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1 Comments

  1. गोपेन्द्र पाल

    ग्रामीण जीवन की हकीकत से हूबहू रुबरु कराती रचना हैं। पहाड़ क्या मैदानों में भी यहीं हालात है। मैं खुद अपना घर गाँव में बंद कर शहर में हूँ याद आतें है अपने खेत खलिहान

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