शंभू राणा

हमें शीशी भी नहीं चाहिए, हम अपनी शीशी साथ ले कर आए हैं

किस्सा गंजनाशक तेल और दो यारों का

-शम्भू राणा

उन दोनो की दोस्ती काफी पुरानी और गाढ़ी थी. दोनों की आदतें, स्वभाव और पसंद-नापसंद काफी मिलती थीं. कुछ लोग उन्हें पीठ पीछे उनकी हरकतों के चलते रंगा-बिल्ला की जोड़ी के नाम से पुकारते थे. दोनों ही थे बडे़ चतुर-सुजान. इतने कि अंधे आदमी को फिल्म का टिकट बेच देने की महारत रखते थे. उनकी जिन्दगी यूँ तो मजे में बीत रही थी. पर जिसे कहते हैं न कि कुछ मजा-सा नहीं आ रहा था. समझ में नहीं आ रहा था ऐसा क्या करें कि नाम और दाम दोनों हो जाएं. बहुत दिन तक सर जोड़ कर बैठे पर कुछ सूझा नहीं.

फिर एक दिन चमत्कार हो गया. दिमाग में एक विचार बिजली की तरह कौंधा. उन्हें यों जान पड़ा जैसे वह विचार सातवें आसमान से सीधे उन्हीं पर नाज़िल हुआ हो. उन्हांेने तय किया कि अब वो गंजे सर में बाल उगाने का तेल बेेचेंगे. समाज में गंजत्व तेजी से बढ़ रहा है. कोई भी शौक से गंजा नहीं होना चाहता. घने बालों की चाहत सभी को होती है. हमारा तेल हाथों-हाथ लिया जाएगा. उन्होंने तय किया कि बस, अब और कुछ नहीं. गंजनाशक तेल बेचेंगे ओर तेल की धार देखेंगे.

लेकिन इसमें एक दिक्कत आ खड़ी हो गई. उन दोनों में से एक खुद गंजा था. उसकी खेती उजड़ चुकी थी. लोग उसे गंजा-गंजा कहते थे. लोगों ने स्वाभाविेक रूप से सवाल पूछना था कि पहले अपनी गंज क्यों नहीं दूर कर लेते? दोनों फिर सर जोड़ कर बैठे. और जैसा कि पहले बताया कि वो थे बड़े चतुर-प्रवीण. अपने कोढ़ को सौन्दर्य साबित कर सकते थे. तय पाया कि यह गंजी खोपड़ी तो अपने धंधे में बड़े काम की चीज साबित होगी. यह वरदान है, सुखद संयोग है. हम लोगों को पहले समस्या दिखाएंगे फिर समाधान बेच देंगे.

उन्होंने योजना के तहत गोपनीय रूप से तैयारी शुरू कर दी. बाजार से किसम-किसम के तेल खरीद लाए. उन सारे तेलों को उन्होंने एक पीपे में उंडेल दिया. उसमें थोड़ा इत्र मिलाया और नारंगी रंग डाल दिया ताकि तेल खुशबूदार और रंगीन हो जाए. उन्होंने तेल को छोटी-छोटी शीशियों में भरा, लेबल चिपकाया और गले मे गमछा डाल कर ‘गंजनाशक भालूू छाप तेल’ बेचने निकल पड़े. चाय की गुमटियों, बसों, ट्रेनों, स्कूल-कालेज, दफ्तरों, मोहल्लों….. हर जगह तेल बेचते फिरते. शीशी पर जो लेबल चिपका था उस पर लाल अक्षरों में चेतावनी छपी थी कि तेल को सर के अलावा और किसी अंग पर न लगने दें और मालिश के फौरन बाद खूब रगड़ कर हाथों को धो लें. वरना हथेलियों पर भी बाल उग आएंगे. वो तेल से शर्तिया बाल उगने की गारंटी देते कि अगर न उगें तो हमें दो बाप की औलाद कह देना. लोग अजब किसम की चेतावनी से डर जाते और आम जन की भाषा में मिल रही गारंटी से प्रभावित हो कर तेल खरीद लेते. परोपकार की भावना से एक शीशी अपने किसी दोस्त-रिश्तेदार के लिए भी रख लेते. धीरे-धीेरे तेल बिकने लगा.

