उत्तराखंड में मानसून ने दो हफ़्ते पहले ही दस्तक दे दी है. मौसम का मिजाज ग्रीष्म ऋतु के इन पूरे महीनों में बदला रहा. जहाँ एक ओर पहाड़ के ऊपरी हिस्सों में बर्फबारी के साथ-साथ लगातार बारिश हो रही है वहीं दूसरी ओर श्रीनगर जैसे शहर में उस तरह की गर्मी महसूस ही नहीं हो रही जो अमूमन गर्मियों के इन दिनों में होती है. अब इसे जलवायु परिवर्तन कहा जाए या ग्लोबल वार्मिंग का असर या फिर कुछ और, यह वैज्ञानिक शोध का विषय है. उत्तराखंड के लिहाज से मौसम का इस तरह करवट बदलना शुभ संकेत नहीं है.
(All Weather Road Uttarakhand 2021)
जून, 2013 आपदा की यादें आज भी हमारे जहन में ताजा हैं. उस साल भी मौसम में अचानक बदलाव के कारण अतिवृष्टि हुई और उसके बाद जो विनाश लीला हुई वह उत्तराखंड के उस इतिहास में दफ़्न है जिसे याद कर आज भी सिहरन पैदा होने लगती है. वर्तमान में ऊपर पहाड़ों में हो रही लगातार बारिश के कारण श्रीनगर में बने जी.वी.के. पावर प्रोजेक्ट को अपनी डायवर्टेड नहर में पानी को रोककर डैम के सारे गेट खोलने पड़े हैं जिस वजह से अलकनंदा नदी लगभग खतरे के निशान पर बह रही है. अलकनंदा के ही बीच में बने धारी देवी मंदिर पर भी दरकने का खतरा मंडरा रहा है जिसके सिर्फ कुछ ही फुट नीचे से पानी तेजी से हरिद्वार की ओर बह रहा है.
विकास के जिस मॉडल पर उत्तराखंड बढ़ रहा है कहीं मौसम का बदला यह मिजाज उसी का नतीजा तो नहीं है? अपनी पिछली रिपोर्ट में मैंने यह बताने की कोशिश की थी कि किस तरह पहाड़ों में विकास के नाम पर बेतरतीब पेड़ों और पहाड़ों की कटाई की जा रही है. उसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए आज बात करते हैं भारत सरकार के उस ड्रीम प्रोजेक्ट की जिसका नाम है “ऑल वैदर रोड”.
(All Weather Road Uttarakhand 2021)
चार धामों के साथ ही टनकपुर को पिथौरागढ़ से जोड़ने वाली इस अति महत्वाकांक्षी सड़क योजना का बजट 12 हजार करोड़ रखा गया था जिसे उत्तराखंड के पर्यटन के साथ ही बॉर्डर की सैन्य रक्षा के लिहाज से प्रचारित किया गया था. लेकिन कुछ ही समय में यह प्रोजेक्ट विवादों से घिर गया. कभी एनजीटी ने सरकार को आड़े हाथों ले प्रोजेक्ट पर रोक लगाई तो कभी सुप्रीम कोर्ट ने प्रोजेक्ट के मानकों में चल रही गड़बड़ियों के तहत सरकार को डॉ. रवि चोपड़ा कमेटी की उन तमाम सिफारिशों को तत्काल प्रभाव से लागू करने को कहा जो पर्यावरण के लिहाज से अति आवश्यक थी. लेकिन जब तक कमेटी की सिफारिशें लागू होती तब तक पानी सर के ऊपर से निकल चुका था.
प्रोजेक्ट के दौरान हजारों पेड़ों की कटाई तो हुई ही साथ में पहाड़ों को काटने के बाद जो मलबा निकला उसे भी कई जगह नदियों में डंप किया जाने लगा. अलकनंदा, मंदाकिनी, काली या सरयू नदियों में डंप किये गये इस मलबे को देखा जा सकता है. श्रीनगर के पास बने बाँध में डंप किये इस मलबे से इतना अधिक मलबा जमा हो गया है कि रेत पानी से ऊपर साफ नजर आने लगी है. ऐसी अनेक साइट हैं जहाँ अलकनंदा, मंदाकिनी व गंगा में मलबा डंप किये जाने के कारण उनका जलस्तर लगातार बढ़ रहा है.
नेशनल हाइवे 58 कई जगह भूस्खलन के कारण बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है जिस वजह से वाहनों के आवागमन पर कई बार रोक लगानी पड़ी है. पिछले ही महीने नरकोटा के पास भूस्खलन के कारण हाइवे तीन दिन बंद रहा. अपने शोध कार्य के लिए कल जब मैं रूद्रप्रयाग जिले तक गया तो वापसी में उसी भूस्खलन क्षेत्र से गुजरते हुए अचानक पहाड़ी से कुछ पत्थर गिरने लगे जो मेरे हेल्मेट में आकर भी लगे. इस तरह की घटनाओं से न जाने कितने ही लोग हर दिन पार पाते होंगे और अपनी जान जोखिम में डालकर यात्रा करते होंगे.
कई भूस्खलन क्षेत्रों में पहाड़ों को तारों व सीमेंट से बाँधने की कोशिश की जा रही है लेकिन उत्तराखंड हिमालयी क्षेत्र के पहाड़ इतने भुरभुरे व कच्चे हैं कि वह बरसात होते ही ढहकर नीचे आ जाते हैं और इंसान की उस सोच को धता बता देते हैं जिसमें वह पहाड़ों को बाँधकर उनमें विजय पाना चाहता है.
पिछले दो सीजन से चार धाम यात्रा लगभग न के बराबर हुई है और लॉकडाउन व कर्फ़्यू के कारण लोग सड़कों में आने से बचते रहे हैं इसके बावजूद नेशनल हाइवे 58 में सैकड़ों जगहें ऐसी हैं जहाँ सड़क या तो टूटने लगी है या फिर धँस गई है. सड़क का टूटना व धँसना तथा सैकड़ों जगहों पर एक्टिव लैंडस्लाइड जोन का उभर आना आल वैदर रोड को लेकर बरती गई अवैज्ञानिक सोच व पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) न किये जाने का ही एक परिणाम लगता है.
(All Weather Road Uttarakhand 2021)
पहाड़ों में विकास के खिलाफ शायद ही कोई हो लेकिन विनाश कि इस शर्त पर विकास शायद ही किसी उत्तराखंडी को मंजूर हो जिसमें पल-पल जानमाल का खतरा बना हुआ है. उत्तराखंड को सतत विकास की नितांत आवश्यकता है जो न सिर्फ वर्तमान पीढ़ी के लिए उपयोगी हो बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी बचा रहे. संसाधनों का सीमित दोहन व उपयोग सतत विकास की मूल अवधारणा है.
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों की हकीकत देखी जाए तो लोगों को आल वैदर रोड से ज्यादा आल वैदर हैल्थ सर्विसेज, आल वैदर एजुकेशन, आल वैदर जॉब सैक्योरिटी तथा आल वैदर लिविंग कंडीशन की जरूरत है. जिस दिन ये बेसिक सुविधाएँ हर मौसम में सुदूर पहाड़ी गाँवों तक पहुँच जाएंगी उस दिन शायद आल वैदर रोड जैसी अवधारणाएँ लोगों की समझ में आ पाएँगी.
(All Weather Road Uttarakhand 2021)
–कमलेश जोशी
नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.
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1 Comments
MAYANK PRASAD
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