राष्ट्रपति के सामने होने वाले बीटिंग रिट्रीट समारोह की औपचारिक शुरुआत हो चुकी थी. रायसीना हिल्स की इस शाम में ठंड खूब थी और आसमान में लगे घने काले बादल अब बारिश की बूंदें बरसाने लगे थे. तभी भारतीय सेना के बैण्ड ने ड्रम और मशकबीन संग बेडू पाको बारामासा की धुन पर ‘क्विक मार्च’ शुरू किया. बेडू पाको से शुरु एक के बाद एक छः लोक धुनों ने अब रायसीना का माहौल बदल दिया.
(Bedu Pako Baramasa Army Band 2023)
बेडू पाको बारामासा उत्तराखंड में गाया जाने वाला सर्वाधिक लोकप्रिय गीत है. बेडू पाको बारामासा लोकगीत को उत्तराखंड की पहचान के तौर पर देखा जाता है. किसी राष्ट्रीय मंच पर संभवतः इस लोकगीत पहली बार साल 1955 में गाया गया. मौका था रूस से आये दो मेहमानों ख्रुश्चेव और बुल्गानिन का भारत में भव्य स्वागत का. इस लोकगीत को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले शख्स थे मोहन उप्रेती.
माना जाता है कि बेडू पाको बारामासा भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का सबसे पंसदीदा लोकगीत था. यह भी कहा जाता है कि 1955 में जब जवाहर लाल नेहरू ने यह लोकगीत सुना तो वह मोहन उप्रेती से खासे प्रभावित भी हुए. यह बेहद रोचक है कि भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू प्रेम से मोहन उप्रेती को ‘बेडू बॉय’ कहा करते. बेडू पाको गीत की दिलचस्प कहानी यहां पढ़िये: नरैणा काफल पाको चैता
(Bedu Pako Baramasa Army Band 2023)
बीटिंग रिट्रीट एक सदियों पुरानी सैन्य परंपरा है जो उन दिनों से चली आ रही है जब सैनिक सूर्यास्त के समय युद्ध से अलग हो जाया करते थे. जैसे ही बिगुलों से पीछे हटने की आवाज़ आती सैनिकों लड़ना बंद कर दिते और अपने आप को हथियार बंद कर युद्ध के मैदान से हट जाते. पीछे हटने की आवाज़ के दौरान आज भी खड़े होने की प्रथा को बरकरार रखा गया है. पीछे हटने पर झंडे उतारे जाते हैं. ड्रम बीट्स उन दिनों की याद दिलाते हैं जब शाम को नियत समय पर कस्बों और शहरों में तैनात सैनिकों को उनके क्वार्टर में वापस बुला लिया जाता था.
इससे पिछले साल बीटिंग रिट्रीट समारोह में उत्तराखंड के लोकगीत ‘छाना बिलौरी’ की धूम मची. पिछले बरस के माहौल पर एक रिपोर्ट यहां पढ़िये- रायसीना हिल्स की ठंडी शाम में जब ‘छाना बिलौरी’ की धुन बजी
(Bedu Pako Baramasa Army Band 2023)
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