गढ़वाली और हिन्दी के कालजीवी कहानीकार स्वर्गीय भगवती प्रसाद जोशी ‘हिमवन्तवासी’ का जन्म 17 अगस्त, सन् 1927 में जोश्याणा, पैडुलस्यूं, पौड़ी (गढ़वाल) में हुआ. ‘हिमवन्तवासी’ सरकारी अधिकारी रहे और जीवन भर स्वतंत्र लेखन करते रहे. बचपन में लिखी कहानी ‘कुणाल’ को शाबासी मिली तो युवा अवस्था में ‘धना’ कहानी को सन् 1945 में ‘मुंशी प्रेमचन्द कहानी सम्मान’ मिला. उसके बाद प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं यथा- सरस्वती, धर्मयुग, कादम्बिनी, माधुरी, मनोहर कहानियां, हमारी बात, स्त्री-भूषण, सेवाग्राम और हंस नेशनल हेरल्ड, हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स में कविता, कहानी और लेख प्रकाशित होने का लम्बा सिलसिला चला.
(Bhagwati Prasad Joshi Garhwali Writer)
भगवती प्रसाद जोशी ‘हिमवन्तवासी’ की गढ़वाली भाषा में कहानी-संग्रह एक ढांगा की आत्मकथा (वर्ष-1988) और खण्ड-काव्य सीता बणवास (वर्ष-2002) चर्चित रचनायें हैं. हिमवन्तवासी जी की लिखी हेड मास्टर हिरदैराम और एक ढांगा की आत्मकथा गढ़वाली भाषा की अनमोल और सर्वोत्तम कहानियों में शामिल है. यदि आपने अभी तक ये कहानियां नहीं पढ़ी हैं तो मेरी सलाह पर पढ़ने के बाद आप मुझे धन्यवाद अवश्य देंगे.
कहानी संग्रह ‘एक ढांगा की आत्मकथा’ में सात कहानियां हैं. हेड मास्टर हिरदैराम, भूत कू चुफ्फा हाथ, कुकुट्टध्वज, एक ढांगा की आत्मकथा, तीन त्रिगट, शिब्बा बोडी अर गूंगा, नौन्याल और हाय रे मनिआर्डर. चालीस से साठ के दशक के गढ़वाली जन-जीवन की रोचक अभिव्यक्त्ति इन कहानियों में हुई है. ये कहानियां गढ़वाल गद्य साहित्य की समृद्धता और संवेदनशीलता को बताती हैं.
गढ़वाली मुहावरों, कहावतों और किस्से-कहानियों का दिलचस्प प्रवाह इन कहानियों में है. साथ ही पहाड़ी जीवन की विकटता और विडम्बना को इन कहानियों के माध्यम से आज पचास साल बाद भी महसूस किया जा सकता है. पहाड़ के कुछ दृश्य बदलें होगें पर सामान्य परिदृश्य आज भी इन कहानियों में वर्णित जैसा ही है.
(Bhagwati Prasad Joshi Garhwali Writer)
‘हेडमास्टर हिरदैराम’ का यह कथन- कु द्यखुद साब ए जमाना मा योग्यता? अब त सरकमणि ही सरकला ऐंच अर हीरामणि डले जाला के अंधेरा कूंणा!, आज उत्तराखंड में और प्रभावी तौर पर जन आचरण में विद्यमान है.
इसी तरह एक ढांगा की आत्मकथा कहानी में उत्तराखंड की आज की राजनीति हू ब हू कुलांचे मारती दिखती है. अरे बल बारा बरस दिल्ली रया, पर भाड़ ही झोंके! ब्वा रे हमरा नन्दी अर ब्वा रे तेरी बल्द-बुद्धि! क्य करे तिन अर क्य करे तेरा पशुपतिनाथ ना हमरी खातिर? अरे डौर बजावा डौर…
आज ‘हिमवन्तवासी’ भगवती प्रसाद जोशी जी की पुण्य-तिथि पर नमन उनको.
– डॉ. अरुण कुकसाल
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
वरिष्ठ पत्रकार व संस्कृतिकर्मी अरुण कुकसाल का यह लेख उनकी अनुमति से उनकी फेसबुक वॉल से लिया गया है.
लेखक के कुछ अन्य लेख भी पढ़ें :
प्यारी दीदी एलिजाबेथ व्हीलर को भावभीनी श्रद्धांजलि
बाराती बनने के लिये पहाड़ी बच्चों के संघर्ष का किस्सा
पहाड़ी बारात में एक धार से दूसरे धार बाजों से बातें होती हैं
मडुवे की गुड़ाई के बीच वो गीत जिसने सबको रुला दिया
उत्तराखण्ड में सामाजिक चेतना के अग्रदूत ‘बिहारी लालजी’ को श्रद्धांजलि
जाति की जड़ता जाये तो उसके जाने का जश्न मनायें
दास्तान-ए-हिमालय: हिमालय को जानने-समझने की कोशिश
उत्तराखंड के इतिहास में 6 सितम्बर का महत्व
तीन पहाड़ी युवाओं का ‘बेरोजगारी ढाबा’ से ‘अपनी रसोई’ तक का सफ़र
गढ़वाल के सामाजिक विकास के इतिहास में पूर्णानन्द नौटियाल का योगदान
डूबता शहर: टिहरी बांध बनने में शिल्पकार समाज के संघर्षों का रेखांकन करने वाला उपन्यास
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें