शर्मा जी दिल से भगवान को याद कर रहे थे. दिल से मतलब सीधे दिल से. और अचानक भगवान प्रगट हो गये. पूछा, “बोलिये शर्मा जी क्या चाहते हो?”
(Priy Abhishek Satire Veerbhogya Vsundhra)
शर्मा जी ने कहा, “क्षमा कीजियेगा प्रभु, मुझे आशा नहीं थी कि मेरी प्रार्थना पर कोई प्रगट हो जाएगा. क्योंकि मैं तो रोज़ ऑफिस से घर पहुंचने के बाद पत्नी को देखते ही भगवान को याद करता हूँ. भगवान से ये मेरा पहला साक्षात्कार है. यदि बुरा न माने तो कृपया बताएँ कि आप कौन हैं? क्या आप प्रभु विष्णु है?”
“नहीं, मैं इंद्र हूँ.”
“पता था, मुझे पता था!” शर्मा जी एकदम भड़कते हुए बोले, “छोटा आदमी गॉड को याद करे तो गॉड भी डेमी गॉड को भेज देते हैं. कोई सुनवाई नहीं है हमारी. यज्ञ के भाग से लेकर कर्ण के कवच तक बस लिया ही तो है आपने. और आप भी क्यों आए, अपनी जगह पवनदेव को भेज देते!”
“बकवास मत करो! जितनी तुम ‘छोड़ते’ हो उस हिसाब से तो पवनदेव को ही भेजना चाहिये था मुझे.”
“क्यों, क्या छोड़ी मैंने?” शर्मा जी ने पूछा.
“यही कि ऑफिस से घर जाकर तुम भगवान को याद करते हो. अरे तुम्हारे जैसे पुरुष जब घर पहुँचते है तो, वे नहीं, उनके घर वाले भगवान को याद करते हैं. ये ड्रामा हम भी स्वर्ग में खूब करते हैं- काम के तनाव का. पर दिल में पुरुष जानता है कि ऐसी गऊ टाइप पत्नी हमें दूसरी न मिलेगी, जो भाग-भाग कर चाय बनाए, पानी पिलाए, सिर दबाए. और जो तुम अपने इस तथाकथित तनाव के नाम पर तरल का सेवन कर लेते हो, यदि किसी दिन पत्नी ने चार पैग अपने तनाव के लगा लिए तो महीने भर से पहले दर्द न जायेगा तुम्हारे ‘पृष्ठ तनाव’ का. कहो तो पत्नी को दिव्यदर्शन करा दूँ कि ऑफिस में तुम कितना ‘काम’ करते हो? अब जल्दी कहो जो कहना है! अन्यथा मैं प्रस्थान करूँ.”
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“अरे आप तो नाराज़ हो गये प्रभु. क्षमा करें. मेरा बस इतना निवेदन था कि हर तीज-त्यौहार में हम छोटे कर्मचारियों को फाह्यान- व्हेनसांग जैसा लगता है. बड़े-बड़े अधिकारियों के बंगले पर कभी उत्तरापथ, कभी दक्षिणापथ और कभी बॉस के रेशम मार्ग की परिक्रमाएँ लगानी पड़ती हैं. छोटे-मोटे नारद मुनी टाइप के हो जाते हैं. अब तो हमने पूरा रूट चार्ट बना लिया है. देखिये!”
शर्मा जी ने अपनी जेब से कागज़ का पुर्जा निकाल कर दिखाया. उनकी आँखों नम हो गई थीं और आवाज़ भारी. उन्होंने बात जारी रखी, “आप तो जानते हैं प्रभु शहरों में कितनी दूरियाँ होती है. इस होली हमें इतने लोगों से मिलने जाना था कि एक साहब के बंगले पर तो हमने गेट से ही उनको अपना चेहरा दिखा कर बोला ‘कैच!’.. साहब ने स्लिप पर डाइव मारते हुए मिठाई का डिब्बा पकड़ा, और हम निकल लिए. प्रभु हम बस इतना जानना चाहते हैं कि वो समय कब आयेगा जब त्योहारों पर हमारा अपना व्यक्तिगत दरबार-ए-आम सजेगा? कब हम टेबल-कुर्सी पर पाँव पसार कर अपने दालान में बैठेंगे और लोग आ-आ कर लगान चुकाने की तर्ज पर मिठाई के डिब्बे रखेंगे, हमारे पैर छुऐंगे. अब हम थक गए हैं प्रभु…. प्रभु?… प्रभु?”
शर्मा जी ने देखा कि इन्द्र की आँखों मे आँसू थे. वे शून्य की ओर देख रहे थे. शर्मा जी ने उनको सहारा दिया. पूछा कि कुछ लेंगे क्या, सिगरेट-विगरेट? इन्द्र ने मना कर दिया. फिर शर्मा जी से पूछा, “आस-पास कोई अच्छा बार है क्या, जहाँ फुर्सत से बैठ सकें?”
