प्रो. मृगेश पाण्डे

अंकिता हत्याकांड पर तथ्य अन्वेषण रपट

अपने सपनों को पूरा कर अपने परिवार का सहारा बनने की चाह में न जाने कितनी किशोरियां ताउम्र बेबसी और बदहाली के जाल में फंसी रह जाती है. ऐसी परिस्थितियां बना दी जातीं हैं जिनमें घिर वह अपनी योग्यता, कुशलता और संस्कार जैसे शब्दों का कोई मोल नहीं पातीं. कुछ कर गुजरने के लिए की जा रही कोशिश और महत्वाकांक्षा से जीने की राह में रोक-टोक के लिए चतुर शिकारी हर लोभ, लालच का दुश्चक्र रचता है. सुविधा व अवसर का ताना-बाना बुनता है. समझौते की राह सुझाता है. किसी नकार की गुंजाइश नहीं छोड़ी जाती. उसकी अस्मिता को तार-तार करने की हर कोशिश की जाती है.
(Ankita Bhandari Case Complete Report)

शायद इन जर्रों में कहीं, मोती है तुम्हारी इज़्ज़त का.
वो जिससे तुम्हारे इज़्ज़ पे भी शमशाद कदों ने रश्क़ किया.

जिस्म की नीलामी के तमाम हथियार लिए घात में बैठे शिकारी इस ताक में रहते हैं कि कैसे और किन तरीकों से दमन और शोषण के जाल में बस एक बार फंस जाये चिड़िया. अंकिता पर जो बीती उस त्रासद कथा का परिवेश भी यही है. अंकिता अपनी साफ सुथरी पहचान के साथ अपनी मेहनत और काम के साथ जीने का इरादा रखती थी. अपने परिवार से पाई नैतिक मूल्यों की विरासत को बनाए रखना चाहती थी. ऐसे संस्कार थे उस किशोरी के साथ जिसने नियोक्ताओ के हर प्रलोभन को नकार दिया. उसने प्रतिरोध किया और इसी के साथ आरम्भ हुई वह कहानी जो पहले भी न जाने कितनी बार दोहराई जा चुकी है:

ये रंगी रेज है शाहिद उन शोख बिल्लूरी सपनों का
तुम मस्त जवानी में जिनसे खलवत को सजाया करते थे

एक मासूम कली के सपने और उसके इरादे कुचल देने की कोशिश फिर परवान चढ़ी. महत्वकांक्षा को पूरा करने का संघर्ष व  प्रतिरोध तब भी जारी रहा जब उसे मात्र एक उपभोग वस्तु की तरह मूल्यांकित किया गया. जिन मूल्यों को वह अपने जीवन में प्रकट अधिमान देना चाहती थी वह उसके सपनों से टकराते रहे.स्वाभिमान की कीमत मौत बनी.

पौड़ी गढ़वाल के गांव डोम श्रीकोट में 11 नवंबर 2003 को अंकिता का जन्म हुआ. पौड़ी के भगत राम मॉडर्न स्कूल से उसने अठासी प्रतिशत अंको के साथ इंटर किया. व्यवसायिक प्रशिक्षण प्राप्त कर स्वावलम्बी बनने की इच्छा से उसने 2021 में देहरादून के श्री राम इंस्टिट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट से एक वर्षीय कोर्स में प्रवेश लिया.इसी साल जून में वह ए. एन. एम परीक्षा भी पास कर चुकी थी पर सरकारी कॉलेज में प्रवेश न हो पाने के कारण वह यह प्रशिक्षण प्राप्त न कर पाई. निजी कॉलेज की फीस का प्रबंध संभव न हो पाया.

कोविड के दौर में उसके पिता की नौकरी चली गई थी और परिवार आर्थिक रूप से असुरक्षित हो गया था. तब उसने ऑनलाइन टाइपिंग व स्टेनोग्राफी सीखी. होटल मैनेजमेंट का कोर्स भी पूरी फीस चुकता न होने के कारण अधूरा ही रह गया. उसके मित्र पुष्प ने उसे वनंतरा रिसोर्ट के रिसेप्शन में नौकरी की जानकारी दी. अंकिता ने रिसोर्ट के मालिक पुलकित आर्य से सीधी बात की और सितम्बर 2022 को उसने यह नौकरी ज्वाइन कर ली. 18 सितम्बर तक अंकिता अपनी मां से रोज ही एक-दो बार फोन पर बात करती थी पर 18 सितम्बर को उसने न तो कोई बात की और न ही मैसेज किया. उसके पिता वीरेंद्र सिंह को पुष्प के फोन से 19 सितम्बर को पता चला कि अंकिता रिसोर्ट में नहीं थी. इसके बाद पुलकित का भी फोन आया कि अंकिता गायब है.

