पर्यावरण

टनकपुर-पिथौरागढ़ ऑल वैदर रोड पर बिताई दो रातें

सितम्बर का महीना था. मौसम का मिज़ाज इस कदर बदला हुआ था कि चौमासे में बारिश ना के बराबर हुई. सितम्बर मध्य में मौसम विभाग ने पहाड़ों में 3 दिन बारिश का अलर्ट जारी किया. पहाड़ों में बारिश होना और रास्तों का बाधित हो जाना कोई नई बात तो है नहीं. दशकों से पहाड़ों में रोड ब्लॉक की सैंकड़ों खबरें हम सुनते आए हैं. लेकिन मेरी इस यात्रा की अहम बात यह थी कि मुझे हाल ही में टनकपुर से पिथौरागढ़ तक बन रही ऑल वैदर रोड से होते हुए चंपावत तक का सफर तय करना था.
(All Weather Road Tanakpur Pithoragarh)

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चंपावत तक ऑल वैदर रोड का काम लगभग पूरा हो चुका था और कहा यह जा रहा था कि यह सड़क मौसम की हर मार झेलने के लिए तैयार है. शुक्रवार की शाम मैं और चंपावत निवासी मेरे बड़े भाई साहब कार से चंपावत के लिए निकले. आसमान बादलों से घिरा हुआ था लेकिन फिलहाल बारिश नहीं हो रही थी. हमें उम्मीद थी कि रात को 8 बजे तक हम चंपावत पहुँच जाएँगे. उस पर अगर बारिश होगी भी तो ऑल वैदर रोड का साथ तो हमारे साथ है ही.

टनकपुर बैरियर पर पुलिस ने हमें रोक दिया और आगाह किया कि बारिश की संभावना है इसलिए रात का सफर करना ठीक नहीं है. हमने पुलिस को अपनी इस यात्रा की नितांत आवश्यकता के बारे में बताया और मिन्नतें की कि मात्र 2 घंटे का रास्ता है जाने दें और फिर ऑल वैदर रोड है तो खतरा किस बात का है? पुलिस ने हमारा नाम पता रजिस्टर में दर्ज करवाया और सूरज ढल जाने के बावजूद ऑल वैदर रोड के भरोसे हमें आगे बढ़ने की इजाजत दे दी. सूखीढॉंग तक मौसम ने साथ दिया उसके बाद कुछ देर बूँदाबाँदी हुई और चल्थी का पुल पार करने तक ऐसा लगा ही नहीं कि कहीं कोई समस्या है. इस वक्त तक ऑल वैदर रोड हमें दुनिया की सबसे बेहतरीन सड़कों में से एक लग रही थी. ये इस सड़क का ही कमाल था कि हम मात्र 1 घंटे में टनकपुर से चल्थी पार हो गए थे.

स्वाला तक पहुँचे ही थे कि बारिश तेज होना शुरू हो गई. स्वाला से चंपावत मात्र 20-22 किलोमीटर बचा होगा. हम सावधानी से आगे इस उम्मीद में बढ़े जा रहे थे कि अगले एक घंटे में चंपावत में होंगे लेकिन अगले ही पल कुछ यूँ हुआ कि स्वाला और धौन के बीच मूसलाधार बारिश के चलते ऑल वैदर रोड का एक पूरा हिस्सा सड़क समेत घाटी में समा गया. लगभग 20 फीट लंबा नेशनल हाईवे पूरी तरह गायब हो गया और चंपावत शहर समझिये दो दिन के लिये भाबर से लगभग कट गया. अब चंपावत की तरफ गाड़ी से तो छोड़िये पैदल भी सड़क के दूसरी तरफ नहीं जाया जा सकता था.
(All Weather Road Tanakpur Pithoragarh)

रोड ब्लॉक हुई और गाड़ियों की लंबी कतार सड़क किनारे लग गई. यह तय था कि आज की रात सड़क पर गुजरेगी. आस-पास न तो कोई होटल था और ना ही रहने का ठौर ठिकाना. बारिश लगातार मूसलाधार होती जा रही थी. हमने गाड़ी वापस घुमाई और स्वाला के पास एक ढाबे में खाना खाया. ढाबे वाले का खाना आज समय से पहले ही ख़त्म हो गया था. सिर छुपाने को तो ढाबे में जगह थी लेकिन बिस्तर नहीं था. रात का पहर बढ़ने के साथ ही पारा तेजी से गिरने लगा था तो हमने निर्णय लिया कि पूरी रात कार में ही गुजारनी होगी. कार की सीट को लंबा कर हम उसमें सोने की कोशिश करने लगे लेकिन पूरी रात बारिश इतनी भयानक हुई कि सोने से ज़्यादा जहन में डर सा बैठ गया.

