किसने सोचा था कि एक दिन उत्तराखंड की ऐसी गत होगी. कम से कम अलग राज्य के लिये अपनी जान की कुर्बानी देने से भी न डरने वाले राज्य आन्दोलनकारियों ने तो कभी नहीं सोचा होगा कि जिस अलग राज्य के लिये वह अपनी जान देने से नहीं डर रहे उसके पुरुष एक दिन शराब पीने के मामले में अव्वल आने का ख़िताब हासिल करेंगे.
(Alcohol Uttarakhand National Family Health Survey)
उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के समय शराब बंदी का आन्दोलन भी समानांतर चला था. उस दौर में पहाड़ों में शराब की नई दुकान खोलना टेढ़ी खीर हुआ करता था. किसी भी जगह शराब की नई दुकान खोलने पर सबसे पहले स्थानीय महिलाओं का विरोध झेलना पड़ता. ऐसे कई मौके थे जब शराब की दुकान पर ताला जड़ना पड़ता. शराब के ठेके उजाड़ने को घरों से महिलाओं के जत्थे के जत्थे निकलना तब एक आम बात थी. पहाड़ की महिलाओं ने अपने घर शराब से उजड़ते देखे थे इसलिये जरूरत पड़ने वह कभी शराब की दुकानों को आग के हवाले करने से भी पीछे नहीं हटी. शराब कारोबारियों के बीच महिलाओं के विरोध का खौफ़ था. अब तो उत्तराखंड की सरकारें सीना ठोककर कहती हैं कि शराब बेचकर ही उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था चलती है.
(Alcohol Uttarakhand National Family Health Survey)
आकड़ों पर नजर डालें तो 2001-02 में उत्तराखंड की राजस्व आय में सरकार ने शराब बेचकर 222.38 करोड़ रूपये कमाने का लक्ष्य रखा. साल 2022-23 में उत्तराखंड सरकार ने शराब बेचकर 3600 करोड़ रुपये कमाने का लक्ष्य रखा है. वह कौन है जिसने उत्तराखंड राज्य में शराब को मुख्य आय बनाने का काम किया. जब उत्तराखंड राज्य बनाते समय शराब बंदी मुख्य मुद्दा था फिर किसके कहने शराब का कारोबार 222 करोड़ से 3600 करोड़ हो गया. जिस राज्य में कभी शराब की दुकान खोलना टेढ़ी खीर थी उस राज्य में आज कैसे हर ब्लॉक और कस्बे में शराब की दुकानें खुली हैं.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में पूरे उत्तर भारत में उत्तराखंड के पुरुष शराब पीने में अव्वल हैं. रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 32.1 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते हैं. रिपोर्ट आने के बाद से तरह-तरह की बातें की जा रही हैं, तरह-तरह की बहस की जा रही है पर इन बहस और बातों में मूल सवाल ढका जा रहा है. सवाल है- उत्तराखंड राज्य में शराब को बढ़ावा देने में सरकार की क्या भूमिका है?
(Alcohol Uttarakhand National Family Health Survey)
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