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शर्मा जी उन्हें लेकर चाँदनी बार आ गए. अब बात इंद्र देव ने शुरू की, “शर्मा जी आपकी उम्र तो बहुत कम है. हम न जाने कितने कल्पों से पीड़ित हैं. हर त्यौहार की यही कहानी है. पहले तीनों देव निबटाओ. फिर देवियों के चक्कर लगाओ. फिर कुछ ऐसे लोग जिनसे कभी-कभी काम अटक जाता है, भगवान चित्रगुप्त जैसे. और शिव जी के यहाँ की तो कहानी ही अलग है. नन्दी को अलग मिठाई का डिब्बा दो, नहीं तो वो रूठ जाते हैं. कार्तिकेय भगवान से मिलने दक्षिण भागो. और कहीं गणेश जी को सबसे पहले न मिले तो खुद को अनिष्ट का डर. फिर वासु, रुद्र, आदित्य और उन्नचास मरुत अलग, उनसे न मिलो तो वो नाराज़.”.. इतना कह इंद्र- बहूहू, सुबुक, सुबुक- कर कॉमिक्सों के अंदाज़ में रोने लगे.
शर्मा जी ने कहा, “प्रभु हम और आप दोनों ही एक ही समस्या से पीड़ित हैं. अब इस समस्या के उपाय के लिये कहाँ जाएँ?”
इंद्र ने विचार कर कहा, “इस भूलोक पर ग्वालियर नामक नगर में एक ऐसा व्यक्ति है जो इस समस्या का समाधान बता सकता है.”
शर्मा जी ने आश्चर्य से पूछा, “कौन?”
जवाब आया, “भोगीलाल.”
तो दोनों लोग भोगीलाल के घर पहुंच गए. घर पर भोगीलाल से होली मिलने उनके अधिकारी और नेतागण आए हुए थे. उनके जाते ही शर्मा जी ने अपनी और इंद्र भगवान की समस्या सुना दी. भोगी भाई समस्या सुनकर मुस्कुराए. फिर कुछ देर ख्यालों में खो गए. ख्यालों से वापस आकर बोले, “मार्ग कठिन है. ये मार्ग मर्ग़ की ओर भी ले जा सकता है. परन्तु वीर भोग्या वसुंधरा. पहले मैं भी आप की ही तरह परेशान था. फिर मैंने कुछ निर्णय लिया. और,” उनकी आँखों से स्फुलिंग निकल रहे थे, “बोलो! आप लोग तैयार हो?”
इंद्र भगवान और शर्मा जी ने एक दूसरे की ओर देखा और बोले, “हाँ, हम तैयार हैं!”
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फिर भोगीलाल जी ने उन्हें कुछ बताया. इसके बाद दोनों उन्हें प्रणाम कर चले गए. कुछ समय बाद स्वर्ग टाइम्स में जो खबरें आईं वो कुछ इस तरह थीं- इंद्र भगवान ने सूचना के अधिकार के तहत माँगी जानकारी! स्वर्ग में हड़कंप! ताजा ख़बरों के मुताबिक़ इंद्र भगवान ने निम्न जानकारी ‘आरटीआई’ में मांगी हैं-
1- भगवान कार्तिकेय की विश्व परिक्रमा में कुल कितना व्यय हुआ औऱ उसका भुगतान किस शीर्ष से किया गया?
2- कामदेव को भस्म करने के मामले में एफआईआर और केसडायरी की सत्यप्रतिलिपि.
3- विष्णुभगवान के पास वाहन होते हुए लक्ष्मी जी को अलग से वाहन किन नियमों के तहत अलॉट किया गया? उसकी जानकारी. नियमों की कॉपी सहित.
इधर शर्मा जी ने भी अपने ऑफिस में सूचना के अधिकार में जानकारी माँगी-
1-बॉस के वर्ल्डटूर पर कुल कितना व्यय हुआ. यह व्यय किसके द्वारा किया गया.
2-बॉस के विरुद्ध क्या कोई एफआईआर दर्ज है. किन धाराओं में? प्राथिमिकी की सत्य प्रतिलिपि.
3-बॉस को कितने वाहन प्रयोग करने की पात्रता है. वाहन क्रमांक- पीपी शून्य शून्य पीके चारसौबीस मूलतः किस व्यक्ति को आवंटित है.
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उसके बाद कुछ दिनों तक शर्मा जी ने अपने बंगले (फ्लैट) के दालान (गली) में कुर्सी डाल कर इंतज़ार किया कि अब बॉस मिलने घर आएंगे. और एक दिन फ्लैट की घँटी बजी.
दरवाजे पर ऑफिस का चपरासी चैनू था. चैनू ने शर्मा जी को एक पत्र दिया जिसमें लिखा था- आप के कार्यों से प्रसन्न होकर आपको तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है.
इधर खबर थी कि महादेव ने फिर किसी राक्षस को वरदान दे दिया है जिसने इंद्र को भगा कर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया है. और इंद्र माँ पार्वती के चरणों मे डले हैं कि महादेव का अपॉइंटमेंट दिलवा दो माँ! गलती हो गई.
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मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.
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