बारिश की मोटी-मोटी बूँदें लगातार कार की छत और बोनट पर इस तरह प्रहार कर रही थी मानो कोई लोहार लोहे को पीट रहा हो. पूरी रात में एक ऐसा पहर नहीं था जब बारिश कम या मद्धम हुई हो. सुनसान सड़क, घुप्प अंधेरा, मूसलाधार बारिश, मोबाइल नेटवर्क गायब, लगातार बढ़ती ठंड और मन में बैठा डर रात को इतना लंबा किये जा रहे थे कि एक-एक पल बिताना भारी पड़ रहा था. सुबह के इंतजार में ऑंखों से नींद ग़ायब थी. सुबह हुई लेकिन बारिश अब भी लगातार उसी वेग से बरस रही थी जैसे पूरी रात बरसी थी. ऐसे हालात में प्रशासन से मदद की भी कोई खास उम्मीद नहीं थी. मौसम खुलता तो मदद की गुहार लगाई जाती.

जैसे-जैसे दिन चढ़ना शुरू हुआ बारिश कुछ कम हुई. हम स्वाला के पास उस जगह दुबारा गए जहाँ सड़क पूरी तरह ग़ायब हो चुकी थी. उजाले में सड़क को पूरी तरह धरती में समाया हुआ देख हमें यह समझ आ गया कि अगले दो दिन तक हम इस सड़क से तो चंपावत नहीं पहुँच सकते. मैंने और बड़े भाई साहब ने तय किया कि कार को ढाबे में सुरक्षित खड़ा कर पैदल चंपावत की तरफ निकला जाए. भाई साहब का घर और ड्यूटी चंपावत में थी और मुझे अपना जरूरी काम निपटाकर रविवार तक वापस नानकमत्ता आना था. शुक्रवार से चले हम दोनों अभी शनिवार तक स्वाला में ही थे. मुझे एहसास था कि अगर मैं पैदल भी चंपावत गया तो रविवार तक इस सड़क से तो वापस नानकमत्ता नहीं आ पाऊँगा इसलिए हमने तय किया कि भाई साहब पैदल चंपावत की तरफ जाएँगे और मैं वापस किसी गाड़ी में टनकपुर की तरफ निकलूँगा. कार चलाना न सीखने का असल नुकसान मुझे उस दिन समझ में आया जब कार होते हुए भी मैं उसे ढाबे में खड़ा कर टनकपुर वापस जाने वाली किसी गाड़ी का इंतज़ार कर रहा था.
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कतार में खड़े ट्रक जस के तस वहीं खड़े रहे और छोटी गाड़ियों ने वापस टनकपुर की तरफ मुड़ना शुरू कर दिया. हर दिन हल्द्वानी से चंपावत तक अख़बार लाने वाली गाड़ी भी बासी हो चुकी खबरों से लदे अख़बारों को लेकर वापस टनकपुर की तरफ मुड़ चली. मैं सवारी के तौर पर अख़बार वाली गाड़ी में बैठ गया. उम्मीद थी कि नीचे की तरफ ऑल वैदर रोड बिल्कुल दुरुस्त होगी और हम अगले दो घंटे में टनकपुर में होंगे. स्वाला से 8-10 किलोमीटर ही नीचे उतरे थे कि सड़क पर लगभग 4 फीट ऊँचा मलबा मार्ग अवरुद्ध किये हुए था. जेसीबी का इंतजार करने के सिवाय हमारे पास कोई दूसरा चारा नहीं था.

एक घंटे बाद एक जेसीबी आई और उसने मलबे के ऊपर से गाड़ी निकलने लायक कामचलाऊ रास्ता बना दिया जिसे सावधानी से पार कर हम आगे बढ़े. जैसे-जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे वैसे-वैसे बीती रात हुई मूसलाधार बारिश से आई तबाही के निशान सड़क पर कुछ-कुछ दूरी पर नजर आने लगे थे.

