शनीय स्थलों के साथ-साथ आपको प्राकृतिक सौंदर्य का भी आनंद मिलता है. इस नदी का कठोर पहाड़ से निकला ही अपने आप में विशिष्ठ बनाता है. इस नदी में 360 छोटे-बड़े कुंड भी हैं.
क्रौंच पर्वत के कार्तिक स्वामी मंदिर तक पहुँचने का रास्ता उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग से पोखरी-मोहनखाल मोटर मार्ग से है. कनकचौरी से करीब पांच किमी की पैदल दूरी पर मंदिर स्थित हैं. मंदिर तक पहुंचने के लिए सुंदर नैर और मौर के जंगल से गुजरना होता है. जिसकी ख़ुशबू मंत्रमुग्ध कर देती है. कार्तिक स्वामी मंदिर तक पहुँचने के लिए यात्रियों को कई प्रकार की परिवहन सेवाएं उपलब्ध हैं. रुद्रप्रयाग क्षेत्र में यात्रा करने से पहले स्थानीय परिवहन सेवाओं के बारे में जानकारी लें और अपनी यात्रा की योजना बनाएं. दूसरा रास्ता चंद्रापुरी के बांसबाड़ा से कान्दी जाबरी होते हुए है.
कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल है. यह मंदिर भगवान कार्तिक (भगवान शिव के जेष्ठ पुत्र) को समर्पित है. इसका धार्मिक महत्व कार्तिक मास के अमावस्या के दिन विशेष रूप से होता है, जब लोग यहां पर यात्रा करते हैं और भगवान कार्तिक की पूजा-अर्चना करते हैं. इस मंदिर का महत्व पुराणों में वर्णित है, इस स्थान पर भगवान कार्तिक ने ध्यान किया था. यहां पर भगवान कार्तिक की उपासना का अत्यधिक महत्व है और यहां पर भगवान की कृपा को प्राप्त करने के लिए श्रद्धालु आते हैं. मान्यता है कि यहां पर भगवान कार्तिक की पूजा करने से शिव भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, और उन्हें धार्मिक उत्साह और शांति मिलती है. कार्तिक स्वामी मंदिर के पास कई धार्मिक और पर्यटन स्थल हैं, जो लोगों को अपनी आत्मिक और शारीरिक ताजगी के लिए आकर्षित करते हैं. यहां पर प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ धार्मिक वातावरण भी है, जो शिव भक्तों को ध्यानाकर्षण में मदद करता है.
क्रौंच पर्वत पर क्रौंच रंध्र है, जो पर्वत के बीच में एक छेद है. क्रौंच पर्वत को विष्णुपुराण 2, 4, 50-51 में उल्लिखित क्रौंच द्वीप के सप्त पर्वतों में से एक बताया गया है- ‘क्रौंचश्चवामनश्चैवतृतीश्चांधकारक: चतुर्थो रेत्नशैलस्य स्वाहिनीहयसन्निभ…’ दूसरी ओर पौराणिक कथा से ज्ञात होता है कि परशुराम ने धनुर्विद्या समाप्त करने के पश्चात् हिमालय में बाण मारकर आर-पार मार्ग बना दिया था. इस मार्ग से ही मानसरोवर से दक्षिण की ओर आने वाले हंस गुजरते थे. इस मार्ग को ‘क्रौंच रंध्र’ कहते थे. दूसरी ओर ‘मेघदूत’ (उत्तर मेघ 59) में भी क्रौंच रंध्र का सुंदर वर्णन है- ‘प्रालेयाद्रेरुपतट मतिक्रम्यतां स्तान् विशेषान् हंसद्वारं भृगुपति यशोवस्मै यत्क्रौंचरन्ध्रम्.’ अर्थात् हिमालय के तट में क्रौच रंध्र नामक घाटी है, जिसमें होकर हंस आते-जाते हैं; वहीं परशुराम के यश का मार्ग है. इसके अगले छन्द 30 में कैलाश का वर्णन है. इस प्रकार वाल्मीकि और महाकवि कालिदास दोनों ने ही क्रौंच पर्वत तथा क्रौंच रंध्र का उल्लेख कैलाश के निकट किया है. अन्यत्र भी ‘कैलासे धनदावासे क्रौंच: क्रौंचोऽभिधीयते’ कहा गया है. कालिदास ने क्रौंच रंध्र से संबंधित कथा का ‘रघुवंश’ 11, 74 में भी निर्देश किया है-‘विभ्रतोस्त्रमचलेऽप्यकुंठितम्’ अर्थात् मेरे (परशुराम) अस्त्र या बाण को पर्वत (क्रौंच) भी न रोक सका था.