वीरेंद्र सिंह जीप से तुरंत गांव से रवाना हो शाम 6.30 बजे पौड़ी थाने पहुंचे. पुलिस ने यहां रपट दर्ज न कर उन्हें रिसोर्ट के पास मुनि की रेती थाने जाने को कहा. मुनि की रेती से उन्हें ऋषिकेश थाने दौड़ाया गया. जब वह ऋषिकेश थाने में पहुंचे तब रात हो चुकी थी. वहां के थाना प्रभारी ने उनसे कहा कि उनकी शिकायत पटवारी क्षेत्र में दर्ज होगी. अगले दिन 20 तारीख को पहले वह लक्ष्मण झूला थाने पंहुचे जहाँ से पहले उन्हें पटवारी चौकी चीला और फिर कांडाखाल भेजा गया. अब जाकर उन्हें पटवारी वैभव प्रताप का फोन नंबर मिला.
(Ankita Bhandari Case Complete Report)

दूसरी तरफ रिसोर्ट के मालिक पुलकित आर्य ने पटवारी वैभव प्रताप को कई जानकारियां दे दी थीं. वह बिना कोई कार्यवाही किये छुट्टी पर चला गया. अब उसके स्थान पर पटवारी वैभव कुमार चौकी का कामकाज देख रहा था. वीरेंद्र सिंह इससे मिलने कांडाखाल चौकी दिन में साढ़े ग्यारह बजे पहुंचे.वहां उन्होंने पाया कि विनोद आर्य, पुलकित आर्य व उसकी पत्नी स्वाति, मित्र सौरभ और अंकित यहां मौजूद थे और पटवारी विवेक कुमार से बातचीत कर रहे थे. उनको बाहर बैठा लम्बा इंतज़ार कराया गया. फिर बुला कर यह कहा कि उसने पुलकित और अन्य से पहले ही रिपोर्ट ले ली है और उसके आधार पर अब कार्यवाही हो रही है.

वीरेंद्र सिंह ने रिपोर्ट लिखवाने की जिद की तो पटवारी ने सिर्फ एक लाइन की रिपोर्ट लिखी कि उनकी बेटी अंकिता गायब हो चुकी है. उन्हें पुलकित द्वारा लिखाई गई रिपोर्ट भी पढ़ने को दी गई. उसने लिखवाया था कि अंकिता अवसाद में थी और उसका मूड बदलने के लिए वह उसे उसकी पसंदीदा चीजें खिलाने बाहर ले गया था. देर शाम सब रिसोर्ट में लौट गए पर अंकिता गायब थी.

वीरेंद्र सिंह ने पटवारी विवेक कुमार से रिसोर्ट का निरीक्षण कराने का अनुरोध किया. रिसोर्ट में पहुँच उन्होंने पाया कि सारे सी सी टी वी कैमरों के तार कटे थे. उन्होंने पुष्प की भेजी वीडिओ रिकॉर्डिंग भी पटवारी को दिखाई. साथ ही बिजनौर के निवासी एक कर्मचारी की रिकॉर्डिंग भी. पटवारी ने जब रिसोर्ट के कर्मचारियों को एक-एक कर बुला पूछताछ करनी शुरू की तो पुलकित उग्र हो गया और हाथापाई पर उतर गया. पटवारी ने भी सारी रिकॉर्डिंग सुन अपने उच्च अधिकारियों को इस बाबत सूचित नहीं किया.

21 सितम्बर 2022 को अपने एक परिचित की मदद से वीरेंद्र सिंह ने विधान सभा अध्यक्ष सुश्री ऋतु खंडूरी से संपर्क किया. वह राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुश्री कुसुम कंडवाल से भी मिले. डी जी पी ने पौड़ी के जिलाधिकारी से बात की तब जा कर 22 सितम्बर को यह मामला जिला पुलिस पौड़ी गढ़वाल के संज्ञान में आया व लक्षमणझूला थाना ऋषिकेश में दर्ज किया गया.

अंकिता भंडारी की उम्र मात्र उन्नीस साल की रही. देवभूमि उत्तराखंड की धार्मिक आध्यात्मिक नगरी ऋषिकेश के पास वनंतरा रिसोर्ट में उसने बीस दिन की नौकरी की. पर्यटन की आड़ में फलते फूलते जिस्म के कारोबार में वी. आई. पी मेहमान के लिए उस पर एक्स्ट्रा सर्विस का दबाव पड़ा. बहलाना-फुसलाना-प्रलोभन जारी रहा. जब अंकिता न मानी तो उसके प्रतिरोध को ही शांत कर दिया गया.
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अंकिता की हत्या कर रिसोर्ट से दूर नहर में उसके पार्थिव शरीर को फेंक दिया गया. हत्यारों ने हर तरह से बचने के लिए प्रपंच रचे. अंकिता की खोजबीन के लिए उसके पिता ने प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखाने की कोशिश चार दिन तक की. 18 सितम्बर 2022 को हुई मौत के छटे दिन आखिरकार अंकिता का शव बैराज से बरामद कर लिया गया.