शुरू में उन्होंने तेल के साथ थोक में खरीदी हुई सस्ती-सी कंघी मुफ्त में दी. फिर जब तेल की बिक्री ने कुछ और रफ्तार पकड़ी तो उन्होंने तय किया कि हम क्यों बेवजह हर शीशी पर इतने पैसे का घाटा खाएं ? मुफ्त कंघी वाली योजना स्थगित कर दी गई. और बड़ी चतुराई से यह कह कर कंघी बेचनी शुरू कर दी कि बाल तो आपके उगने ही हैं. आप यह शोधित कंघी भी हमीं से ले लें तो अच्छा रहेगा. वर्ना…… देख लीजिए.

शुरूआत में उन्होंने खुद अपने हाथों से गंजों के सरों में तेल मला कि आजमाने का कोई पैसा नहीं. असरदार न लगे तो मत लेना. कोई जोर जबरदस्ती तो है नहीं. मालिश के जरा देर बाद गंजा आदमी सर में झनझनाहट की शिकायत करता तो वो कहते- देख लो, खुद अपनी आंखों से देख लो. हमारी बात पर तो तुम्हें भरोसा नहीं था. अरे भले प्राणी, झनझनाहट होने का सीधा-सा मतलब है कि तेल खोपड़ी की जड़ तक पहुंच गया है और बालों की सोई हुई जड़ों को जगा रहा है. सर में झनझनाहट एक खास किस्म के रसायन से होती थी. उसे तेल में इसी मकसद से मिलाया गया था कि आदमी को लगे कुछ तो हो रहा है.

तेल के साथ उन्होंने कुछ नियम और परहेज भी बताने शुरू कर दिए. ये खाना, वो नहीं खाना, किस दिशा को सर कर के सोना ओर अकेले सोना वगैरा-वगैरा. वर्ना पूरा फायदा नहीं हो पाएगा ओर आप दोष दोगे हमारे तेल को!

बाल उगाने का तेल बेच रहे गंजे आदमी से जब कोई पूछ बैठता कि तुम क्यों गंजे हो, अपने सर पर क्यों नहीं बाल उगा लेते ? तो गंजा भीड़ से मुखातिब होता कि देखिए, ये होती है एक पढ़े-लिखे, समझदार और बुद्धिजीवी आदमी की पहचान ! भाई साहब, आपने एकदम वाजिब सवाल पूछा है. मैं कब से इस सवाल का इन्तजार कर रहा था. तो सर, बात ये है कि जो थोड़े-से बाल आप मेरे सर पर देख रहे हैं न, वो इसी तेल की बदौलत हंै. वर्ना मेरा सर फुटबाल की तरह सफाचट हो चुका था. मैं आए दिन तेल में पड़ने वाली जड़ी-बूटी की खोज में जंगल-जंगल मारा फिरता हूं इसलिए ठीक से परहेज नहीं हो पाता. वर्ना अभी तक तो मेरी घनी जुल्फें होतीं. लेकिन आपको यकीन दिलाता हूं जब हम अगली बार मिलेंगे तो यकीनन आप मुझे पहचान नहीं पाएंगे. आज आप गंजेपन से दुुखी हैं, तब आप अपने बढ़ते बालों से परेशान होंगे कि रात कटा के सोता हूं सुबह को फिर उतने ही लंबे हो जाते हैं.

कुछ ही दिनों बाद उन्होंने ऐसे लोगों को भी पकड़ कर तेल बेचना शुरू कर दिया जिन्हें बालों की कोई समस्या ही नहीं थी. वो आदमी की राह रोक कर कहते- तुम्हारा आभामंडल बता रहा है कि तुम गंजे होने वाले हो. हमारा तेल ले लो वरना गंजे हो जाओगे.

देखते ही देखते उनके गंजनाशक तेल का चर्चा हर जबान पर हो गया. हर गली-मोहल्ले, सभा-सोसाइटी में तेल की बातें होने लगीं. बात चाहे जो चल रही हो, जाकर गंजेपन और तेल पर ही खत्म होती. लोगों में तेल खरीदने की होड़ सी लग गई. छीना-झपटी, मारपीट होने लगी. लोग घरों से खाली शीशियां लेकर कतारों में लगने लगे और मिन्नतें करने लगे कि भय्या तेल दे दो, हमें गंजा होने से बचा लो. दाम चाहे जो ले लो. हमें शीशी भी नहीं चाहिए, हमें अपनी शीशी साथ ले कर आए हैं.

