देवस्थानम बोर्ड को लेकर पुरोहित समाज पहले दिन से विरोध कर रहा है. चारधाम तीर्थ पुरोहित समाज व हक-हकूकधारियों द्वारा कहा जा रहा है कि सरकार देवस्थानम बोर्ड जबर्दस्ती उन पर थोप रही है. बीते मंगलवार से केदारनाथ मंदिर के प्रांगण में देवस्थानम बोर्ड के खिलाफ़ एक अनोखा विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है.
(Aachary Santosh Trivedi Devasthanam Board)
केदारनाथ के तीर्थ पुरोहित संतोष त्रिवेदी मंदिर प्रांगण में शीर्षासन कर अपना विरोध जता रहे हैं. बीते मंगलवार से आचार्य संतोष त्रिवेदी हर 20 से 25 मिनट केदारनाथ प्रांगण पर शीर्षासन कर विरोध दर्ज करा रहे हैं.
इस विरोध का आज चौथा दिन था. लगातार बारिश के कारण आज केदारनाथ का तापमान -2 डिग्री था. बारिश के बीच शीर्षासन कर रहे आचार्य संतोष त्रिवेदी का वीडियो सोशियल मीडिया पर वायरल हो गया. वीडियो में बारिश के बीच आचार्य को शीर्षासन करते देखा जा सकता है.
(Aachary Santosh Trivedi Devasthanam Board)
Acharya Santosh Trivedi protests outside Kedarnath Shrine in 'Shirshasana' against formation of Uttarkhand Char Dham Devasthanam Management Board, saying, "I will protest like this for 7 days. If the State govt didn't dissolve this board, there will be a major protest." pic.twitter.com/pzxqmFWSHt
— ANI (@ANI) June 16, 2021
पिछले वर्ष भी आचार्य संतोष त्रिवेदी ने केदारनाथ में एक माह से अधिक समय तक सुबह, दोपहर और शाम को अर्धनग्न होकर देवस्थानम बोर्ड का विरोध किया था. इस वर्ष वह सात दिन तक शीर्षासन कर अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं. आचार्य संतोष त्रिवेदी की तस्वीरें लोगों द्वारा शेयर कर सरकार से मांग की जा रही है कि देवस्थानम बोर्ड की व्यस्था को भंग किया जाय.
(Aachary Santosh Trivedi Devasthanam Board)
देवस्थानम बोर्ड विवाद पर पूरी रिपोर्ट यहां पढ़िये:
देवस्थानम बोर्ड का जिन्न फिर बोतल से बाहर
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1 Comments
Krishna s chauhan
दैवस्थानम बोर्ड के विरोध स्वरूप पुरोहित जी का शीर्षासन वास्तव में पूरे पंडा समाज और हकहकूक धारियों के दर्शन का यथार्थ है। योग्यता नहीं अपितु मात्र जन्म पर आधारित धार्मिक लूटपाट के स्वार्थी दृष्टिकोण युक्त समुदाय से कभी भी किसी पारमार्थिक , सर्वजनहिताय , सुधारवादी तथा नैतिक कदम में कुछ सीधा , उपयोगी और अच्छा दिखाई देने की कामना किसी पाप से कम नहीं। यकीन कीजिए हिंदुत्व ही नही दुनिया के हर धर्म में आस्थावान लोगों में उत्तरोत्तर कमी के लिए हर धर्म का पुरोहित वर्ग ही जिम्मेदार है जिनकी कथनी और करनी में कोई साम्य नहीं होता और भगवान उनके लिए मात्र एक व्यवसायिक वस्तु है जिसके नाम , निशान अथवा प्रतीम को हर एक उपासना स्थल में केवल तिज़ारत के लिए उपयोग में लाया जाता है।