न जाने किस -किस को बचाने के फेर में राजस्व व रेगुलर पुलिस ने पहले तीन दिन तक जाँच प्रक्रिया शुरू ही न की. इसी बीच जो खास सबूत थे उन्हें मिटा देने, खुर्द -बुर्द कर देने की कोशिश स्थानीय विधायिका द्वारा की जाती रही.

प्रतिरोध के स्वर तीखे हुए. पर्यटन नगरी में घटी यह घटना वासना व प्रलोभन के साथ जबरदस्ती पर आधारित थी. इन सबसे सहमत न होने पर हत्या की इस घटना से लोगोँ में आक्रोश बढ़ते गया. जिसका एक बड़ा कारण जाँच में की गई ढुलमुल थी. सोशल मीडिया मुखर हुआ. महिला संगठन आगे आए. इस दबाव में नैनीताल हाई कोर्ट की निगरानी में जाँच आगे बढ़ी. वकील बिना शुल्क पैरवी को तैयार हुए.

हत्या के चालीस दिन बाद उत्तराखंड महिला मंच की पहल पर “नैशनल फैक्ट फाइंडिंग टीम” पहुंची. यहां सत्ता और शक्ति के ऊँचे खिलाडियों की मिलीभगत से संदेह भरी इस हत्या के कई सूत्र और कड़ियाँ कमजोर करने की हर संभव कोशिश जारी थीं. उत्तराखंड के साथ उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और दिल्ली के मुखर महिला समूह, जनसंगठन, महिला मोर्चा, मानवाधिकार संगठन, प्रबुद्ध जन, पर्यटन विशेषज्ञ व वकीलों के तीस प्रतिनिधि तथ्यों की जाँच में शामिल हुए. इस संयुक्त टीम ने 27 से 29 अक्टूबर तक अपराध स्थल का दौरा किया और अपनी पड़ताल जारी रखी इस उम्मीद से कि इस समूचे कांड से उपजी जो चिंताएं हैं और सुलगते हुए सवाल हैं उनका जवाब जाँच में लगी कतिपय एजेंसियों और अधिकारियों से मिलेगा.

अब यह रिपोर्ट सामने है. हाई कोर्ट ने इस प्रकरण में सही जाँच का कठोर निर्देश दिया था. एस. आई. टी ने चार्ज शीट दायर की थी. पर बहुत प्रश्न अनुत्तरित रहे जिसमें सबसे मुख्य यह था कि आखिर वह वी. आई. पी कौन था जिसको दी जाने वाली विशिष्ट सेवा के कारण मासूम अंकिता को अपनी जान गंवानी पड़ी.

उत्तराखंड एस. आई. टी अपनी रपट में यह स्पष्टीकरण देती है कि वी. आई. पी शब्द का प्रयोग वी. आई. पी सूट में ठहरे व्यक्ति के लिए होता है. हाई कोर्ट भी इसी के साथ जाता दिखता है. दृष्टव्य है कि घटना के तुरंत बाद जानबूझ कर स्थल से कई सबूत खुर्द – बुर्द किये गए जिनके पीछे मौजूदा विधायक रेनू बिष्ट की संलिप्तता रहने के संकेत रहे. क्या उत्तराखंड पुलिस ने ऐसी गतिविधि को अपराध कृत्य माना?
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वी आई पी को विशेष सेवा देने का निर्देश न मानने की परिणति हत्या की साजिश में बदली. तिल-तिल कर अपनी जान गँवाने के नारकीय क्षणों की वेदना को अंकिता ने तब तक भोगा जब वह अपने कथित हत्यारे के चंगुल में फंस गई थी. इसी असुरक्षित दौर में उसने अपने मित्र को सन्देश दे उस तड़प को साझा किया कि “मैं अब फंस गई हूं”.

पौड़ी-गढ़वाल के डोम श्रीकोट गांव की रहवासी उन्नीस वर्षाय अंकिता भंडारी. अपने परिवार का जीवन स्तर सुधारने व छुटपुट आर्थिक परेशानियों को दूर करने के लिए ऋषिकेश क्षेत्र में पौड़ी-गढ़वाल जनपद के गंगा भोगपुर तल्ला गांव में बने वनंतरा रिसोर्ट में रिसेप्सनिस्ट बनी. यह रिसोर्ट उसकी हत्या से छह महिने पहले ही बन कर तैयार हुआ.इसका मालिक पुलकित आर्य पूर्व दर्जा राज्य मंत्री और अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य विनोद आर्य का बेटा था.

