सत्तापक्ष व विपक्ष में याराना नज़र आने लगे तो राजनीतिक सरगर्मियों का बढ़ना स्वभाविक है. ऐसा ही कुछ हो रहा है प्रदेश की दो धुरविरोधी पार्टीयों कांग्रेस और भाजपा के बीच. बीजेपी की सरकार बनने से अभी तक लगभग 18 महीने होने को हैं लेकिन जनहितों के मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में गहरी दोस्ती नजर आ रही है.
प्रदेश कानून व्यवस्था पर बड़े सवाल उठ रहे है. आये दिन प्रदेशभर में दुष्कर्म की घटनाओं में इज़ाफ़ा हो रहा है. साथ ही तमाम कोशिशों के बाद भी नशे के खिलाफ अभी तक स्थायी रूप से कोई प्रभावी क़दम नहीं उठाया जा सका है, लेकिन सत्ता पर क़ाबिज़ बीजेपी के साथ कांग्रेस भी चुप है.
यह कोई पहला मसला नहीं है जब कांग्रेस-बीजेपी की ‘दोस्ती’ नज़र आ रही हो, पूर्व में सैनिकों या उनके आश्रितों को नियुक्ति देने के लिए बनाई गई संस्था उपनल से विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद्र अग्रवाल के पुत्र पीयुष को नियम विरूद्व नौकरी दे दी गयी थी. मसला तब और गरमा गया जब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने इस नियुक्ति को सही करार दिया. पूरे मामलें में उन्होंने यहां तक कहा कि इस प्रकार के विरोध से राजनीतिक लोगों के परिजनों को नौकरी ही नहीं मिल पाएगी. बाद में सोशल मीडिया में आलोचनाओं के बाद इस नियुक्ति को रद्द कर दिया गया था.
विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद्र अग्रवाल के पुत्र पीयुष अग्रवाल को जल संस्थान में सहायक अंभियता पद पर नियुक्ति दिए जाने के मामले में बेरोजगार युवाओं ने बेहद नाराज़गी जताई थी. गौरतलब हैं कि उपनल के ज़रिए सिर्फ पूर्व सैनिक और उनकें परिजनों को नियुक्त किए जाने को शासनादेश जारी हैं. पूर्व मे होइकोर्ट भी शासनादेश के अनुसार नियुक्ति का आदेश जारी कर चुका है. यह आदेश कोर्ट ने 21 जुलाई 2015 में दे रखा है. हाईकोर्ट के आदेशों के बाद भी विधानसभा अध्यक्ष के पुत्र को नौकरी दिए जाने के बाद सत्ता पक्ष की कार्यप्रणाली पर गम्भीर सवाल खडे किए.
हैरानी तब होती है जब इस पुरे मसले पर विपक्ष भी सहयोगी की भूमिका में दिखा. विपक्ष के किसी प्रमुख नेता ने अवैध नियुक्ति के पूरे मसले पर बेरोजगारों का पक्ष नहीं लिया. अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब देहरादून में बेरोजगार युवाओं पर सरकार ने लाठियां भांजी थी. बीजेपी के सत्ता में आने बाद युवाओं को वन रक्षक की भर्ती हो या फिर अन्य पूर्व घोषित परीक्षा कार्यक्रम के आयोजन के लिए तारीख़ दर तारीख़ इंतजार करना पड़ रहा है .
इससे पूर्व सरकार में भी अपनों को सिड़कुल में नौकरी देने का खेल हुआ था. सत्ता का चरित्र ही ऐसा है कि कुछ दिन हो हल्ला मचने के बाद मसला शांत हो जाता है. प्रदेश का बेरोजगार युवक दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर रहता है. सत्तापक्ष का करीबी नियुक्ति पा जाता है. यह पहला मौका नहीं है जब इस तरह के आरोप लगे हों इससे पूर्व भी विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के कार्यकाल में बेटी व दामाद को सचिवालय में नियुक्ति देने के आरोप लगे थे. इस पूरे मसले पर अभी मामला कोर्ट के समक्ष है. इसलिए इस तरह की नियुक्तियों से प्रदेश का मेहनती व संघर्षशील युवा हताश है. लेकिन बेरोजगार युवाओं की आवाज़ ना कांग्रेस बन सकी है न ही बीजेपी.
आइएसबीटी के मसले पर जहां पूर्व में दोनों पार्टियों में तलवारें निकल गयी थी, वह मसला भी अब ठंडे बस्तें में डाल दिया गया है. बढ़ते यातायात के दबाव के बाद जनता के लिए आइएसबीटी का तीव्र निर्माण बेहद जरूरी था, लेकिन सत्तापक्ष व विपक्ष की एकाएक खामोशी के बाद पूरा मामला प्रकिया से ही गायब हो गया है. सरकारी खानापूर्ति के सिवाय कुछ नहीं हो सका है. प्रदेश सरकार व विपक्ष की इस ‘दोस्ती’ पर चर्चाओं का बाज़ार तब और गरम हुआ था जब प्रदेश सरकार की आबकारी नीति की प्रदेश में ज़ोर-शोर से आलोचना हो रही थी, तब विपक्ष पूरे मसले पर शांत रहा. ग़ौरतलब है कि बीजेपी सरकार ने शराब की बिक्री बढ़ाने के लिए स्टेट हाइवे को जिला हाईवे में बदल करसुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बना दिया था. लेकिन विपक्ष और सत्ता पक्ष की मिलीभगत से इस पुरे मुद्दे को सिरे से ही गायब कर दिया गया.
सिलसिला यहीं आकर नही रुकता है. सत्ता पर क़ाबिज़ होने के साथ ही प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने प्रदेश में पटवारियों की भारी कमी का समर्थन करते हुए जल्द ही एक हज़ार पटवारियों की नियुक्ति का वादा किया था. लेकिन बेरोजगार युवाओं को आज भी महीनों बाद कोई ठोस आश्वासन नहीं मिल सका है. लेकिन इस दौरान विपक्ष सरकार की प्रदेश में बढ़ती बेरोजगारी के मसले पर घेराबंदी नहीं कर सका. कांग्रेस की कार्यप्रणाली विपक्षी पार्टी के तौर पर बेहद कमज़ोर नज़र आ रही है, जिसका ख़ामियाज़ा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है.
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