भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनेक लोगों ने योगदान दिया. बड़े नेताओं के अलावा ऐसे हज़ारों नाम हैं जो आज भी गुमनाम हैं. उत्तराखंड के ऐसे हज़ारों वीर हैं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में अपने जान दे दी पर आज वो गुमनाम हैं. बच्चू लाल भट्ट उत्तराखंड की जन्मभूमि पर जन्मा एक ऐसा ही नाम है.
(Bachchu Lal Bhatt Uttarakhand)
लैंसडाउन के पास स्थित एक गांव में राम प्रसाद भट्ट का परिवार रहता था. राम प्रसाद भट्ट पोस्ट विभाग में नौकरी करते थे. बच्चू लाल भट्ट उन्हीं के बेटे थे. बच्चू लाल पहलवानी में भारी हाथ रखते थे. अमृतसर में रहते हुये उनकी मुलाकात क्रांतिकारी शंभु नाथ आजाद से हुई.
1929 के लाहौर में हुए कांग्रेस अधिवेशन में बच्चू लाल भट्ट भी शामिल थे. 1931 के अम्बाला गोलीकांड में शामिल होने के कारण अंग्रेज बच्चू लाल भट्ट, राम चन्द्र भट्ट ( संभवतः बच्चू लाल भट्ट के पिता) शंभु नाथ आजाद, नरेंद्र नाथ पाठक और मनसद सिंह को गिरफ्तार करती है. मनसद सिंह को फांसी की सजा दी जाती है, राम चन्द्र भट्ट और नरेंद्र नाथ पाठक को दस साल की सजा दी गयी जबकि सबूतों के अभाव में बच्चू लाल को छोड़ दिया गया था.
(Bachchu Lal Bhatt Uttarakhand)
बच्चू लाल भट्ट का नाम मद्रास की ग्रीष्मकालीन राजधानी ऊटी में हुई बैंक डकैती से जोड़ा जाता है. सन् 1968 में पांचजन्य में प्रकाशित एक लेख में शंभूनाथ आजाद ने इनका जिक्र करते हुये लिखा है कि मद्रास में बंगाल और मद्रास दोनों के गर्वनरों की हत्या किया जाना तय हुआ था. इसके लिये धन लाहौर से आना था पर लाहौर में सीआईडी ने क्रांतिकारियों को पकड़ लिया. अब धन के लिये ऊटी का बैंक लूटना तय हुआ.
बच्चू लाल भट्ट मद्रास रोशन लाल मेहरा के साथ पहुंचे थे. 27 अप्रैल 1933 की रात बच्चू लाल भट्ट और उनके साथी हजारासिंह, नित्यानंद टाइगर हिल में एक गुफा में गुजारी. अगली सुबह हजारासिंह और नित्यानंद एक टैक्सी लेकर आये. चारों ने मिलकर दिन के 12 बजे बैंक लूट लिया. बच्चू लाल कार से उतरने वाले पहले व्यक्ति थे, बैंक के दरवाजे की चौकसी का जिम्मा उन्हीं के पास था.
(Bachchu Lal Bhatt Uttarakhand)
30 अप्रैल को जब उन्हें पुलिस ने घेरा तो उन्होंने पुलिस पर गोली यह कहते हुये नहीं चलाई कि हमारा काम अपने भारतीय भाइयों पर गोली चलाना नहीं है. इस घटना के समय बच्चू लाल की उम्र 24 वर्ष थी. उन्हें और उनके साथियों को 18 साल कालापानी की सजा सुनाई गयी. कालापानी की सजा के 6 महीने बाद बच्चू लाल भट्ट मानसिक संतुलन खो बैठे. वह दिन में कई बार नहाया करते और अपनी नसों को काटकर सूर्य को अपना खून चढ़ाते. अंग्रेजों ने उन्हें पुणे और बनारस के पागलखानों में रखा. साल 1938 में उनकी मौत की ख़बर आई.
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