अंकिता ने सिर्फ अठारह दिन की नौकरी की जिसके बाद ही वह क्रूर पल आ गया जब पशुलोक और रिसोर्ट के बीच कुंनाऊ पुल के बीच कहीं अठारह तारीख को कथित रूप से उसकी जीवन लीला समाप्त कर दी गई. यह चरमोत्कर्ष तब घटित हुआ जब अंकिता ने रिसोर्ट के वी. आई. पी अतिथि के साथ यौन सम्बन्ध बनाने से साफ इंकार कर दिया.

स्थितियों को अपने पक्ष में करने के लिए पूरी चालाकी के साथ पुलकित आर्य ने यमकेश्वर तहसील की पटवारी चौकी में अंकिता के लापता होने की सूचना दी. यहां जो राजस्व पुलिस अधिकारी वैभव प्रताप थे वह कोई कार्यवाही किये बगैर छुट्टी पर चले गए.

रिसोर्ट से अंकिता के लापता होने की खबर उसके माता पिता को 19 सितम्बर को मिली जब अंकिता के दोस्त पुष्प ने इस दिन शाम के चार बजे उनसे बात की. अंकिता के पिता वीरेंद्र सिंह गुमशुदगी की रपट लिखाने अब पौड़ी शहर, मुनि की रेती, कोतवाली ऋषिकेश दौड़ भाग करते रहे. कहीं क्षेत्राधिकार तो कहीं पटवारी के मौजूद न होने पर उन्हें कंडाखाल चौकी रवाना कर दिया गया जहां उन्हें विवेक कुमार मिला जो पटवारी था और चौकी में कथित हत्यारों पुलकित व उसके दोस्तों के साथ बैठा हुआ था.

अब शुरू हुई घंटों की इंतज़ारी जिसके बाद वीरेंद्र सिंह को बताया गया कि पुलकित ने अपनी मातहत अंकिता के गायब होने की एक विस्तृत रपट दर्ज करा दी है और अब अलग से उनसे रिपोर्ट लेने की कोई जरुरत नहीं है. बार -बार निवेदन करने पर अगले दिन 20 सितम्बर को दोपहर 2 बजे उनसे रिपोर्ट ले ली गई.पटवारी ने अपराध स्थल का मुआयना तो किया पर पूरे मामले की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारी को नहीं दी जिससे यह मामला नियमित पुलिस को सौंपा जा सकता. लापता अंकिता की खोजबीन और जाँच के सिलसिले में दोनों ही पटवारी रिसोर्ट के मालिकों के हित में पूरी मिलीभगत कर रहे थे.
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वीरेंद्र सिंह सही जाँच की कार्यवाही के लिए दर-दर भटके. अंततः वह राज्य महिला आयोग की अध्यक्षा सुश्री कुसुम कंडवाल और विधान सभा अध्यक्षा सुश्री ऋतु खंडूरी के साथ देहरादून के कई वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचे. 22 सितम्बर की सायं पौड़ी के जिलाधिकारी ने उनके आवेदन का संज्ञान ले लक्ष्मण झूला पुलिस को जाँच हेतु आदेश दिया.

23 सितम्बर 2022 को तीनों आरोपी पुलकित आर्य, सौरभ भास्कर, व अंकित गुप्ता गिरफ्तार किये गए. अगले दिन 24 सितम्बर को अंकिता का शव भी बरामद हो गया. उसी दिन ऋषिकेश एम्स में पोस्टमार्टम हुआ. खुलासा किया गया कि अंकिता के शरीर में जो चोटें हैं वह उसकी मृत्यु से पहले की हैं. गुप्तांग के पास ऐसी चोट नहीं पाई गईं जो जबरदस्ती का संकेत बने पर साथ ही यौन हमले को ख़ारिज नहीं किया जा सकता.

25 तारीख की शाम अंकिता का अंतिम संस्कार श्रीनगर गढ़वाल में पिता-पुत्र पर दबाव डाल पुलिस प्रशासन ने करवा दिया. मां को तो बेटी के अंतिम दर्शन तक नसीब न हुए. इस बीच 24 सितंबर को आई.पी.एस व डी.आई.जी सुश्री पी. रेणुका देवी व तीन अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के नेतृत्व में एस.आई.टी का गठन किया गया. अब अपराध स्थल वनंतरा रिसोर्ट पुलिस के नियंत्रण में था जहां 23 सितम्बर की रात को स्थानीय भाजपा विधायिका रेनू बिष्ट द्वारा तथाकथित रूप से लाए गए बुलडोज़र ने उस कमरे को ध्वस्त करवा दिया गया था जिसमें अंकिता रह रही थी.

