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उत्तराखण्ड में साहसिक पर्यटन उद्योग को बचाने की एक ज़रूरी पहल

बीती 21 अगस्त को उत्तराखंड ने उच्च न्यायालय ने उत्तराखण्ड राज्य के उच्च हिमालयी बुग्यालों (अल्पाइन चरागाहों) में कैम्पिंग पर रोक लगा दी है. ट्रेकिंग के लिए उत्तराखंड राज्य देश-दुनिया के लोगों की पहली पसंद रहा है. इस निर्णय से ‘पर्यटन’ राज्य उत्तराखण्ड  के सुदूर ग्रामों की अर्थव्यवस्था के चरमरा जाने का खतरा है. जनपद चमोली के ग्राम लाता की माउंटेन शेफर्डस इनिशिएटिव के संस्थापक निदेशक डॉ सुनील कैंथोला ने राज्य के मुख्यमंत्री के नाम एक ऑनलाइन याचिका www.change.org पर डाली है. यदि आप याचिका में दिए गए तर्कों से सहमत हों तो पोस्ट के अंत में दिए गए लिंक पर जाकर अपना समर्थन दे सकते हैं

माननीय मुख्यमंत्री महोदय,

यह याचिका माननीय उच्च न्यायालय (नैनीताल ) के दिनाँक 21 अगस्त 2018 के आदेश के फलस्वरूप उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पड़ने वाले व्यापक प्रभावों के संदर्भ में है। उच्च न्यायालय के आदेश का अनुपालन करते हुए श्रीमान प्रमुख वन संरक्षक द्वारा बुग्यालों में कैम्पिंग पर तुरंत प्रभाव से प्रतिबंध लगाने संबंधी कार्यालय आदेश दिनांक 27 अगस्त 2018 को जारी किया जा चुका है। इस संदर्भ में निम्नांकित तथ्य आपके संज्ञान में लाते हुए आपसे अविलम्ब वांछित कार्यवाही की अपेक्षा करते हैं।

1. महोदय, साहसिक पर्यटन जिसके अंतर्गत ट्रेकिंग भी शामिल है वस्तुतः पर्वत प्रेमी सैलानियों को पर्वतों के संपर्क में लाने वाला एक जिम्मेदार व्यवसाय है। साहसिक पर्यटन के अंतर्गत पर्यटकों का कार्बन फुटप्रिंट हिल स्टेशनों की सैर करने वाले पर्यटकों की तुलना में नगण्य होता है। यही वह व्यवसाय है कि जिसका पैसा हमारे गाँव तक पहुंचता है। साहसिक पर्यटन व्यवसाय बिजली, पानी और सड़क जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की मांग भी नहीं करता। यह व्यवसाय अन्य पर्यटन उद्यमों यथा ट्रांसपोर्ट एवं होटल उद्योग की आमदनी का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी है।

2. यह स्पष्ट करना चाहेंगे कि उत्तराखंड में साहसिक पर्यटन को विकसित करने में सरकार की कोई विशेष भूमिका नहीं रही है। यह व्यवसाय स्थानीय निवासियों ने पोर्टर, कुक, गाईड, खच्चर वाले के रुप में एवं नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त नवयुवको एवं नवयुवतियों ने अपनी प्रतिभा एवं कड़ी मेहनत के बल पर खड़ा किया है। साहसिक पर्यटन आज उच्च हिमालयी क्षेत्र मे निवासरत लाखों परिवारों की आय का मुख्य स्रोत भी है।

3.महोदय, पलायन आयोग ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में आजीविका के अवसरों की कमी को पहाड़ों से पलायन का मुख्य कारण चिन्हित किया है। उच्च न्यायालय का आदेश उत्तराखंड में आजीविकारत लाखों परिवारों की आजीविका के अंत का दस्तावेज है।

4. इसी के साथ देश-विदेश के वे लाखों पर्यटक कि जिन्होंने सितंबर माह से शुरु होने वाले पर्यटन सीजन हेतु अग्रिम बुकिंग करवा रखी है तथा इस हेतु अग्रिम भुगतान भी दे रखा है उनके लिए भी असमंजस की स्तिथि बन गई है। इस प्रकार करोड़ों रुपये का यह व्यवसाय अब अन्य हिमालयी राज्यों की ओर पलायन करेगा।

5. महोदय, बेदनी बुग्याल क्षेत्र में जो अनियंत्रित पर्यटन चल रहा था उस्के लिये स्थानीय पर्यटन उद्यमी किसी भी रुप में जिम्मेदार नहीं हैं। यह अनियंत्रित पर्यटन वस्तुतः इंटरनेट से संचालित ऑनलाइन कंपनियों द्वारा किया गया है। इनमें से एक कंपनी का नाम India Hikes है जिसे प्रदेश में आपकी ही सरकार के अंतर्गत उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद के द्वारा प्रमोट किया गया है। होना तो यह चाहिए था कि पर्यटन परिषद स्थानीय समुदायों के पर्यटन संबंधी क्षमता विकास पर कार्य करती किंतु गत वर्ष प्रशिक्षण के नाम पर परिषद द्वारा फर्ज़ीवाड़ा किया गया जिसे उजागर होने से पहले दबा दिया गया। India Hikes के कारण स्थानीय एजेंसियों बाजार से बाहर धकेल दी गयी और हमारे बुग्यालों पर India Hikes का एकछत्र राज हो गया। इस प्रकरण मे माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष सम्पूर्ण तथ्य रखने में सरकार से स्पष्ट चूक हुई है।

