अप्रत्याशित खबर की तरह हिंदी समाज की जुबान पर ‘दून लिटरेचर फेस्टिबल 2016’ छा गया. मुख्य परिकल्पना उत्तराखंड की दो बेटियों – गीता गैरोला और रानू बिष्ट – की थी जिनके कारोबारी हाथों के रूप में प्रवीण भट्ट, सुरेन्द्र पुंडीर आदि देहरादून के अनेक उत्साही युवा थे.
(Batrohi December 2021 Article)
मुझे एकाएक खबर मिली कि 24-25 दिसंबर, 2016 को आयोजित होने वाले इस समारोह का उदघाटन मुझे करना है. मेरे लिए यह अजीब-सी सांसत थी. सिवा गीता के मैं किसी को नहीं जानता था. मैं फेस्टिवल की थीम से भी वाकिफ नहीं था. यह पहला मौका था जब मैं इतने बड़े आयोजन का उदघाटन करने के लिए बुलाया गया था. बाद में मालूम हुआ कि समारोह में देश भर के बहुचर्चित नामी-गिरामी साहित्यकार भाग लेने वाले थे.
देहरादून की प्रकाशन-संस्था ‘समय साक्ष्य’ के बारे में सुना जरूर था. बरसों पहले छनकर आई ख़बरों से जानकारी मिली थी कि कॉलेज में पढ़ रही अनेक उत्साही लड़कियों ने एक सांस्कृतिक मण्डली शुरू की है, जिसका नेतृत्व रानू बिष्ट नाम की एक कम उम्र लड़की करती है. कौतूहल स्वाभाविक था, हम लोग देहरादून की सांस्कृतिक चहल-पहल की ओर कान लगाये रहते थे. अनेक मूल्यवान किताबें आकर्षक साज-सज्जा के साथ सामने आयीं और साहित्य में रुचि रखने वाले लोगों के बीच किताबों की यह दुकान छा गई. किताबें खरीदकर पढ़ी जाने लगीं और उनपर गंभीर चर्चाएँ होने लगीं.
दून लिटरेचर फेस्टिवल, 2016 के आयोजन के बारे में जब मैंने पहली बार सुना तो ‘अमर उजाला’ के फीचर संपादक अपने मित्र कल्लोल चक्रवर्ती को फोन पर बताया और उन्होंने कार्यक्रम के उदघाटन की सुबह अपने सम्पादकीय पृष्ठ में एक आकर्षक लेख प्रकाशित कर दिया. सुबह से ही आयोजन-स्थल पर संस्कृति-प्रेमियों की भीड़ उमड़ने लगी. दो दिवसीय यह आयोजन अपनी परिकल्पना से लेकर प्रस्तुतीकरण तक सचमुच भव्य और ऐतिहासिक था.
पहले सत्र का शीर्षक था, ‘भूमंडलीकरण और हिंदी कहानी’. अनिल कार्की के संयोजन में इस सत्र में इन कथाकारों ने चर्चा में हिस्सा लिया: कांता राय. मनीषा कुलश्रेष्ठ, जितेन ठाकुर और सुभाष पन्त. अरुण देव के संयोजन में दूसरे कविता-सत्र में शामिल थे: लीलाधर जगूड़ी, राजेश सकलानी, शैलेय, आशीष मिश्र और प्रतिभा कटियार. स्त्री और आधुनिकता पर केन्द्रित तीसरे सत्र का संचालन गीता गैरोला ने किया और भाग लेने वाले विचारक थे: कमला पन्त, शीबा असलम और सुजाता तेवतिया. कवि और कविता पर केन्द्रित चौथे सत्र की अध्यक्षता अतुल शर्मा ने की और संयोजन किया प्रमोद भारतीय ने. प्रतिभागी कवियों में शामिल थे: स्वाति मेलकानी, माया गोला वर्मा, केशव तिवारी, चेतन क्रांति, अम्बर खरबंदा, मुनीश चन्द्र सक्सेना, नादिम बर्नी, जिया नहटोरी, आनंद असीर, शादाब अली, रेखा चमोली, नदीम बिस्मिल, राकेश जैन और प्रतिभा कटियार.
लोक साहित्य सत्र उमेश चमोला के संयोजन में इन लोक-संस्कृति-कर्मियों की उपस्थिति में संपन्न हुआ: प्रभा पन्त, प्रभात कुमार उप्रेती, महावीर रवाल्टा, प्रीतम अपच्याण और नंदकिशोर हटवाल. बाल साहित्य पर आयोजित सत्र में उदय किरोला, राजेश उत्साही, दिनेश चमोला, मुकेश नौटियाल, शीशपाल, उमेश तिवारी और मनोहर चमोली ‘मनु’ ने हिस्सा लिया.