पुलिस ने यह सफाई दी कि इससे जाँच प्रभावित नहीं होगी क्योंकि उसने सभी जरुरी सबूत जुटा रखे हैं. ऐसी लोपापोती के विरोध में जागरूक जन व कई संगठन ऋषिकेश में रात-दिन धरने पर बैठ गए. सब चाहते थे कि अब जाँच सी.बी.आई को सौंपी जाय. अभी तक हुए हीलहवाले व ढुलमुल जाँच से स्थानीय प्रशासन पर पुलकित का दबाव होने और पक्षपात करने की पूरी संभावना साफ दिखाई दे रही थी.19 अक्टूबर 2022 को हाई कोर्ट में एक रिट याचिका इस अभ्यर्थना के साथ आई कि यह मामला निष्पक्ष रूप से जाँच हेतु सी.बी.आई. को सौंप दिया जाए.

तदन्तर 27 से 29 अक्टूबर 2022 की अवधि में नेशनल फैक्ट फाइंडिंग टीम ने प्रभावित स्थल के दौरे और व्यापक सर्वेक्षण के साथ घटना से जुड़े सभी पक्ष संज्ञान में लिए- बातचीत की. विस्तृत सर्वेक्षण से जो निष्कर्ष सामने आए वह इस हत्याकांड में राजस्व व नियमित पुलिस के असंवेदनशील हो जाँच की विलंबित गति से हुई विफलता को सूचित करते थे. साथ ही साक्ष्य नष्ट करने के साथ मानवीय मूल्यों के अधोपतन की उस संस्कृति को भी पेश कर गए थे जिसमें सत्ता से जुड़े लोगों का गठजोड़ उनके अपराध पर परदा डाल हर नियम, कानून के साथ मर्यादा को कुचल डालने की हर संभव कोशिश करता दिखता था.
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भटकाने की कई कोशिशें लगातार की गईं व कई महत्वपूर्ण पक्ष हाशिये पर रख दिए गए. मकसद सिर्फ यह रहा कि जाँच टले. पहले तो पुलकित ने यह झूठी सूचना दर्ज कराई कि अंकिता गायब हो गई है. मिलीभगत में राजस्व पुलिस ने अंकिता की हत्या के दो दिन बाद प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की और फिर उसके दो दिन बाद मामला लक्ष्मण झूला पुलिस को स्थानांतरित हुआ. पांचवें दिन गिरफ्तारी हुई. छटे दिन नहर से अंकिता का शव बरामद हुआ जो बैराज गेट में अटका हुआ था.

हाई कोर्ट में दायर हलफनामे व पुलिस की चार्ज शीट में हत्या का निर्णायक मामला बना जिसमें तीन अभियुक्त-पेंतीस वर्ष के पुलकित आर्य, उन्नीस वर्ष के अंकित उर्फ़ पुलकित गुप्ता और पेंतीस वर्ष का सौरभ भास्कर शामिल थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर कहा गया कि अंकिता के साथ बलात्कार नहीं किया गया और यह यौन हमले की श्रेणी की हिंसा थी. यौन हिंसा के मामलों में यह स्थापित हुआ है कि मात्र चिकित्सा साक्ष्य ही इस नतीजे के एकमात्र ठोस सबूत नहीं कि जबरदस्ती यौन सम्बन्ध स्थापित किये गए अथवा नहीं. वस्तुतः ऐसे प्रकरण में प्रत्यक्ष दर्शी गवाहों, सोशल मीडिया की चैट और परिस्थितिजनक साक्ष्य देखे जाने जरुरी हैं.

बलात्कार की पुष्टि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के साथ महिला अभियोजक के बयान व अन्य गवाहों के आधार पर की जाती है. इस मामले में अंकिता के साथ हुई जबरदस्ती शाम के समय उसके कक्ष में हुई जिसकी परिणति नहर में धकेल उसकी मृत्यु से हुई. यौन हमले का साक्ष्य अंकिता के कमरे से मिलता जहां पुलकित ने उसे दरवाजे-खिड़की बन्द कर रखा. सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसलों में बार -बार कहा है कि पीड़िता के शरीर पर चोट-खरोचों के निशान न पाए जाने पर भी जबर्दस्ती के आरोप बरकरार रहेंगे. ऐसे में अंकिता के मामले में उत्तराखंड पुलिस का बलात्कार न होने का निष्कर्ष न केवल न्याय शास्त्र की अनदेखी करता है बल्कि बलात्कार को लेकर उस सारी समझ को भी ख़ारिज करता है जो कि निर्भया कांड के बाद बनी है.

साक्ष्य के सन्दर्भ में बहुत छोटी सी अनदेखी भी अभियुक्त को मुक्त कर देती है. जैसा कि पौड़ी की निवासी व गुरुग्राम में साइबर सिटी में काम करने वाली युवती के साथ 2012 में बलात्कार करने वाले व मौत की सजा पाए हुए तीन अभियुक्त 7 नवंबर 2022 को बरी कर दिए गए. 26 अगस्त,2014 को दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के मौत की सजा के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा था कि ये दोषी ऐसे शिकारी हैं जो सरे आम सड़क पर शिकार की तलाश में घूम रहे थे. इन पर रहम करना कानून के साथ खिलवाड़ होगा.
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तीन साल पहले ही अपनी ससुराल से गायब हुई ममता बहुगुणा के मामले में कोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों की पुलिस द्वारा अवहेलना की गई. ममता 25 नवंबर 2019 से गायब हुई और कोर्ट इस मामले को दोबारा खोल कर पुन: जाँच के आदेश दे चुका पर पौड़ी की पुलिस द्वारा अभी तक इन आदेशों का परिपालन नहीं किया गया.

अब वनंतरा रिसोर्ट में हुए अंकिता प्रकरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि होटल व पर्यटन क्षेत्र में काम कर रही युवतियाँ कितनी असुरक्षित हैं. महिला सुरक्षा के क्या प्रावधान हैं और जाँच के क्या नियम हैं? मुख्य रूप से जब होटल व स्पा की जब बात होती है तब महिलाओं के एक असुरक्षित माहौल में धकेले जाने की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है.

अंकिता को रिसोर्ट के एक अलग कमरे में भेज दिया गया था जो अन्य कर्मचारियों के निवास से अलग था. यहीं से अपने भेजे चैट में उसने लिखा कि वह अपने कमरे से बाहर चली गई है क्योंकि रिसोर्ट में कई मेहमान आने वाले हैं. अभी और भी कई कमरों की जरुरत बताई जा रही है. सतही तौर पर यह एक व्यवहारिक निर्णय हो सकता है पर इस मामले में यह पुलकित के सोचे -समझे इरादे के संकेत देता है. उसे अन्य स्टॉफ सदस्यों से अलग सुरक्षित परिवेश से दूर लाया गया ताकि वह अलग-थलग पड़ जाये. ऐसे में पुलकित व उसके साथी आने वाले वी. आई. पी के साथ उस तक आसानी से पहुँच सकें. अंकिता ने तभी अपने दोस्त पुष्प से चैट के माध्यम से उस असुविधा व चिंता की बात की कि उसके जीवन को खतरा है.

अंकिता और उसके दोस्त पुष्प के बीच व्हाट्सअप चैट व ऑडियो सन्देश के इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य हत्या की साजिश की सबसे महत्वपूर्ण कड़ियों को जोड़ते हैं. इनसे न केवल उसकी हत्या के कारणों का खुलासा होता है बल्कि इसे अंजाम तक पहुँचाने वाली नीयत भी साफ हो जाती है. क्या यह सन्देश और इनमें निहित तथ्य उसके मृत्युपूर्व बयान की तरह नहीं देखे जाने चाहिए.

हाउसकीपिंग स्टॉफ अभिनव इस मामले का चश्मदीद गवाह है जिसने बयान दिया कि उसने 18 तारीख की शाम 6 बजे पुलकित को अंकिता का मुँह बन्द करते देखा जब वह फोन पर किसी से मदद की गुहार लगा रही थी. इसके बाद पुलकित एक घंटे तक दरवाजा बन्द कर अंकिता के कमरे में था. पुलकित ने उस कमरे की खिड़की भी बन्द कर दी थी क्योंकि रिसेप्शन पर बैठा स्टॉफ उन्हें देख सकता था. कुछ देर बाद उस कमरे में अंकित भी घुस गया.
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अभिनव ने बताया कि इसी शाम 7 बजे अंकित, पुलकित और सौरभ रिसोर्ट से निकल गए और अपने साथ अंकिता को भी जबरदस्ती दो पहिया वाहन पर ले गए. फिर अगली सुबह ही पता चला कि अंकिता अपने कमरे में नहीं थी. अंकिता का शरीर छह दिन तक पानी में डूबा रहा. शरीर फूल गया था. गल रहा था. अतः चिकित्सकीय साक्ष्य भी इस मामले में अंतिम कथन नहीं माना जा सकता भले ही विभिन्न नमूनों की एफ एस एल रिपोर्ट हो जिसके अनुसार निचली व ऊपरी योनि के पास वीर्य या पुरुष डी एन ए न मिला हो.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार उत्तराखंड में रिपोर्ट किये गए बलात्कारों की संख्या राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है. साथ ही ठंडे बस्ते में डाल बन्द कर दिए प्रकरण भी बहुत अधिक हैं. बलात्कार की जाँच में यदि मात्र चिकित्सकीय सवाल साक्ष्य का आधार ही ध्यान में रखा जाए तो ऐसे अधिकांश मामलों के बन्द होने की सम्भावना ही अधिक रहती है.

