`कल…!’(अजी जो चला गया)
डीम्ड सस्पेंशन- यदि कोई सरकारी कर्मचारी 48 घंटे से ज्यादा जेल में रहता है तो ऑटोमैटिक सस्पेंड हो जाएगा.
वो तो सब ठीक है सर लेकिन ये एसीआर वरिष्ठ अधिकारी ही क्यों लिखता है? साथी अधिकारियों-कर्मचारियों और जूनियर को भी तो ये बताने का हक होना चाहिए कि फलाना किस लेवल का `हक मारू’ अधिकारी है. सबसे महत्वपूर्ण तो ये है कि जिस जनता के लिए ये सब उठा पटक, सारी कवायद हो रही है उसका क्या? क्या उसको ये अधिकार नहीं मिलना चाहिए कि…. क्या बकवास है, आखिर जनता को सरकार चुनने का अधिकार तो है न.
टी एन सिंह साहब सिस्टम समझा रहे थे. अगर पीठ ठोंकनी है तो अपनी आगे करो और अगर कान उमेठना है तो मातहत का पकड़ो. समझाते समय बाकायदा अपनी पीठ आगे की और अपना ही कान उमेठ दिया.
उनको बोलते सुनकर (और देखकर भी) लगता नहीं पुष्ट ही हो जाता है कि अंग्रेजी अंग्रेजों की भाषा थी. `ओ माय गॉड इट्स ब्राकेन’. ये भी कि अंग्रेजी खाली मुह से नहीं बोली जाती, शरीर का भी साथ ज़रूरी है. सिंह साहब अपने बोलने में कभी हिलती हुई एक टांग शामिल कर लेते हैं… `not only the treasury officers…’ कभी अपनी तर्जनी को गोल घुमाकर नाना प्रकार के शेप बनाते हैं… `but all of you…ooo…’ तो कभी बिल्ली की तरह पंजों पर चलना शुरू कर देते हैं… `government servants are the custodians of the government’s purse.’ यूं कि सरकारी खजाना कोई दूध की हांडी हो और बिल्ली उसपर झपटने आ रही हो.
जे सी जोशी सर ने यात्रा भत्ता के सम्बन्ध में बताया. सबसे ज़रूरी चीज जो ध्यान में रखनी है वो ये कि यात्रा भत्ता आप उसी यात्रा का क्लेम करें जो आपने की हो. हैं…. ये क्या बात हुई भला? और किसकी करेंगे? कहने का मतलब कि आपको सर्टिफाई भी करना होता है कि मैंने इस यात्रा का कोई और भत्ता प्राप्त नहीं किया है.
अच्छा एक बात बताओ सर. अगर चार लोग चार अलग-अलग पे स्केल के एक ही काम को पूरा करने के लिए कहीं गए. अलग-अलग ही जाएंगे, एकौर्डिंग टू देयर पे स्केल, अलग-अलग जगहों पर रुकेंगे और अलग-अलग ही वापस आ जाएंगे. फिर टीम कहाँ बनी? इन्फोर्मल कम्यूनिकेशन गया भाड़ में.
अमित श्रीवास्तव
उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं. 6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी दो किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता)
(पिछली क़िस्त से आगे)
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