दूसरे दिन का दूसरा सत्र भूपेन सिंह के संयोजन में ‘बाज़ार, मीडिया और लोकतंत्र’ विषय पर था जिसमें कुशल कोठियाल, सुन्दर चंद ठाकुर, त्रेपन सिंह चौहान और सुशील उपाध्याय ने हिस्सा लिया. विपिन शर्मा के संयोजन में कथेतर साहित्य से जुड़े सत्र को शेखर पाठक, नवीन नैथानी, एसपी सेमवाल, तापस चक्रवर्ती और देवेन मेवाड़ी ने संबोधित किया.
दूसरे दिन का चौथा सत्र गढ़वाली और कुमाऊनी साहित्य पर केन्द्रित था जिसे रमाकांत बैंजवाल,भारती पांडे, मदनमोहन डुकलाण, हयात सिंह रावत, अचलानंद जखमोला और गिरीश सुंदरियाल ने संबोधित किया. दून लिटरेचर फेस्टिवल का यह आयोजन क्रिश्चियन रिट्रीट सेंटर के खुले प्रांगण में किया गया था और दोनों दिन कुल मिलाकर 500 से अधिक लोग आयोजन-स्थल पर पहुंचे थे. इस प्रदर्शनी के माध्यम से देश-प्रदेश के आंचलिक उद्यमियों को प्रदेश की सांस्कृतिक तथा अन्य उपलब्धियों से जुड़ी संभावनाओं से परिचित कराना था.
(Batrohi December 2021 Article)
इस आयोजन की कड़ी में एक वर्ष और आयोजन हुआ, जो बाद के वर्षों में घोषणा के बावजूद नहीं संपन्न हो पाया. हो सकता है, इसके पीछे आयोजकों की मजबूरियां रही होंगी, ऐसे बड़े आयोजनों में अनेक तरह की कठिनाइयां आती ही हैं, हिंदी समाज में ऐसे आयोजनों को समय से पहले नज़र लग ही जाती है और यह पहला मौका नहीं था.
मैंने भी इस आयोजन की सफलता के आधार पर अपनी अनेक किताबें ‘समय साक्ष्य’ को प्रकाशन के लिए दीं. कई लोगों ने टोका, ‘इतना भरोसा है आपको प्रकाशक पर. सुना है आजकल लेखक पैसा देकर किताबें छपवा रहे हैं, आपको यकीन है कि आपको किताबों की रॉयल्टी मिल जाएगी?… अब तो सुना है, बड़े-बड़े प्रकाशक भी पहले पैसे रखवा लेते हैं, फिर किताब प्रेस में जाती है.’
शिकायतें नयी नहीं थी, पूरा हिंदी समाज जानता है. मैं उन्हें क्या उत्तर देता? सिर्फ इतना ही कहा, ‘इलाके की एक बेटी ने दुस्साहस किया है, मेरा यह सहयोग उसके लिए शाबाशी का नजराना है.’ बाद में भी मेरी भावनाओं का मान रखा गया. इस वर्ष जब मेरा महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट ‘हम तीन थोकदार’ प्रकाशित होना था, मैंने प्रवीण भट्ट से कहा कि इसके कवर का डिजाईन मेरे सुझावों पर तैयार होगा; और वे लोग राजी हो गए.
मशहूर चित्रकार कुँवर रवीन्द्र का मेरे पास एक दिन फोन आया और हमारी बातचीत के आधार पर उन्होंने उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान के परिप्रेक्ष्य में काष्ठ-कला के मोटिव्स के आधार पर तीन थोकदारों का यह बेहद आकर्षक मुखपृष्ठ तैयार किया. इस कवर ने मेरी थीम को उसी रूप में हिंदी समाज तक पहुँचाया, जिस रूप में मैं चाहता था. मुझे लगा, मेरी बात समग्रता के साथ लोगों तक पहुंची है. प्रकाशक बिटिया के साथ मेरा एक और आशीर्वाद जुड़ गया.
(Batrohi December 2021 Article)
हिन्दी के जाने-माने उपन्यासकार-कहानीकार हैं. कुमाऊँ विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रह चुके बटरोही रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ के संस्थापक और भूतपूर्व निदेशक हैं. उनकी मुख्य कृतियों में ‘थोकदार किसी की नहीं सुनता’ ‘सड़क का भूगोल, ‘अनाथ मुहल्ले के ठुल दा’ और ‘महर ठाकुरों का गांव’ शामिल हैं. काफल ट्री के लिए नियमित लेखन.
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
इसे भी पढ़ें: भीमताल की जर्मन बहू ने दुनिया को नयी ज़िंदगी दी
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें