4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – 33
पिछली क़िस्त का लिंक: कई-कई बच्चे पैदा कर चुकी असंख्य महिलाएं भी सेक्स के सुख से अंजान हैं
यदि डॉक्टर की मानूं तो आज से ठीक 20 दिन बाद तुम मेरे पेट से निकल इस दुनिया में होओगी. सिर्फ 20 दिन बाद तुम मेरे हाथों में होओगी मैं तुम्हें छू सकूंगी तुम्हें चूम सकूंगी तुम चुस्स-चुस्स करके मेरा दूध पी रही होगी …हे भगवान! कभी 20 सप्ताह थे तुम्हारे बाहर आने में, अब 20 दिन बचे हैं बाप रे! मैं एक अहसहनीय दर्द, तकलीफ, और दिल दहला देने वाली चीख से गुजरूंगी और तुम आजाद हो जाओगी पता नहीं दुर्भाग्य से या सौभाग्य से तुम इस आजादी की पहली सांस रोकर लोगी! अब तुम्हें पेट के भीतर की जगह तंग लगने लगी है न? पिछले कुछ दिनों से तुम ऐसे अंगडाई लेती हो, पैर फैलाती हो, अपनी मुठ्ठियां ऊपर की तरफ तानती हो; मानो कह रही हो ‘अब बस!…मैं अब और नहीं रह सकती इतनी तंग और अंधेरी कोठरी में मुझे यहां से बाहर निकालो मां मुझे आजादी चाहिए!’ तुम्हारी ऊपर उठती बंद मुठ्ठियां और खुलते पैर तो मैं बिल्कुल साफ देख पाती हूं मेरी बच्ची. ऐसा लगता है तैसे कोई बड़ा सा शैतान ऊदबिलाऊ मेरे पेट में धमाचैकड़ी मचा रहा है इधर से उधर से पेट में कूबड़ बनाते हुए घूम रहा है! (Column by Gayatree Arya 34)
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पिछले चार दिनों से मौसम काफी अच्छा है, बारिश की झड़ी लगी है और हवा भी काफी अच्छी चल रही है. पर ये मौसम तुम्हारी नैपी सूखने के हिसाब से अच्छा नहीं है! इन्हीं तीन दिनों में तुम्हारी एक मौसी अपनी बेटी के साथ मेरे पास आई थी, हम पिछले 15-16 सालों से दोस्त हैं. वो भी अभी से तुम्हें बहुत प्यार करती है. तुम्हारे आने के पहले से ही कितने लोग तुम्हें प्यार करने लगे हैं मेरे बच्चे, कितना अदभुत है न ये जानना नहीं? (Column by Gayatree Arya 34)
गर्मी के कारण मेरे पेट पर इतनी ज्यादा घमौरियां निकल गई थी कि क्या बताऊं तुम्हें, ऊपर से बेहिसाब खुजली. पूरा दिन मैं नाइसिल पाउडर से अपने पेट को नहलाती रहती हूं और कभी-कभी बर्दाश्त न होने पर खुजली कर ही लेती थी. क्या तुम्हें कुछ महसूस होता था मेरी बच्ची, जब मैं पेट पर खुजली करती थी? कुछ सरसराहट, गुदगुदी या दबाव जैसा? लेकिन अभी तो तुम्हें इन शब्दों के अर्थ भी नहीं पता है जो मैं पूछ रही हूं! (Column by Gayatree Arya 34)
रंग मेरी बच्ची! तुम नई किस्म की महामारियों, मंहगाई और मिलावट के चरम समय में जन्म ले रही हो! आजकल एक नई महामारी फैली है इसका नाम है ‘स्वाइन फ्लू’. ये सांस लेने, छूने जैसी आम चीजों से भी फैल रही है यूं तो अभी तक इससे देश में सिर्फ 27 लोग भी मरे हैं, पर लगभग दो हजार लोग इससे पीड़ित हैं. हमारे देश की बेहिसाब आबादी और गैरजिम्मेदारी व लापरवाही से भरी सरकारी नीतियां, व्यवहार और इलाज में कोताही इस बीमारी को महामारी बनने में पूरा सहयोग करेंगे. एड्स की तरह ये बीमारी भी एक दूसरे देश ने हमें तोहफे में दी है. देखो जरा कैसे, आज के समय में बिना हमला किये भी कोई देश किसी दूसरे देश के लोगों को मार सकता है! है न ये हैरानी की बात? मेरे हिसाब से तो ऐसी बीमारी देने वाले देश को सजा मिलनी चाहिए नहीं क्या?
