तब हम रानीधारा की सड़क में दौड़ लगाते थे. दस बारह वर्ष के रहे होंगे या चौदह-पन्द्रह के. सन 1940 से 1945 तक का समय था. धीरेन्द्र उप्रेती, मोहन पांडे और मैं और हरी-भरी दूर्वादल से ढंकी पैदल सड़क. सन 1947, 48, 49 तक इंटर तथा बीए कक्षाओं में वर्डस्वर्थ की कविताएं पढ़ते थे. इस सड़क का नाम वर्ड्सवर्थियन रोड रख दिया था. आज वही सड़क गड्ढों से भरी, तरह-तरह की सवारियों के चलने से अपना मौलिक रूप खो चुकी है. वहां धार की तूनी के पास के भवनों से नृत्य सम्राट उदय शंकर के कला केंद्र के भवनों से पखावज, तबले से निसृत नृत्य के लयबद्ध बोल सुनाई देते थे. (Uday Shankar Academy in Almora)
उन दिनों पं. चंद्रशेखर पन्त जी, महान गायक तथा महाकवि पन्त जी कला केंद्र को आते-जाते दिखाई देते थे. महान गायक, वादक उस केंद्र में रहते थे. कुछ समय के लिए या कोई निरंतर भी. उस्ताद अलाउद्दीन खान महीनों रहते थे. रविशंकर जी उन्हीं से सितार सीखते थे. कभी-कभी कुमार गन्धर्व भी आते-जाते थे. मैडम सिमकी महान नृत्यांगना थीं. अमला नन्दी नृत्य सम्राट की पत्नी (बाद में) बनी थीं. धार की तूनी से पश्चिम की ओर के भवनों में रानीधारा रोड के ऊपर कला केंद्र के कुछ भवन नृत्य तथा संगीत के अभ्यास के लिए लिए गए थे. दूसरी तरफ की सड़क जो उत्तर-पूर्व की थी, वहां गैलरीनुमा खेतों के नीचे स्टेज बनाया जाता था. वहां कला केंद्र के विविध आयोजनों को प्रदर्शित किया जाता था. उसी सड़क से कुछ दूर चलकर पाताल देवी का मंदिर और माँ आनंदमयी का आश्रम था. विभिन्न नृत्यों का प्रदर्शन मनोहर होता था. शिव-तांडव में स्वयं उदय शंकर शिव बनते थे. मैडम सिमकी पार्वती. जन-जीवन से जुड़े कई नृत्य दिखाए जाते थे. घास काटने के नृत्य, मशीन द्वारा काम करने के नृत्य, भूत बाधा के नृत्य. (Uday Shankar Academy in Almora)
सबसे आकर्षक होती थी छाया रामलीला. विशाल स्टेज में पीछे से तीव्र प्रकाश डालकर साढ़े हुए कलाकारों द्वारा नृत्यकला से रामलीला प्रदर्शित की जाती थी. कलाकारों का अभिनय छाया में श्वेत परदे पर दर्शक मंत्रमुग्ध होकर देखा करते थे. प्रदर्शन के साथ ही संगीत दृश्य को सजीव कर देता था तथा कथा को हृदयंगम कराने के लिए उसी दृश्य से सम्बंधित ‘रामचरितमानस’ की पंक्तियाँ स्पष्ट सुमधुर स्वरों में गई जाती थीं. ऐसा नवरात्रि के दिनों में होता था. अंतिम दिन रामराज्य का प्रदर्शन करने के लिए वस्त्राभरण तथा समस्त अलंकारों से सुसज्जित राम-दरबार की झांकी दिखाई जाती थी. तब पर्दा हटा दिया जाता था. रंग-रूपमय राम-दरबार लगता था जैसे उत्कृष्टतम चित्रकार द्वारा चित्रित हो.
कितने भाग्यशाली रहे होंगे शैशव-किशोरावस्था के वे दिन.
कहा जाता था श्री उदयशंकर ने यह स्थान स्थाई रूप से चुना है. हमेशा रहने के लिए.
यहीं उनकी फिल्म ‘कल्पना’ के कई दृश्य फिल्माए गए. महाकवि पन्त ने कई गीत इसी के लिए लिखे थे.
मिस्टर गांगुली एक पहलवान थे. उनके कई प्रदर्शन दिखाए जाते थे. गले से लोहे की सरियों को मोड़ना. दांत से मोड़ना इत्यादि. एक दिन प्रातः भ्रमण के शौक में हम तीनों सिटोली के जंगल में दूर तक चले गए. लौटते समय मालूम हुआ दिन निकल आया है. घर में नौ बजे तक लौटना है. सूरज को देख कर लगता था दस-ग्यारह बज गए होंगे. घर में डांट पड़ने के डर से भयभीत थे. उधर से मिस्टर गांगुली और कुछ जनों को आता देख पूछ बैठे – “श्रीमान कितना बजा है?”
मिस्टर गांगुली ने कहा – “पाउने नौ”. हम लोगों की जान में जान आई. बाद में सुना मिस्टर गांगुली का विवाह मैडम सिमकी से हुआ.
-विपिन चन्द्र जोशी
(यह आलेख पुरवासी के रजत जयन्ती विशेषांक, वर्ष 2004 से साभार लिया गया है.)
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