आख़िर कब तक चड्डा साहब धैर्य रखते? कब तक? पंद्रह दिन बेचैनी में काटने के बाद, उन्होंने भी घोषणा कर दी कि वे भी राष्ट्र के नाम अपना संदेश देंगे. “कल बारह बजे लाइव आऊँगा और करोना से जुड़ी कुछ ज़रूरी बातें साझा करूँगा.” उन्होंने अपने प्रोफ़ाइल पर लिख दिया.
(Chadda Sahab satire by Priy Abhishek)
ठीक बारह बजे चड्डा साहब के लाइव आने का नोटिफिकेशन आ गया. नोटिफिकेशन तो और भी थे, पर चड्डा साहब से मित्रता पुरानी थी. सोशल मीडिया में सच्चा मित्र वही है जो ट्रोलिंग होने पर आपकी रक्षा के लिए किसी कॉलिज टाइम के दोस्त की तरह खड़ा हो, ऑन-लाइन ट्रोलर का गिरेबान पकड़ कर कहे -तू रुक पाँच मिनट, आपकी कविता-कहानी को लाइक करे, उस पर कमेंट करे, आपको टैग करे और जब आप लाइव आएँ तो एक भक्त की तरह श्रद्धापूर्वक आपकी कथा का श्रवण करे. तो हमने नोटिफिकेशन पर क्लिक किया और चड्ढा साहब सामने प्रकट हो गए. पर नहीं, चड्डा साहब नहीं प्रकट हुए.
यूँ लगा जैसे सामने से कोई गया हो, कोई साया. अब सामने एक दीवार थी. ऊपर एक चालीस वाट का जलता बल्ब. उसके नीचे एक छिपकली का परिवार. उसके नीचे प्लास्टर गिरने से बना अखंड भारत जैसा नक्शा. उसके नीचे एक रस्सी. रस्सी पर लदे ढेर सारे कपड़े. पैंट, बनियान, चड्डी, साड़ी, पेटिकोट, आदि-आदि. कपड़े अलग-अलग टांगे गये थे, पर अकर्मण्य रस्सी की ढिलाई की वजह से वे बीच में जा मिले थे ( जैसे लॉक डाउन में आनन्द विहार पर मजदूर जा मिले थे). वो रूमानी लाइट, वो ख़ूबसूरत गुलदान, वो शफ़्फ़ाक़ परदे, जो अक्सर उनकी प्रोफ़ाइल फोटो में दिखते थे, वे सब नदारद थे.
“ये चड्डा साहब का घर नहीं हो सकता,” मैने खुद से कहा. मुझे उम्मीद नहीं थी कि चड्डा साहब इतने जबरदस्त मिडिल-क्लास निकलेंगे. अब तो मिडिल-क्लास भी हुक पर कपड़े टांगने लगा है, वो भी दरवाजे के पीछे. फिर कुकर की सीटी की आवाज़ आई. कुछ बर्तन गिरने की आवाज़ें. फिर एक स्त्री की चीखती हुई आवाज़- “थोड़ा पढ़ाई कर ले सुअर!” फिर किसी के दौड़ने की धम-धम आवाज़. फिर उसी स्त्री की चीखती आवाज़- “अरे टुल्लू चला दो मोबाइल नरेस!” कुल मिला कर एक मिडिल क्लास घर से आने वाली समस्त मिडिल क्लास आवाज़ें वहाँ से आ रही थीं. तभी चड्डा साहब स्क्रीन पर नुमाया हुए. नेपथ्य से टुल्लू चलने की आवाज़ आती रही.
(Chadda Sahab satire by Priy Abhishek)
चड्डा साहब अपनी आधार कार्ड की फोटो में अधिक सुंदर दिखते थे. आज पता चला कि चड्डा साहब के पास एक नहीं, दो ‘चिन’ थीं. गालों पर कुछ छोटे ‘क्रेटर’ भी थे. उनके चेहरे का आयतन, उनकी प्रोफ़ाइल पिक वाले चेहरे के आयतन से अधिक था. उनके माथे पर पसीना था. वे आकर बैठे तभी नेपथ्य से फिर उसी स्त्री की आवाज़ गूँजी- “फिर चिपट गए मोबाइल में?” चड्डा साहब ने हम श्रोताओं से कहा- “अभी और लोग आ जाएँ, तो लाइव शुरू करते हैं.” यह बोल कर वे हमें फिर से छिपकली के परिवार के साथ छोड़ गए. अब नेपथ्य से चड्डा की हाँ तो? हाँ तो? तो? तो? की आवाज़ आने लगी. फिर उस स्त्री ने जो कहा वो यहाँ नहीं लिखा जा सकता. चड्डा साहब फिर स्क्रीन पर प्रकट हो गए. इस बार पसीना कुछ ज़्यादा और चेहरे पर घबराहट भी थी.
स्क्रीन के बाएं कोने में पाँच की संख्या लिखी आ रही थी. जिसका अर्थ था फेसबुक चौराहे पर खड़ी चड्डा साहब की टैम्पो में पांच सवारी बैठ चुकी हैं. चड्डा साहब टैम्पो को चालू रख कर और सवारियों का इंतज़ार करने लगे. “अभी और लोग आ जाएं तो लाइव शुरू करते हैं,” चड्डा साहब ने पुनः दोहराया.