धीरे-धीरे उनकी सम्पन्नता और लोकप्रियता आसमान छूने लगी. अब वे मजमा नहीं लगाते थे. उनके सैकड़ों स्वयंसेवक सुबह को जरकिनों में तेल भर कर यहां-वहां फैल जाते और शाम को झोले भर-भर कर रुपया उन्हें दे जाते. जहां देखो लोग तेल और इन दो दोस्तों की शान में कशीदे पढ़ते नजर आते. वाह, क्या चीज खोजी पठ्ठों ने ! जल्दी ही हमारा देश दुनिया का पहला गंजमुक्त देश होगा. हम इस मामले में विश्व गुरु होंगे. आप देखना इस तेल से कितनी बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा आएगी.

समय बीतता गया. काफी समय बीत गया. कुछ लोग जो लम्बे समय से गंजों पर नजर रख रहे थे और कुछ गंजों ने भी जो काफी अर्से से खोपड़ी में तेल मले जा रहे थे, दबी जबान में पूछना शुरू कर दिया कि भाई बाल तो छोड़ो, किसी के सर में रोआं-सा भी नजर नहीं आया. इतना समय गुजर गया, आखिर कब ? जिसने भी यह सवाल सार्वजनिक स्थान पर पूछा, उसे लोगों ने यह कह कर पीट दिया कि साला नास्तिक जान पड़ता है. धैर्य और श्रद्धा नाम की चीज इनमें होती ही नहीं. अबे क्या तेरे सारे बाल दो दिन में झड़ गए थे जो चार दिन मे उग आएंगे ? बताया गया परहेज तुम करोगे नहीं और दोष दोगे तेल को. हमारे ऋषि-मुनियों के ज्ञान पर शक करोगे, उन्हें बदनाम करोगे. बेटा, धीरज रखो. तेल को शक की निगाह से मत देखो. कह दिया न कि बाल आएंगे. इतने साल गंजे रहे, तब तुमने चूं-चपड़ नहीं की. अब गज भर की जबान निकल आई है ! ऐसे अनाप-शनाप बकते रहे तो किसी दिन खोपड़ी से ही हाथ धो बैठोेगे. फिर बाल कहां उगेंगे?

समय के साथ-साथ तेल वाले गंजे पर दबाव बढ़ता गया कि वह सारी दुनिया का गंजापन दूर करने का दावा करता है पर खुद क्यों गंजा है ? गंजे ने इस पर एक बयान जारी किया कि मैंने भावी पीढ़ी की खातिर आजीवन गंजा रहने का फैसला किया है. वह दिन दूर नहीं जब समाज में एक भी गंजा देखने को नहीं मिलेगा. तब भय्या कैसे समझाओगे अपने बच्चों को कि गंजा क्या होता था ? एक तो गंजा समाज में बना रहे ताकि कल को तुम्हें तकलीफ न हो. लोगों ने जयकारा लगाया कि इस पुण्यात्मा का त्याग तो देखो जरा! और हम क्या जो समझ रहे थे.

और गंजनाशक तेल धड़ल्ले से बिकता रहा.

वैसे तो हर अफसाने की तरह यह अफसाना भी ख्याली है. मगर क्या आप यकीन से कह सकते हैं कि गंजनाशक तेल बिकने की गुजाइश अब नहीं रही ?

शंभू राणा विलक्षण प्रतिभा के व्यंगकार हैं. नितांत यायावर जीवन जीने वाले शंभू राणा की लेखनी परसाई की परंपरा को आगे बढाती है. शंभू राणा के आलीशान लेखों की किताब ‘माफ़ करना हे पिता’  प्रकाशित हो चुकी  है. शम्भू अल्मोड़ा में रहते हैं और उनकी रचनाएं समय समय पर मुख्यतः कबाड़खाना ब्लॉग और नैनीताल समाचार में छपती रहती हैं.>

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