अस्कोट उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मण्डल के पिथौरागढ़ जिले की डीडीहाट तहसील का एक परगना है. पिथौरागढ़ से अस्कोट की दूरी लगभग 52 किमी है और बागेश्वर से 125 किमी, बेड़ीनाग यहाँ से 61 किमी की दूरी पर है.
अस्कोट ऐतिहासिक रूप से कत्यूरी राजवंश की मल्ल शाखा के रजबारों की एक स्वतंत्र राजकीय इकाई हुआ करता था. यह छिपुला व घनधुरा के घने जंगलों, सघन वनस्पतियों व पर्वतों से ढंके सोर के बीच बसा था. काली, गोरी व धौली नदियों का तटवर्ती यह क्षेत्र पूर्वी सीमा में काली नदी, उत्तर में दारमा और दक्षिण में गोरी नदी के ढलान तक फैला हुआ है.
इसके नाम को अष्टकोट या अस्सीकोट से उत्पन्न बताया जाता है. भौगोलिक रूप से अस्कोट 2 भागों में बंटा हुआ है— तल्ला व मल्ला. मल्ला अस्कोट गोरी नदी के दाएं और बाएं तट पर बसा है, इसमें 18 पर्वतीय गाँव शामिल हैं. तल्ला अस्कोट में 124 गाँव हैं.
अस्कोट को पाली पछाऊँ के कत्यूरी राजा त्रिलोकपाल के बेटे राजकुमार अभयपाल द्वारा बसाया गया था. अभयपाल ने 1279 ई. में यहाँ आकर राजधानी की स्थापना की और काली के तट पर चंफाचूल की तलहटी में लखनपुर कोट किले का निर्माण भी करवाया.
1623 तक अस्कोट एक स्वतंत्र और समृद्ध राज्य के रूप में संचालित होता रहा. लम्बे समय में इस वंश के राजकुमारों (वंशजों) की बढ़ती गिनती के कारण रियासत छोटी-छोटी ठकुराइयों में बंटती चली गयी. इसके बाद साहूकारों, चंदों व रौतेलों से राजकाज का खर्च चलाने के लिए ऋण लिया गया, बाद में कंपनी सरकार से भी.
रुद्रपाल व महेन्द्रपाल के आपसी विद्वेष की वजह से 1883 में रियासत को बेचने तक की नौबत आ पहुंची. प्रजा ने भी असहयोग शुरू कर दिया और रियासत की खरीद-फरोख्त होने लगी.
आखिरकार यह पुनः रजबार राजा पुष्करपाल के हाथ आ गयी. 13वीं सदी से 16वीं सदी तक यहाँ रजबारों का प्रभुत्व बना रहा.
पश्चिमी नेपाल व पूर्वोत्तरी कुमाऊँ के विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त ताम्रपत्रों से यह ब्यौरा मिलता है कि अस्कोट में मल्लवंशी शासकों का प्रभुत्व रहा. ब्रिटिश शासन के दौरान भी वे 154 गाँवों में मुआफीदारों के रूप में सत्तारूढ़ रहे. स्वतंत्र भारत में भी जमींदारी उन्मूलन तक भी इनता प्रभुत्व बना रहा. विभिन्न ताम्रपत्रों व अभिलेखों के अनुसार पाल शासकों ने ने यहाँ 375 साल शासन किया.
कभी किलों-दुर्गों की बहुतायत थी उत्तराखण्ड में
(उत्तराखण्ड ज्ञानकोष, प्रो. डी. डी. शर्मा के आधार पर)
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