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3 Comments

  1. Anshul Kumar Dobhal

    यह सर्वथा गलत है कि उत्तराखंड के शूद्र या शिल्पकार जतियाँ यहाँ की मूल निवासी हैं। बल्कि हकीकत यह है कि यहाँ की शिल्पकार जतियाँ भी यहाँ के वर्तमान निवासियों के साथ समय समय पर यहाँ बाहर से ही आयी हैं। यहाँ के मूल निवासी ‘भिल्ल, किरात, खश, कुणिंद, कुषाण, तंगण, परतंगण’ आदि जतियाँ हैं जिनका जिक्र महाभारत आदि ग्रंथों में हैं। इनमें से कुछ जतियाँ मिश्रित हो गयी हैं जैसे खश, जिसे आज भी खस्या कहते हैं। कुछ को हमने उनके मुर्दा दफनाने की पद्धति के कारण मुसलमान घोषित कर डाला, जैसे ‘चुड़ेर’। और जो लोग ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में रहते हैं, जो आज भी पशुपालक हैं, इन्हें हम पर्वतीय भी कहते हैं, ये भी मूल निवासी हैं। जिनके नैन-नक्श, चेहरे-मोहरे, रीति-रिवाज, तीज-त्योहार, बोली-भाषा, देवी-देवता हमसे सर्वथा भिन्न हैं। जिनका सोमेश्वर देवता प्राचीन वैदिक सोम देवता है, जिसकी ये पूजा करते हैं, यह शिव नहीं है, क्योंकि इसके मंदिर में शिवलिंग न होकर देवता की मूर्ति होती है, जो शिवालयों में नहीं होती।

  2. Dsnegi

    Yeh bekar ki baaton ka prachaar kyun kiya jaa raha hai…agar sabhi jaatiyan bahar ki hai…to kumaoni gadwali bhasha kahan SE aayi…jabki ek bhasha sadiyon ke baad banti hai…yeh anushthaan Jo auron SE alag hai kahan se aaye….

  3. Mukesh Bora

    Kol sabse pracheen prajati hai

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