उत्तराखंड में कृषि भूमि का केवल 12% सिंचित है. यहाँ की 50% से अधिक आबादी को रोजगार कृषि से ही प्राप्त होता है. उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल इलाके में किसान ऐसा फसल चक्र अपनाते हैं जिसमें पूरा जीव जगत शामिल होता है. इन क्षेत्रों में खेती की एक विशेष प्रकार पद्धति अपनाई जाती है. जिसे बारहनाजा कहते हैं. बारहनाजा इस क्षेत्र में की जाने वाली मिश्रित खेती का उदाहरण है.
बारहनाजा का शाब्दिक अर्थ बारह तरह के अनाज से है. लेकिन बारहनाजा पद्धति का अर्थ केवल बारह प्रकार के अनाज से नहीं है. भौगोलिक परिस्थिति, खान-पान की संस्कृति के आधार पर इसमें 20 से अधिक फसलें भी होती हैं. मंडुवा, मारसा, ओगल, ज्वार, मक्का, राजमा, गहथ, भट्ट, मक्का, राजमा, गहथ, उड़द, सुंटा लोबिया, रगड़वास, मूंग, तिल, भांग, ककड़ी इत्यादि फसलें हैं. मंडुवा बारहनाजा कृषि पद्धति का राजा है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इसे मडिया, तमिल व कन्नड़ में रागी, तेलगू में गागुल, मराठी में नाचोनी कहते हैं.
बारहनाजा मिश्रित पद्धति का फायदा यह है कि उसमें सूखा हो या कोई प्रतिकूल परिस्थिति किसान को कुछ न कुछ मिल ही जाता है. इस कृषि में बीज खुद किसान का होता है. जिसे किसान घर पर ही अपने पारंपरिक भंडार से लेते हैं. इस पारम्परिक भण्डार को स्थानीय भाषा में बिजुड़े कहा जाता है. घर के बीज, घर की खाद, घर की गाय और घर के लोगों की मेहनत से की जाने वाली बारहनाजा पूरी तरह स्वावलंबी खेती है.
बारहनाजा खेती मनुष्य के भोजन की जरूरतें तो पूरी करती ही है साथ ही मवेशियों को भी चारा उपलब्ध कराती है. इस खेती में दलहन, तिलहन, अनाज, मसाले, रेशा और हरी सब्जियां और विविध तरह के फल-फूल आदि सब कुछ शामिल हैं. इस खेती से मनुष्यों को पौष्टिक अनाज और मवेशियों को फसलों के भूसे से चारा प्राप्त हो जाता है. जमीन को भी जैव खाद से पोषक तत्व प्राप्त हो जाते हैं. इससे मिट्टी बचाने का भी प्रयास होता है. खेती की यह पद्धति कई मायनों में महत्त्वपूर्ण है. इससे जहां एकतरफ खाद्य सुरक्षा होता है वहीँ दूसरी तरफ पशुपालन और मिट्टी का उपजाऊपन बढ़ता है. इसके साथ ही पर्यावरण का संरक्षण होता है और पारिस्थितकीय संतुलन बना रहता है.
बारहनाजा कृषि प्रणाली को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का श्रेय वर्ष 1987 से चलने वाले बीज बचाओ आंदोलन के संयोजक पर्यावरणविद विजय जड़धारी को जाता है. विजय जड़धारी को 2012 में इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से और 2017 में संत ईश्वर विशिष्ट सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया.
– गिरीश लोहनी
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1 Comments
Anonymous
सर बहुत अच्छा लगा बारहनाजा के बारे मे पड़ कर बहुत छोटी से छोटी चीजे पता चल पाती है आपके इस पोस्ट के डालने से।
मैं आपका तहो दिल से धन्यावाद करता हूँ।