6. महोदय, उच्च न्यायालय द्वारा प्रदेश के बुग्यालों से आश्रय स्थलों को भी हटाने का आदेश भी दिये गये हैं। ये आश्रय स्थल वन विभाग के कर्मचारियों के गश्ती दलों द्वारा भी प्रयोग में लाये जाते हैं। इसी प्रकार हर की दून जैसे दूरस्थ स्थलों का सम्पूर्ण पर्यटन वन विश्राम गृहों के दम पर चलता है। इस संबंध मे माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी इन वन विश्राम गृहों के दरवाजे आम जनता के लिये बंद करने संबंधी आदेश दिया जा चुका है जो उत्तराखंड के परिपेक्ष्य में पूर्णतः अव्यवहारिक है। उक्त आदेश के प्रति भी आपकी सरकार की उदासीनता दुर्भाग्यपूर्ण है।

7. श्रीमान प्रमुख वन संरक्षक के दिनाँक 27 अगस्त 2018 का  कार्यालय आदेश मात्र कैम्पिंग पर प्रतिबंध पर केंद्रित है तथा उच्च न्यायालय के इको डेवलपमेंट कमेटियों के गठन संबंधी आदेश पर निराशाजनक चुप्पी है।

8. महोदय, उच्च न्यायालय के आदेश के फलस्वरूप उच्च हिमालयी क्षेत्रों पर पड़ने वाली सामाजिक-आर्थिक आपदा के प्रति सरकार की वांछित प्रतिक्रिया अभी तक स्पष्ट नहीं हो पायी है। सितंबर माह में जहाँ पैसा कमाने की उम्मीद थी वहीँ अब अग्रिम भुगतान की राशि को वापस लौटने का संकट खड़ा हो गया है। हरकीदून, दयारा, डोडीताल, क्वारी पास आदि गंतव्य स्थलों में बिना रात्रि विश्राम के जाना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है। India Hikes के कुकृत्यों की सजा स्थानीय छोटे उद्यमियों को दिया जाना न्यायोचित नहीं है।

9. महोदय, उच्च न्यायालय के आदेश में कीड़ाजड़ी पर भी प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया गया है। उचित होता कि 57 पृष्टों के वैज्ञानिक शोध पत्रों से लबरेज अपने ऐतिहासिक निर्णय मे विद्वान न्यायाधीश एक बार भूटान की कीड़ाजड़ी विपणन नीति को भी खंगाल लेते। कीड़ाजड़ी के खेल में ग्रामीण जनता की मेहनत पर तस्करों की चांदी हो रही है। यह जनता की मेहनत की अराजक लूट है जिसे आप भूटान का माडल अपना कर रोक सकते हैं और गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले समुदायों को आयकर के दायरे में ला सकते हैं।

अतः आपसे अनुरोध है कि उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों मे कार्यरत साहसिक पर्यटन व्यवसाय के अस्तित्व को बचाने हेतु तत्काल प्रभाव से पुनर्विचार याचिका दायर करने हेतु अपने स्तर से पहल करने की कृपा करेंगें।

शुभकामनाओं सहित

डॉ सुनील कैंथोला

संस्थापक निदेशक

माउंटेन शेफर्डस इनिशिएटिव

ग्राम लाता, जनपद चमोली

याचिका का लिंक:

https://www.change.org/p/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A4-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A4%82%E0%A4%A1-%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A-%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF-%E0%A4%A8%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A4%82%E0%A4%A1-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%9F%E0%A4%A8-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%82%E0%A4%A7-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AD-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82?recruiter=false&utm_source=share_petition&utm_medium=facebook&utm_campaign=sign_checkbox.lightning_share_checkbox_quote.fake_control&utm_term=petition_show

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Kafal Tree

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  • Its true, haghnae pae bhi ban laga do,, if govt can, t solve the problem,, they kill the source,, problem solved., without think, source of survival income of life of poor villagers, of himalyan belt, its like,, if my arse shit and, no one, clean it, its remain as it is where it is, its govt emplyes duty, who is appointed for that,is responsible... Its like. They fail to do their job,, so,,,, sew the arse of that guy,, who... Shits.., how can i stop my shit,,,, then again,, don, t give im food, water,, i, ll not eat,,,, no shit,,,,. Rest you all are braino, what ever you r doing,, ll be right,,,, saap bhi mar,, aur,, laathee bhi na tootae,,.

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