समूचे प्रकरण में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने में जो विलंबित रुख अपनाया गया उसे देख ऐसा लगता है कि उत्तराखंड में जीरो एफ आई आर की कोई अवधारणा ही नही है. इस सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश महत्वपूर्ण है कि उत्तराखंड राज्य को विशेष रूप से जीवन और स्वतंत्रता से सम्बंधित मामलों में जीरो नंबर एफ आई आर दर्ज कराने की एक नियमित प्रणाली स्थापित करने की जरुरत है. अंकिता के पिता वीरेंद्र सिंह अपनी बेटी के अचानक गायब होने से स्तब्ध तीव्र कार्यवाही की उम्मीद में जिन परिस्थितियों से गुजरे उससे अपराधों की रिपोर्ट करने व उन्हें दर्ज कराने की प्रणाली में गहरी खाई देखने को मिलती है.

कई सवाल अभी संदेह की परिधि में हैं जैसे की 17 सितम्बर की शाम हाउस कीपिंग स्टॉफ के अभिनव ने बताया कि जब पुलकित ने अंकिता को कमरे में लाकर दरवाजा बन्द किया तो उसके साथ ही वहां मौजूद ड्राइवर भी इस दृश्य का साक्षी है. सवाल यह है कि घंटे भर तक बन्द कमरे में पुलकित अंकिता के साथ क्या कर रहा था. दूसरा सवाल यह है कि अपराध स्थल को जाँच के उद्देश्य से तुरंत सील क्यों नहीं किया गया. विधायिका रेनू बिष्ट गिरफ्तार क्यों नहीं की गई जिसने वहां बुलडोजर चलवा दिया. इसी से जुड़ा सवाल यह है कि उन्हें बुलडोज़र चलाने की अनुमति किसने दी. क्या ऐसी अनुमति पौड़ी के जिलाधिकारी की सहमति से थी.

तथ्यान्वेषण दल ने उस स्थल का दौरा किया जहाँ से अंकिता को नहर में धकेला गया और जहां से उसका मृत शरीर बरामद हुआ. यहां वीरभद्र पुल के सी.सी.टी. वी कैमरों में पुलकित व अन्य दो को वनंतरा रिसोर्ट से अंकिता को ले जाते देखा जा सका था. कनाऊ पुल की पुलिया की रेलिंग जिससे आरोपियों के अनुसार हाथापाई के चलते अंकिता गिर गई थी की ऊंचाई लगभग साढ़े चार फिट थी. सवाल यह है कि पांच फिट लम्बी अंकिता इतने ऊँचे बेरीकेट से गिर कैसे गई. आरोपी अंकिता को वीरभद्र बैराज के सुनसान इलाके में क्यों ले गए? फिर जब अंकिता का शरीर पांच दिन तक कैनाल में डूबा रहा तो उस स्थान की मांसभक्षी मछलियों द्वारा उसके शरीर पर किसी भी प्रकार क्षति नहीं की गई.

अंकिता का शव बरामद होने पर स्थल में पहुंची प्रमिला रावत व शकुंतला बताती हैं कि अंकिता के मृत शरीर की पहचान उसके पिता व भाई ने उसकी नाक के छल्ले के आधार पर की क्योंकि उसका चेहरा जला हुआ था, सामने का दाँत टूटा हुआ था और आँखें बाहर निकली हुई थीं. पत्रकार आशुतोष नेगी ने यह शंका भी प्रकट की कि जो शरीर जलाया गया क्या वह वास्तव में अंकिता का ही था? उसका चेहरा पहचानने लायक हालत में तो था ही नहीं. अंकिता और उसके पिता व मां का डी.एन.ए सैंपल भी नहीं लिया गया.
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इन सवालों के भी उत्तर टाल मटोल भरे रहे कि अंकिता के शव को उसकी माँ को दिखाए बगैर ही हड़बड़ी में रात को ही क्यों जलाया गया? उसके पोस्ट मार्टम के दौरान कोई महिला चिकित्सक क्यों नहीं उपस्थित थी? आखिर वह वी आई पी कौन था जिसका नाम पूरी प्रक्रिया में गुप्त रहा? अंकिता के गायब होने की अवधि में मानव तस्करी प्रकोष्ठ ने क्या कदम उठाया? युवकों की तिरंगा यात्रा को रिसोर्ट में आने से क्यों रोका गया? क्या महज सबूत मिटाने को अंकिता के कमरे में बुलडोजर चलाया गया. रेनू बिष्ट और आरती गौड़ की इस प्रकरण में संलिप्तता भी कई अन्य सवाल खड़े करती है.

