कत्यूरी कुमाऊँ का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश था. कुमाऊँ के इतिहास पर लेखनी चलाते समय कत्यूरियों के पुराने अवशेषों को देखना आवश्यक है, यही सोच हमने मई के अंतिम सप्ताह में कत्यूर पट्टी की यात्रा की.
(Dharamyug 1950 Article by Rahul Sankrityayan)
पहाड़ में मोटरों की यात्रा सभी को नहीं सहती. हमारे साथी थे प्रभाकर माचवे. समान धर्मा आदमी के साथ यात्रा करने में कितना आनंद आता है, यह कहने की आवश्यकता नहीं. किन्तु शरीर से स्वस्थ और बलिष्ठ होते हुए भी माचवे पहाड़ी मोटर के लिए मजबूत गोइयां नहीं साबित हुए. नैनीताल से चलने पर प्रथम वास हमारा भवाली सैनिटोरियम में डॉक्टर धर्मानंद केसरवानी के यहाँ रहा. ह्रदय और मस्तिष्क के ऐसे शल्य चिकित्सक भारत में दुर्लभ हैं, और केसरवानी जी सिद्धहस्त चिकित्सक ही नहीं हैं बल्कि संस्कृत साहित्य और दर्शन के भी विद्वान हैं, फिर संत समागम और हरिकथा कितनी सुन्दर रही होगी, इसे कहने की आवश्यकता नहीं.
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25 मई को प्रातः दस बजे जब हम भवाली में अल्मोड़े की मोटर पर बैठने लगे तो सामने दुकानों में सुन्दर रक्त पीत खुबानियां बिक रहीं थीं. ये खुबानियां असाधारण बड़ी और मधुर मीठी थीं. कई तरह की होतीं हैं छोटी, बड़ी, हरापन ली पीली, लाल पीली, खट्टी मीठी रसीली. खुबानियों से मेरा पुराना परिचय है. बस जब इनकी फसल हो तो कुछ ही दिन रूचि से खाया जा सकता है. वह आम नहीं है कि पेट भरे और जी न भरे. बस ताजी खुबानी खरीदीं खूब सारी. मैंने भी खायीं और माचवे जी ने भी.
अब हमारी बस पहाड़ की टेड़ी मेड़ी ऊँची नीची सड़क पर चढ़ती उतरती आगे चली. बस में हमारे से आगे बैठी सामने की सारी पंक्ति एक के बाद एक भूमि शायी होने लगी. वहां दोनों तरफ से खिड़कियों से मुंह निकल कर कै की होड़ लग रही थी. हमारी और माचवे जी की पंक्तियाँ आमने सामने थीं. मैं तो खैर पहाड़ी मोटर क्या बिगड़े समुद्र में जहाज की भी परवाह नहीं करता. हमारी सारी पंक्ति दृढ़ रही. माचवे जी की पंक्ति में प्रथम पुरुष पहले प्रभावित हुआ, यह चिंता का विषय था, किन्तु माचवे जी अभी दृढ़ रहे. जब उनकी बगल का आदमी भी पैरों पर खड़ा नहीं रह सका, तो माचवे जी के लिए भले रहना मुश्किल हो गया. तीन पुरुषों की सारी पंक्ति ने पराजय स्वीकार कर ली.
(Dharamyug 1950 Article by Rahul Sankrityayan)
खैर, कितनों का पेट खाली करवा, नाक और आँखों से पानी गिरवा बस रानी खैरना से ऊपर उठती, रानीखेत हो कटारमल के पास पंहुच रही थी. पहाड़ी ड्राइवरों का स्वभाव सा है कि मोटर चलाते समय ‘किश्ती खुदा पर छोड़ दो, लंगर को तोड़ दो ‘ के मंत्र पर आचरण किया जाए. हॉर्न देना वह बेकार समझते हैं, या देते भी हैं तो तब जब कि टक्कर को बचाया नहीं जा सकता. यह सनातन धर्म कूर्मांचल के ड्राइवरों का ही नहीं है, दार्जिलिंग वाले भी इसी पंथ के पथिक हैं.
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कटारमल कुछ दूर था. इसी समय हमारी बस इधर से सर्राटा भरती जा रही थी, उधर पहाड़ी मोड़ पर दूसरी ओर से दूसरी मोटर आ पहुंची. हमारी बस पहाड़ से बाहर की ओर थी. ड्राइवर ने बचाने की कोशिश की, अधिक कोशिश करने का अर्थ था सीधे पाताल लोक पहुंचना. लोगों के रोंगटे खड़े हो गए, किन्तु हमें बस की दाहिनी आँख (लम्प ) बलिदान करके प्राणदान मिल गया. थोड़ी सी तू-तू, मैं-मैं में ड्राइवर युगल ही नहीं, यमदष्ट्र योग से बाल-बाल बचे हुए यात्री भी शामिल हुए. मनुष्य का जीवन कितना चंचल, पद्मपत्र पर जल बिंदु जैसा है!
कुमाऊं की राजधानी रहा अल्मोड़ा नया नगर है.1560 से ही उसे कुमाऊं की राजधानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, किन्तु कत्यूरी काल (आठवीं से बारहवीं सदी तक ) में भी वहां खगमारा का पहाड़ी दुर्ग मौजूद था. अल्मोड़ा पहुँच कर बिना ढूंढन-व्रत पूरा किए कैसे छोड़ा जा सकता था! यशपाल जी भी यहीं थे. माचवे, वह और मैं तीन साहित्यकार हो गए. तरुण वकील श्री हरिश्चंद्र जोशी की तो इस यात्रा में बड़ी सहायता रही. वह कत्यूर बैजनाथ तक साथ गए.
श्री लक्ष्मी दत्त जोशी के, जिन्हें वकील होने पर भी लोगों ने सेठ बना रखा है, घर उसी शाम को पहुंचे. उन्होंने कुमाऊं के धर्म गीतों तथा हस्त लेखों के साथ कितनी ही कला वस्तुओं का अच्छा संग्रह कर रखा है. हमें चाय पान के साथ उनके संग्रह को देख कर अति संतोष पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.
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कटारमलका सूर्य मंदिर, कटारमल के मंदिर का शिलालेख, त्रिपुरा मंदिर के विष्णु सर्पाषद, बूटधारी सूर्यपति, नंदेश्वर नैन मंदिर के साथ कौसानी में कवि सुमित्रा नंदन पंत का जन्म गृह देखने की योजना बनी.
(Dharamyug 1950 Article by Rahul Sankrityayan)
सन्दर्भ : धर्मयुग. अक्टूबर 29,1950 में छपे राहुल सांकृतायन के आलेख व फोटो के आधार पर.
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जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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