बहुत लजीज,पौष्टिक और कम समय पर पकने वाली. केवल नमक और तेल के साथ ही गजब का स्वाद देने वाली. मसालों की दरकार नहीं. ऐसी होती है, मुस्कान की सब्जी. Muskaan Vegetable of Chaundas Nrip Singh Napalchyal
हमारे धारचूला क्षेत्र के चौंदास पट्टी के गांवों में मुस्कान की सब्जी बहुत लोकप्रिय हो रही है. ऑफ सीजन में दाल या आलू की सब्जी के साथ रोटी खाते-खाते लोग जब ऊब जाते हैं तो जल्दी से मुस्कान की सब्जी बना डालते हैं.
मुस्कान की सब्जी हमारे सीढीदार पहाडी खेतों के किनारे उग आई झाडियों के नीचे खुद-ब-खुद नाजुक लताओं मे छोट-छोटे कान-नुमा पत्तियों के रुप में उग आती हैं. इन लताओं की पहचान उनके सफेद तनों से होती हैं. इन पत्तियों को झाडियों के नीचे से एक-एक कर चुनना होता है. बस एक छाक सब्जी बनाने लायक इन पत्तों को चुनकर नल के बहते पानी में ठीक से धो लें. पत्तियों को काटने की जरूरत नहीं. कढाई मे थोड़ा सा तेल डाल कर पत्तियों को सौटे कर लें. स्वादानुसार नमक डालकर ढक्कन से ढक कर धीमी आंच मे पकने दें. बस दस मिनट बाद आपके लिए मुस्कान की हरी सूखी सब्जी तैयार जिसे आप चपाती या पराठे के साथ खा सकते हैं और अपने गांव के मेहमानों को खिला सकते हैं. Muskaan Vegetable of Chaundas Nrip Singh Napalchyal
आपके घर शहर से कोई मेहमान आ जाये और मुस्कान की सब्जी खाने में संकोच प्रकट करे तो आप उन्हें समझा दें कि वाकई में मुस्कान एक जंगली हरी सब्जी है जिसके पत्ते की शक्ल चूहे के कान की तरह होने के कारण गांव वाले उसे ‘मूष क कान’’ कहा करते थे. बाद में ‘मूष क कान’ का संक्षिप्तीकरण होने और विकृति-स्वरुप लोग उसे मुस्कान कहने लगे और इस सब्जी का यही नाम प्रचलित हो गया. Muskaan Vegetable of Chaundas Nrip Singh Napalchyal
तो, अगली बार चौंदास की यात्रा में कोई आपको मुस्कान की सब्जी खिलाए तो इस प्रसंग को याद कर उसे निःसंकोच खाइए. और फिर ‘चूहे के कान की सब्जी’ खाने से तो मुस्कान की सब्जी खाना ही बेहतर है. स्वाद के लिए भी और कहने-सुनने के लिए भी.
पुनश्च: इस लेख में मेरी सब्जी से ज्यादा लोकभाषा का किस तरह निर्माण व विकास होता है, जानने की ज्यादा दिलचस्पी रही है. मूष को कान से मुस्कान तक की भाषा की यह यात्रा नितान्त ही मजेदार होने के साथ शोध का भी विषय है. आखिर कब और किसने मुस्कान कहना शुरू किया होगा? किसी बच्चे ने, किसी मनचले ने या किसी हास्य प्रिय रसोईये ने?
–नृप सिंह नपलच्याल
लेखक का एक और आलेख काफल ट्री पर: धारचूला में पहले टेलीफोन की पचास साल पुरानी याद
पिथौरागढ़ जिले की धारचूला तहसील की व्यांस घाटी से ताल्लुक रखने वाले नृप सिंह नपलच्याल उत्तराखण्ड सरकार के मुख्य सचिव पद से रिटायर हो कर फिलहाल देहरादून में रहते हैं. रं समाज के उत्थान के लिए लम्बे समय से कार्यरत रं कल्याण संस्था के संरक्षक नृप सिंह नपलच्याल की सामाजिक प्रतिबद्धता असंदिग्ध रही है. वे 1976 बैच के आईएएस हैं और इन दिनों अपने संस्मरण लिखने में व्यस्त हैं.
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