कार्तिक स्वामी मंदिर का स्थान हिमालय की विविधता और प्राकृतिक सौंदर्य के बीच स्थित है. यह स्थान ध्यान और आध्यात्मिकता के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है. हिमालय की वन्यजीवनी, ऊँचाई, बर्फबारी, नदियाँ, और अन्य प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव करने के लिए कार्तिक स्वामी मंदिर से हिमालय के दर्शन एक अद्वितीय अनुभव हो सकता है. यहाँ विभिन्न स्थान हैं जिन्हें आप कार्तिक स्वामी मंदिर से जाकर देख सकते हैं, जैसे की चंद्रशिला, तुंगनाथ मंदिर, देवरिया ताल और अन्य. इन स्थानों पर आपको प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने का अवसर मिलेगा. इसके अलावा, आप बड़े हिमालयी श्रृंगों के अनुभव, हिमनदों के किनारे, और जड़ी-बूटियों के अद्भुत संग्रहण का आनंद ले सकते हैं. यह सभी स्थल आपको ध्यान और आत्म-विकास के लिए एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक माहौल प्रदान करेंगे, साथ ही प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव करने का मौका देंगे. इसे अपने यात्रा के भाग के रूप में शामिल करने से, आप एक अद्वितीय और यादगार अनुभव प्राप्त कर सकते हैं.
कार्तिक स्वामी मंदिर में वन देवियों की ओखलियां उनसे थोड़ी दूरी पर स्थित हैं. ये ओखलियां विशेष रूप से प्राकृतिक चट्टानों पर खोद कर बनी हुई है. यहाँ पर आने वाले पर्यटक वन देवियों की ओखलियों का दर्शन करते हैं और इस प्राकृतिक स्थल के सौंदर्य का आनंद लेते हैं. कार्तिक स्वामी मंदिर और वन देवियों की ओखलियां दोनों ही उत्तराखंड के प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थल हैं, और पर्यटकों के बीच लोकप्रियता का भी आनंद लेते हैं.
कार्तिक स्वामी में पर्यटन योजना को नहीं लगे पंख
धार्मिक महत्व के कार्तिक स्वामी मंदिर में अभी भी पर्यटन योजनाओं को पंख नहीं लगे हैं. सरकार की ओर से यहां पर धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. आज भी यहां पर बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. रहने के लिए गेस्ट हाउस का अभाव है. सड़क की स्थति और पार्किंग की व्यवस्था भी ठीक नहीं है. यहां पर रोपवे को लेकर भी केवल घोषणाएं हुई हैं. (Karthik Swami Temple)
पेशे से पत्रकार विजय भट्ट देहरादून में रहते हैं. इतिहास में गहरी दिलचस्पी के साथ घुमक्कड़ी का उनका शौक उनकी रिपोर्ट में ताजगी भरता है.
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नदी का नाम नीलगाढ़ होना चाहिए। गाढ़ का मतलब नदी होता है। गढ़ का मतलब किला। वैसे ही मुक्तेश्वर के नीचे स्थान का सही नाम रामगाढ़ है जो वहां बहती नदी का भी नाम है, न कि रामगढ़।