कुछ किलोमीटर और नीचे उतरे की सड़क पर लगभग 8-10 फीट ऊँचा मलबा पूरी सड़क को ब्लॉक किये हुए था. इतना ऊँचा मलबा हटाने के लिए लगभग पूरे दिन की दरकार थी. दो जेसीबी की मदद से लगभग 4-5 घंटे बाद मलबे की ऊँचाई को 3-4 फीट तक लाया जा सका और उसके ऊपर से फिर एक कामचलाऊ रास्ता बनाकर गाड़ियों के निकलने की व्यवस्था की गई. शाम के लगभग 5 बज चुके थे और टनकपुर अभी भी 35-40 किलोमीटर दूर था. अब उम्मीद थी कि आगे रास्ता साफ मिलेगा लेकिन जैसे ही सूखीढाँग पहुँचे वन विभाग के कर्मचारियों ने रोक दिया. बताया गया कि बस्तिया से पहले रास्ता दो जगह अवरुद्ध है और रात होने की वजह से मलबा हटाने का कार्य सुबह तक के लिए स्थगित कर दिया गया है. ऊपर से यह कि उस इलाके में बाघ लगा हुआ है जो पिछले दो तीन दिनों से चलती मोटरसाइकिल पर सवार लोगों पर कई बार हमला कर चुका है.

बाघ का नाम भर सुना कि सभी की गाड़ियों के ब्रेक सूखीढाँग में ही जाम हो गए. समस्या फिर वही-न रहने को होटल, न बिस्तर, न खाना, न मोबाइल नेटवर्क ऊपर से बाघ का डर. आज भी तय था कि रात अख़बार वाली गाड़ी में गुजरनी है. पूरी रात सुनसान सड़क पर बाघ के डर के साये में गुजरी.

सुबह हुई और हम टनकपुर की तरफ बढ़ चले. मेरे साथ गाड़ी में कुछ नौजवान लड़के थे जो अग्निवीर की फिजिकल परीक्षा पास कर मेडिकल टेस्ट देने के लिए बरेली जा रहे थे. उनका शाम तक बरेली पहुँचना बेहद जरूरी था. बस्तिया से 10-12 किलोमीटर पहले सड़क दो जगह लगभग 10 फीट मलबे से पटी हुई थी और यह मलबा सूखा न होकर पानी के साथ मिलकर गारा बन चुका था. दो जगह से मलबा हटाने में जेसीबी को पूरा दिन लगना था. गाड़ी में बैठी सवारियों, अग्निवीर छात्रों और मैंने बात की और सोचा पूरा दिन मलबा हटने का इंतजार करने से बेहतर है पैदल ही टनकपुर की तरफ निकला जाए. पैदल जाने का निर्णय तो ले लिया लेकिन बाघ के बारे में सोचकर अब भी रूह काँप रही थी. जूते हाथ में लेकर, मलबे में घुटने तक धँसते हुए सड़क के दूसरे छोर पर पहुँचे. पूरे रास्ते बाघ के डर से चौकन्ने रहकर आगे बढ़ते रहे. 10 किलोमीटर पैदल चलकर बस्तिया के पास पहुँचे ही थे कि फिर जोरदार बारिश शुरू हो गई. छतरी का सहारा था सो भीगने से बच गए. कुछ लोग बिना छतरी के थे वो भीगते हुए ही आगे बढ़ते रहे. लक्ष्य यह था कि एक बार जंगल के रास्ते से निकलकर इंसानी बसासत तक पहुँच जाएँ तो डर कम हो. बस्तिया पहुँचकर राहत की साँस मिली. बारिश अब भी तेज हो रही थी. टनकपुर अभी भी 10 किलोमीटर था. ऑल वैदर रोड समाप्त हुई.
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पहाड़ी रास्ता ख़त्म हुआ. भाबर की सीमा शुरू हुई. मोबाइल में नेटवर्क आया और मैसेज की बाढ़ सी आ गई. पता चला कि पिछले दो दिन में मुझे सैकड़ों कॉल और मैसेज किये जा चुके हैं. मेरे सुरक्षित होने की खबर ने तमाम लोगों को राहत पहुँचाई. 20 किलोमीटर का पैदल सफर तय कर दोपहर तक मैं टनकपुर बस स्टेशन पहुँचा और वहाँ से बस पकड़कर नानकमत्ता की तरफ बढ़ चला. बस में बैठा मैं ऑल वैदर रोड और उसको लेकर किये गए बड़े-बड़े दावों के बारे में सोचकर हक़ीक़त के साथ उनका मिलान करने कोशिश कर रहा था.

यात्रा की कुछ तस्वीरें पाठकों की नजरः
(All Weather Road Tanakpur Pithoragarh)

कमलेश जोशी

नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.

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