क्या हो अगर जिस बैग में दुल्हन के लाखों के जेवरात रखे हों ऐन फेरों के मौके पर वे गुम हो जाएँ. जब दुल्हन का पूरा परिवार ग़मगीन होकर सोच रहा हो कि अब संकट को कैसे हल करें, तभी खोये हुए जेवर और नकदी वापस मिल जाएँ. घोर संकट के उस दुःख और उसके बाद की खुशी को बयां करना मुश्किल है. खोये हुए गहने लेकर प्रकट हो जाने वाला तो उस वक्त फ़रिश्ता ही हुआ. कुछ ऐसा वाकया सामने आया नैनीताल जिले के हल्द्वानी में. (Auto Driver Honesty)
शुक्रवार को हल्द्वानी के मुखानी क्षेत्र में शादी समारोह था. इस समारोह के लिए दुल्हन का परिवार गुजरात से हल्द्वानी पहुंचा था. हल्द्वानी पहुंचकर दुल्हन के परिजन ऑटो में सवार होकर समारोह स्थल पहुंचे. समारोह स्थल पर पहुंचकर परिजन जब ऑटो से उतरे तो हड़बड़ी में एक बैग ऑटो में ही भूल आये. बैग में दुल्हन के लिए बनाये गए छह लाख रुपये के जेवरात और पचास हजार की नगदी थी. समारोह स्थल में पहुंचकर जब बैग के गम हो जाने का पता लगा तो आनन-फानन में दुल्हन के साथ ही दूल्हा पक्ष भी बैग की तलाश में जुट गया.
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दूसरी तरफ ऑटो चालक दुल्हन पक्ष को बैंकेट हॉल में छोड़कर दोपहर का खाना खाने घर चले गए. उन्हें ऑटो में बैग के छूट जाने की कोई खबर नहीं हुई. ऑटो चालक कीर्ति बल्लभ खाना खाने के बाद जब दोबारा ऑटो में पहुंचे तब उन्हें वह बैग दिखाई दिया. उन्होंने बैग खोला तो उसमें गहने और नकदी भरे हुए थे. वे फ़ौरन बैग लेकर समारोह स्थल की तरफ रवाना हुए. जब वे वहां पहुंचे तो दुल्हन पक्ष मायूस होकर शादी की रस्में निपटा रहा था. कीर्ति बल्लभ जब बैंकेट हॉल के भीतर पहुंचे तो दुल्हन के परिजनों की निगाह अपना बैग लेकर आये इस शख्स पर गयी. उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. इग बैग में 6 लाख रुपयों के गहने के साथ नकद 50,000 रखे हुए थे.
दुल्हन के परिजनों ने कीर्तिबल्लभ का फूलमालाएं पहनाकर अभिनन्दन किया. कीर्ति को जब इनाम देने की पेशकश की गयी तो उन्होंने विनम्रता से इसे ठुकरा दिया. तब उन्हें दुल्हन का कन्यादान करने के लिए कहा गया. उन्होंने सहर्ष दुल्हन का कन्यादान किया और उसे आशीर्वाद दिया.
गौरतलब है कि मूल रूप से बागेश्वर के रहने वाले ऑटो चालक कीर्ति बल्लभ जोशी हल्द्वानी में किराए का घर लेकर आजीविका चलाते हैं. घोर अभाव की जिंदगी भी उनके भीतर पल रहे एक पहाड़ी की ईमानदारी को ख़त्म नहीं कर सकी है. (Auto Driver Honesty)
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1 Comments
Kamal Kumar Lakhera
कीर्ति वल्लभ भाई ने उत्तराखंडी शब्द को सम्मानजनक बना दिया । नमन ।