“अरे बढ़ाओ यार!” उनमें से एक सवारी बोली.
“बढ़ाओ, नहीं तो दूसरी में जाकर बइठें!” एक अन्य सवारी ने कहा.
“हाँ, पाँच-छः लाइव और तैयार खड़े हैं. इत्ती देर हुई गई, थोबड़ा पेले पड़े हैं तबसे. अरे छिपकली दिखाने बुलाए थे क्या?” तीसरी सवारी ने दूसरी का समर्थन किया
“अरे बढ़ाओ भइया, आगे भी तो सवारी मिलेंगी, कि यहीं से भर के चलोगे?” चौथी ने भी हाँ-में-हाँ मिलाई.
“तुम तो अइसे कर रहे हो, जइसे लौउटते में टेम्पो खाली आएगा तो अभी भल्लेचलें.” तीसरी सवारी कुछ उद्दंड प्रकार की थी. मुझे हस्तक्षेप करना पड़ा.
“चड्डा साहब अगर आप कहें तो मैं लोगों के इनबॉक्स में जाकर आवाज़ लगा आऊँ?”
“अरे रहने दीजिये पिरिय!” चड्डा साहब ने कहा और फिर जेब से एक कागज़ निकाला. “साथ्थियों, आप सभी जानते हैं कि अखिल विश्व मे करोन्ना नामक बिम्मारी फैल्ली है.” एक आम भारतीय की तरह चड्डा साहब भी जैसा लिखते थे, उससे थोड़ा अलग बोलते थे. कुछ देर ठहर कर वे पुनः बोले, “वैस्से पिरीय, जो अपने ख़ास-ख़ास लोग हैं, केवल ख़ास-ख़ास, उनके इनबॉक्स में इत्तला कर दो आप.”
मैंने अपने कई मित्रों के इनबॉक्स में जाकर सन्देश दे आया कि चड्डा साहब लाइव है. कोरोना पर कुछ महत्वपूर्ण जानकारी साझा करेंगे. सब लोग पहुँचो! वापस लौट कर चड्डा साहब के प्रोफ़ाइल पर आया तो अभी-भी बाएं कोने में पाँच की संख्या बनी थी. अचानक ही वह घट कर चार हो गई. मैंने तुरंत चड्डा साहब से कहा,”अब जल्दी बढ़ाओ यार, सवारियां टूट रही हैं.”
(Chadda Sahab satire by Priy Abhishek)
“हाँ तो साथ्थियों, आज मैं आपको करोन्ना वायरस से जुड़ी कुछ महैत्वपूरन जानकारी बतात्ता हूँ…”
उसके बाद चड्डा साहब ने अपनी ‘महैत्वपूरन’ जानकारी में बताया कि कोरोना वायरस को कोविड-नाइन्टीन भी कहते हैं. ये चीन के वुहान शहर से फैला था. ये खाँसने, छींकने, थूकने से फैलता है. ऐसी अनेक जानकारियों के बाद उन्होंने जनता से हाथ निरन्तर साबुन से धोने की अपील की. फिर लॉक डाउन को सफल बनाने का आह्वान किया. फ़िर जेब से एक और कागज़ निकाला और कहा, “अब मैं आपको करोन्ना के उपलक्ष्यै में लिक्खी अपनी कुछ कविताऐं सुनात्ता हूँ.”
यकायक स्क्रीन पर लिखी चार की संख्या सीधे एक हो गई. चड्डा साहब ने अपनी कविता पढ़ना शुरू किया, “कमर कसो कर लो तैयारी, आई करोन्ना माहवारी.” फिर दूसरी कविता प्रस्तुत की, “जग जाओ तुम अब न सोन्ना, देश में अपने आया करोन्ना.” इस प्रकार की कुल बारह कविताएं चड्डा साहब ने प्रस्तुत कीं. इसके बाद वे ठहर गये.
फिर कुछ देर विचार कर के बोले, “पिरिय! आप हो, कि चल्ले गए?”
“हूँ, बिल्कुल हूँ. जब तक ऊपर एक लिखा आ रहा है ,तब तक समझियेगा कि मैं हूँ.” मैंने चड्डा साहब को आश्वस्त किया.
“वो एक्क लघु कथा भी लिक्खी थी. अभी सुना द्दूँ कि अगले लाइव में सुनाऊँ?” चड्डा साहब ने प्रश्न किया. तभी फिर उस स्त्री की आवाज़ गूँजी,”पानी नहीं आ रहा मोबाइल नरेस. लगता है टुल्लू एयर ले गया. तुम आते हो या मैं आऊँ.”
अचानक ही ज़ोर की आवाज़ हुई और चड्डा साहब और उनका कमरा, दोनों उलट-पुलट हो गये. लगा जैसे कोई भूकम्प आया हो. फिर समझ आया कि उनका मोबाइल ज़मीन पर गिरा था. एक क्षण को उनका चेहरा दिखा और फिर लाइव प्रसारण बंद हो गया.
(Chadda Sahab satire by Priy Abhishek)
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प्रिय अभिषेक
मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.
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2 Comments
Gopendra Gangwar
बहुत सुंदर
Rupam sharma
जबरदस्त😂