आंगन में बिना जानवरों के पहाड़ में जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती. जानवर उनके जीवन में दिन और रात के साथी नहीं परिवार का अभिन्न हिस्सा होते हैं. गाय, बैल, भैंस, बकरी, कुत्ता कुछ ऐसे जानवर हैं जो पहाड़ियों के बरसों पुराने साथी रहे हैं. जानवरों से जुड़े अनेक त्यौहार के इतर दैनिक जीवन में उनके साथ व्यवहार से भी इस गहरे रिश्ते को समझा जा सकता है.
(Baudhan God of Animals)
जब किसी दुधारु पशु का दूध निकालकर लाया जाता है तो उसे हमेशा छुपाकर लाया जाता है. स्थानीय भाषा में दूध, दही, घी आदि को धिनाली कहा जाता है. एक समय पहाड़ में धिनाली को परिवार संपन्नता का प्रतीक माना जाता था. किसी परिवार द्वारा बिना दूध की चाय पीना एक गाली के रूप में प्रयोग किया जाता था.
यही कारण है कि अपने दुधारु पशुओं से पहाड़ियों का अत्यंत स्नेह भी देखा जा सकता था. जैसे दुधारु पशु के ब्याने पर 22 दिन तक उसका दूध घर के बाहर किसी को नहीं पिलाया जाता था. 22 दिन जब दूध और उससे बने अन्य पदार्थ अपने ईष्ट देवता को चढ़ाये जाते हैं उसके बाद ही घर से बाहर दूध दिया जाता है. छुरमल, कलनाग आदि ऐसे देवता हैं जिन्हें धिनाली सबसे पहले चढ़ाई जाती है.
(Baudhan God of animals)
इससे पहले 11वें दिन दुधारु पशुओं के रहने वाली जगह पर पूजा की जाती है. नवजात का नाम रखने की पूजा की जाती है. खीर, पूरी आदि पकवान बनाये जाते हैं. बौधाण इस तरह के देवता का स्थानीय नाम हैं जिसको 11वें दिन पूजा जाता है. इनका कोई मंदिर नहीं होता है न कोई मूर्ति होती है. पशुओं के रहने के स्थान, जिसे स्थनीय भाषा में छान या गोठ कहा जाता है, वहीं पर इन देवताओं को पूजा जाता है. इनको पशुओं का अपने घर में रक्षक माना जाता है.
11वें दिन की पूजा में जानवर बांधने वाली लकड़ी (किल) को बौधाण देवता के रूप में पूजा जाता है. उस पर टीका लगाया जाता है, छोटी नई रस्सी बंधी जाती है और मक्खन और दूध चढ़ाया जाता है.
वर्तमान में 11वें दिन से ही लोग दूध घर से बाहर पिला देते हैं लेकिन पुराने लोग मानते हैं कि इससे गाय के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है. पुराने लोगों का मानना है कि घर के बाहर के लोगों को 22 दिन तक दूध या अन्य पदार्थ केवल घर पर ही पिलाना चाहिये. दूध को गर्म करते समय उसकी नजर उतारने के लिये धुंआ लगाना चाहिये ताकि धिनाली पर नजर न लगे.
(Baudhan God of animals)
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