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कोरोना महामारी के समय एक जरुरी लेख

दुनिया नहीं खत्म होने वाली लेकिन कुछ लोग होंगे जिनकी पूरी दुनिया खत्म हो जाने वाली है. पूरी दुनिया अब भारत जैसे देशों की कार्यवाही पर निर्भर करती है. इस वायरस का प्रकोप कम होने के बाद दुनिया की शक्ल कैसी होगी वो हमारे ऊपर निर्भर करता है. हमारी लड़ाई, हमारी तैयारी, हमारे रिस्पॉन्स पर. सोशल डिस्टेंसिंग के बाद जो और ज़रूरी चीज़ है वो टेस्टिंग है, चेकअप है, आइसोलेशन है, ट्रीटमेंट है. Corona Epidemic in India

एंटी वायरस वैक्सीन पर बड़े देश रिसर्च कर रहे हैं. जो खबरे हैं उसके अनुसार उसे आने में एक से डेढ़ साल का वक्त लगने वाला है. तब तक कोरोना का ये सीज़न अपना काम कर चुका होगा.

ट्रीटमेंट की दवाओं पर भी अभी रिसर्च चल ही रहा है. जानकारी के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 22 मार्च से ‘सॉलिडेरिटी’ के नाम से चार ट्रीटमेंट लाइंस का एक मेगाप्रोजेक्ट शुरू किया है. इसके रिज़ल्ट आने और स्टैंडरडाइज़ होने में सम्भवतः दो- चार महीने तो लग ही जाएंगे. तब तक हमारे देश का शायद ही कोई गाँव, शहर या कस्बा होगा जो बिना एक भी कोरोना पॉज़िटिव के रह पाएगा.

सवा सौ अरबपतियों के इस देश में अस्पतालों की जो सूरत हमारे देश में है वो कितनी दयनीय है इसके लिए आपको किसी पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन की ज़रूरत नहीं है. माइक्रो लेवेल पर उतरिये. अपने सबसे करीबी स्वास्थ्य केंद्र (जो सम्भवतः सबसे अस्वस्थ सरकारी संरचनाओं में आता है) का मुआयना कीजिये. नहीं, जाइये नहीं बस जानकारी कीजिये. पेशेंट्स के लिए आइसोलेशन वार्ड (अजी छोड़िए! जनरल/प्राइवेट वार्डस ही देख लीजिए) की स्थिति, ज़रूरी दवाएं, पानी, वेंटीलेटर और अन्य सुविधाएं ढूँढने पर दिख रही हैं?

कोरोना टेस्ट किट हैं? डॉक्टर्स, नर्सें और पैरामेडिक अन्य स्पोर्ट सर्विसेज़ वालों के पास पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट PPE हैं? मास्क हैं? ग्लव्स हैं? साफ शौचालय, पानी और बहुत सी अन्य ज़रूरी सुविधाएं हैं? स्टाफ पूरा है? आप तो शहर में रहते हैं. तो ये शहरों के या जिला अस्पतालों का हाल है. बाकी स्थानों की कल्पना से ही सिहरन होती है. बाहरी मुल्कों का अनुभव सामने है हमारे. पहला, कम्युनिटी स्प्रेड होने के बाद मरीजों की संख्या एक्सपोनेंशिल आकार में बढ़ती है. दूसरा, संक्रमण का सबसे सीधा और बड़ा खतरा मेडिकल स्टाफ को होता है. Corona Epidemic in India

डॉक्टर्स देवता होते हैं जैसी बे सिर-पैर की भावनाओं से बाहर आइये. इंसान बराबर ट्रीट कर लीजिये. उन्हें काम करने के लिए मामूली सी ज़रूरतें होती हैं, आज ताली बजा दी आपने अच्छा है, कल अपनी जान की ज़रा सी परवाह करने लगे डॉक्टर को राष्ट्रद्रोही कहने से पहले उन ज़रूरतों पर ध्यान दे लीजिये और जिन्हें असल ध्यान देना है, उन्हें कोंचते रहिए.

माइक्रो लेवेल पर उतरिये. एडवाइज़रीज़ पढ़िए. जानकारी रखिये. आपको अपने परिवार में, पड़ोस में किसी को कोरोना जैसे सिम्टम्स का अंदेशा होता है आप कहाँ किसे फोन करेंगे टेस्ट के लिए कहाँ जाएंगे? आपके पड़ोस में कोई रिश्तेदार, मेहमान बाहर से आया है पिछले हफ्ते उसके बारे में किसे बताएंगे? सरकारी मशीनरी से अपेक्षित रिस्पॉन्स/सहयोग नहीं मिल रहा तो मामले को ऊपर कैसे ले जाएंगे? Corona Epidemic in India

अपनी पूरी इच्छाशक्ति के बाद भी बहुत जल्द सरकारों के हाथ छोटे पड़ जाएंगे. ज़रा पूछ लीजिये न शहर के आला अधिकारियों से कि चिकित्सीय कार्यों में लगे डॉक्टर्स और अन्य लोगों की, मेडिकल सामानों या अन्य सुविधाओं के इंतजाम में आप क्या मदद कर सकते हैं.

इसके अलावा क्या चीज़ क्या है हमारे हाथ में? यही कि इस गाँव-शहर और कस्बे वाली स्थिति को कन्टेन किया जाए, रोका जाए, कम-से-कम किया जाए. सोशल डिस्टेंसिंग को पूरी शिद्दत से निभाया जाए. ‘कुछ लोग’ जिनकी दुनिया खत्म हो सकती है उन्हें ‘बहुत कम लोग’ बना दिया जाए. Corona Epidemic in India

डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं.

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अमित श्रीवास्तव. उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं.  6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी तीन किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता) और पहला दखल (संस्मरण) और गहन है यह अन्धकारा (उपन्यास). 

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