मंहगाई की हालत ये है मेरी जान, कि बहुत सारे लोग फलों में केले, अमरूद, नाश्पाती जैसे कुछ गिने-चुने सस्ते फल ही खा सकते हैं. अनार, सेब, संतरा और अच्छा आम खाने की तो असल में असंख्य लोगों की औकात ही नहीं है मेरी बच्ची! लेकिन हमारी कोशिश होगी कि हमारी फलों की टोकरी में तुम्हारे लिए वे मंहगे फल भी हों. हम भी उन्हीं मां-बाप की अंतहीन श्रृंखला का हिस्सा बना दिये जाएंगे जो तमाम महंगे स्वादों को अपने बच्चों के माध्यम से ही अपनी जीभ में भी महसूस करते आ रहे हैं. पहले आम आदमी कम से कम दाल-रोटी खा सकता था, आज गरीब आदमी की औकात दाल खाने की भी नहीं बची है बेटू. तुम मंहगाई के चरम दौर में आ रही हो मेरी बच्ची! यहां सब कुछ मंहगा है, जीना, खाना, रहना, घूमना, पढ़ना, बीमारी का इलाज, घर खरीदना सब कुछ, सिर्फ एक इंसान की जान सबसे सस्ती है! (Column by Gayatree Arya 34)
और मंहगाई से भी खतरनाक है मिलावट. यहां तक कि मां का दूध भी इस मिलावट के असर से नहीं बचा है! सिर्फ एक नारियल पानी ही है जो हर तरह की मिलावट से पूरी तरह दूर है. लेकिन 40-50 रुपये के नारियल को भला कितने लोग रोज-रोज पी सकते हैं भला? हां तुम्हारी नानी के जिंदा रहने तक घी और मिठाइयां भी तुम्हें बिल्कुल शुद्ध मिल जाएंगी. सिर्फ ज्यादा और ज्यादा प्रॉफिट के कारण मिलावट का नंगा नाच चल रहा है. और कहीं कोई पाबंदी, सख्ती, सजा कुछ भी नहीं. पैसा देकर हर पाबंदी, सख्ती और सजा से मुक्त हुआ जा सकता है! हमारी जिंदगी के सभी अपराधी ऐसे ही आजाद घूम रहे हैं बिलकुल छुट्टे! फल, सब्जी, तेल, मसाले, घी, दूध, खोया, मिठाई, दवाई क्या है जो मिलावटी नहीं बिक रहा है उफ्फ!
सब कुछ इतना नकली और मिलावट वाला खाकर लोग कैसे सच्चे और ईमानदार बन सकते हैं भला? दूसरों से सबका यही आग्रह है कि लोग ईमानदार हों. लेकिन खुद कोई भी रिश्तों में या किसी भी चीज में ईमानदारी बरतने को तैयार नहीं.
ये हम तुम्हें कैसी घिनौनी, नकली, मिलावटी, झूठी, बीमार, मक्कार, स्वार्थी दुनिया में ला रहे हैं मेरी बच्ची? मुझे नहीं पता कि हम तुम्हें ऐसी दुनिया को दिखाने के लिए तुम्हारे गुनहगार हैं या नहीं!
हां लेकिन जैसा कि मैंने पहले भी कहा था तीन चीजें हैं (जिनमें से एक के मिलने की गारंटी नहीं), जिनके लिये तुम्हें जन्म लेना ही चाहिए. प्रकृति, संगीत और प्रेम. इनका स्वाद लेने के लिये भी एक बार जन्म लेना बनता है. यहां मैं उस प्यार की बात कर रही हूं मेरी बच्ची, जो कि हर एक उम्र के इंसान की जरूरत है, लेकिन जो सिर्फ कुछ किस्मत वालों को ही मिलता है. मां-बाप का प्यार तो तुम्हें मिलेगा ही, लेकिन सच्चा और अच्छा प्रेमी/ जीवनसाथी मिलना एक लाटरी निकलने जैसा है. ये एक ऐसा जुआ है जिसे हर कोई जरूर खेलता है जिंदगी में, लेकिन कुछ चुनिंदा लोग ही किस्मत वाले निकलते हैं. हां लेकिन बाकि दो चीजों से तुम्हें दूर कोई नहीं ले जा सकता, जब तक कि तुम खुद न उनसे दूर जाना चाहो. (Column by Gayatree Arya 34)
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उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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