भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार किए गए 5 मानवाधिकार कार्यकर्ताओ को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि डिसेन्ट या असहमति होना लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है. अगर आप इसे प्रेशर कूकर की तरह दाबाएंगें तो ये फट जाएगा.जानीमानी वकील सुधा भारद्वाज, वरिष्ठ पत्रकार गौतम नवलखा, तेलुगु कवि वरवरा राव, लेक्चरर वेरनॉन गोंजाल्विस और वकील एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फरेरा को पुलिस ने मंगलवार को अरेस्ट किया था.
पीठ ने कहा, ‘असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है और अगर आप इन सेफ्टी वॉल्व की इजाजत नहीं देंगे तो यह फट जाएगा.’ राज्य सरकार की दलीलों पर कड़ा संज्ञान लेते हुए पीठ ने कहा, ‘यह (गिरफ्तारी) वृहद मुद्दा है. उनकी (याचिकाकर्ताओं की) समस्या असहमति को दबाना है.’ पीठ ने सवाल किया, ‘भीमा-कोरेगांव के नौ महीने बाद, आप गए और इन लोगों को गिरफ्तार कर लिया.’
सुप्रीम कोर्ट ने तेलुगु कवि वरवर राव सहित पांच लोगों की गिरफ्तारी पर सवाल उठाए. महाराष्ट्र सरकार और पुलिस को नोटिस दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तार सभी पांचों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल नहीं भेजने का निर्देश देते हुए छह सितंबर तक घर में ही पुलिस की निगरानी में नजरबंद रखने का आदेश दिया है.सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक, माजा दारूवाला, देवकी जैन और सतीश देशपांडे की याचिका पर दिया.इस याचिका पर उनकी ओर से दलीलें अभिषेक मनु सिंघवी ने रखीं. याचिका में इन पांच लोगों के खिलाफ आरोपों की निष्पक्ष जांच की मांग भी की गई. सिंघवी ने कहा कि इन लोगों को भीमा कोरेगांव हिंसा के संबंध में अरेस्ट किया गया। उन्होंने कहा कि एफआईआर में इनका नाम नहीं है.
अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गिरफ्तारी पर रोक की मांग का विरोध करते हुए कहा, ‘उन्हें अच्छा नागरिक तो होना ही चाहिए.ये गिरफ्तारियां बिना सोचे-समझे नहीं की गईं.
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