गंगा भोगपुर मल्ला की निवासी महिलाओं से बातचीत में पता चला कि भाजपा विधायिका रेनू बिष्ट द्वारा आधी रात में बुलडोजर चला कर कमरा ढहाया गया था. इतनी जल्दबाजी दिखाने के पीछे सबूत मिटा कर अपराधियों को बचाने की मंशा साफ होती है. आखिर रात के दो बजे और फिर तीन बजे दो बार बुलडोजर लाने की जल्दी क्या थी? सवाल यह भी कि विधायिका रेनू बिष्ट को यह किसने बताया कि अंकिता किस कमरे में रह रही थी. यदि होटल का निर्माण गैर कानूनी तरीके से हुआ था तो इसी रात उसे आंशिक रूप से तोड़े जाने की मंशा क्या रही, इसे पूरी तरह क्यों नहीं गिराया गया.

श्रीनगर गढ़वाल में अंकिता प्रकरण से जुड़े जनप्रतिनिधियों ने स्पष्ट रूप से कहा कि उत्तराखंड में राज्य महिला आयोग पूरी तरह से अप्रभावी हो चुका है. महिलाओं पर हो रहे अपराधों को रोकने व महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही मामलों को सुलझाने में इसकी अक्षमता साफ दिखाई देती है.

उत्तराखंड में महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध की दर प्रति लाख जनसंख्या पर लगातार बढ़ रही है. इनमें दहेज हत्या (1.2), आत्महत्या हेतु विवश करना (0.2), अपहरण (6.3)बलात्कार (8.8), पोक्सो (10.1)498ए (12.1)व 354 एस. एच (8.6)रही है.

पर्यटन व्यवसाय तेजी से फलता फूलता कारोबार है पर महिलाओं के लिए यहां काम की विवशता अधिक हैं काम का सुरक्षित माहौल नहीं. यही नहीं रोजगार के मामले में निजी क्षेत्र व असंगठित क्षेत्र भी तनाव व दबाव से भरा हुआ है. कार्य स्थल पर विशाखा नियमावली व कार्य स्थल में यौन उत्पीड़न के लिए बने कानूनों का अनुपालन सीमित ही रहा है. निजी क्षेत्र तो महिला सुरक्षा की उपेक्षा करता ही है, कई प्रकरणों से स्पष्ट होता है कि उत्तराखंड सरकार ने भी महिला सुरक्षा कानूनों को सख्ती से लागू करने के प्रयास नहीं किये.

अंकिता भंडारी के असमय काल कलवित होने की त्रासदी के सन्दर्भ से उत्तराखंड की युवा महिलाओं की उच्च शिक्षा व रोजगार परक प्रशिक्षण तक पहुँच होने के बावजूद रोजगार प्राप्त करने के अवसर सीमित ही बने हुए हैं.उन पर हो रहे, लगातार बढ़ रहे अपराधों को रोकने के लिए किये जा रहे सुरक्षा उपायों पर संदेह बढ़ता जा रहा है.महिलाओं -किशोरियों के प्रति छेड़ खानी व यौन अत्याचारों पर रोक के सबल उदाहरण कम ही हैं. इन सबके साथ पुलिस की लीपापोती व संवेदनाहीन कार्यप्रणाली उत्तराखंड में किशोरियों-युवतियों के लिए आत्मनिर्भर बनने व स्वतंत्रता से जीवन यापन के अधिकार को हाशिये पर रखती प्रतीत होती है.
(Ankita Bhandari Case Complete Report)

अंकिता प्रकरण में उत्तराखंड महिला मंच, पीपु ल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, आल इण्डिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन, जागो री ग्रामीण हिमाचल महिला किसान अधिकार मंच, भारत ज्ञान -विज्ञान समिति, कर्नाटक से बिलकीश बानो, पर्यटन विशेषज्ञ व स्वतंत्र अध्ययन कर्ताओं के साथ उमा भट्ट, मल्लिका विर्दी, दमयंती नेगी व निर्मला बिष्ट द्वारा चार अध्यायों व बारह संलग्नकों की अस्सी पेज की तथ्य परक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई.

प्रोफेसर मृगेश पाण्डे

जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

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