सन सत्तर के दशक में उत्तर प्रदेश पर्यटन ने अल्मोड़ा की पहचान की थी – ‘ अनस्पॉइल्ट चाइल्ड ऑफ़ नेचर’ . 1560 का ऐतिहासिक शहर तब भी सुरक्षित था. विरासत की पटाल बाजार, मंदिर, नौले, तीज, त्यौहार सभी के लिए दर्शनीय थे. सुबह सुबह गाँवों से सब्जी – दूध लाते, दिन में लकड़ी व छिलके के गट्ठर लाते, आसपास मुहल्लों में किस्से कहानी सुनाते लोग जैसे पर्यटकों का आकर्षण केंद्र हुआ करते थे. एक समय अल्मोड़ा माल रोड में देशी विदेशी पर्यटकों को अक्सर घूमते देखा जाता था. वे बागेश्वर, चौकोड़ी या मुनस्यारी अथवा हिमालय में आने जाने से पहिले कुछ समय यहाँ अवश्य गुजारते थे.
गोबिंदा लामा, चित्रकार ब्रुस्ट, बोसी सेन, उदय शंकर, स्वामी विवेकान्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे कितने महत्वपूर्ण लोगों ने अल्मोड़े के महत्व को समझा और अपने कार्यों के लिये समय व्यतीत किया.
अल्मोड़ा अपनी सुखद जलवायु के कारण सम्पूर्ण वर्ष पर्यटकों को आकर्षित करता है. यहां से डोली डांडा, शितलाखेत, कसार देवी, बानड़ी देवी के सुगम ट्रेनिंग मार्ग हैं. जिले का सर्वोच्च शिखर भरतकोट है जो विश्व के पहिले ऑटोबायोग्राफी लिखने वाले योगानंद जी के गुरु लाहरी महाशय की दर्शन गुफा से संबंधित है. अष्ठ भैरव और नवदुर्गा जैसे ऐतिहासिक मंदिरों का इतिहास अद्भुत है, रामकृष्ण आश्रम, टैगोर हाउस, पलटन बाजार, थाना बाजार, गंगोला मुहल्ला, जौहरी बाजार, नंदा देवी, चर्च, चीना खान मुहल्ला, आज भी अपने अस्तित्व को बचाने में प्रयासरत हैं.
लगता है शहर अपनी पहचान खोता जा रहा है यहां महोत्सव तो हो रहे हैं लेकिन इतिहास और संस्कृति दोनों इससे गायब हैं. महोत्सव का होना ठीक है, लेकिन इसको देखने वाले कौन हैं? क्या महोत्सव का आयोजन शहर के लोगों के मनोरंजन के लिये किया गया था या पर्यटकों के लिए जो अल्मोड़ा को एक सांस्कृतिक शहर मानते हैं. लगता है दोनों के लिए अब ये शहर अब ‘अनस्पॉइल्ट चाइल्ड ऑफ़ नेचर’ नहीं रह गया है.
भरत शाह
भरत शाह अल्मोड़ा में रहते हैं और साहसिक पर्यटन से जुड़ी एक कम्पनी के स्वामी हैं. हिमालय की ऊंचाइयों पर ट्रेकिंग और साइक्लिंग के शौकीन भरत उत्तराखंड की विविध समस्याओं पर मुखरता से अपनी बेबाक बात कहने के लिए जाने जाते हैं.
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